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रेल हादसों के चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने....

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मुंबई: पिछले 15 सालों में मुंबई महानगर क्षेत्र में रेलवे लाइन पर मरने वाले लोगों में से लगभग एक तिहाई लोगों का शव लावारिस अवस्था में पड़ा है. ये पूरी जानकारी आरटीआई के जवाब से मिली. टीओआई में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक उपनगरीय नेटवर्क पर ट्रेन दुर्घटनाओं में जान गंवाने के बाद भी जिन लोगों की पहचान नहीं हो पाई है, उनकी संख्या कुल मृतकों (46,969) का 31 फीसदी (14,513) है. सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) के प्रयासों के बावजूद उन्हें उनके परिजनों तक नहीं पहुंचाया जा सका. ऑर्थोपेडिक डॉ. सरोश मेहते द्वारा आरटीआई याचिका के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 के बाद से लावारिस शवों का प्रतिशत बढ़ना शुरू हुआ.

सबसे ज्यादा इस वजह से हुईं मौतें
2002 से 2024 के बीच, विभिन्न कारणों से रेलवे लाइनों पर 72,000 से अधिक लोगों की जान चली गई, जिनमें से अधिकांश ट्रैक पार करते समय कुचले गए. आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 से हर साल कुल मौतों में कमी आ रही है. एकमात्र अपवाद 2022 था जब महामारी के कारण घर पर फंसे लोग शहर की जीवन रेखा पर काम पर लौटने लगे.

डॉ मेहता ने कहा कि ट्रैक पार करने और ट्रेनों से गिरने जैसी घटनाओं को बाउंड्री वॉल और बंद दरवाजे वाले कोच जैसे उपायों से रोका जा सकता है. रेलवे ट्रैक पार करने को हतोत्साहित करने के लिए फुट ओवर-ब्रिज बना रहा है और एस्केलेटर लगा रहा है, लेकिन हर साल होने वाली मौतों की संख्या अभी भी चार अंकों में है, रेलवे के शून्य मृत्यु के मिशन को प्राप्त करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है.

'दुर्घटना के शिकार लोगों की पहचान मुश्किल'
पुलिसकर्मियों ने बताया कि रेल दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की पहचान करना चुनौतीपूर्ण है. कई बार शव इतने क्षत-विक्षत हो जाते हैं कि उनकी पहचान नहीं हो पाती और फोन या पहचान पत्र जैसी चीजें भी नहीं मिल पातीं. जीआरपी शोध नाम से एक वेबसाइट चलाती थी, जहां अज्ञात पीड़ितों की तस्वीरें उनकी डिटेल के साथ डाली जाती थीं और उनके परिवारों को उन्हें खोजने में मदद की जाती थी. लेकिन यह वेबसाइट बंद हो गई.

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