राजस्थान में स्ट्रीट डॉग्स का आतंक बड़ी समस्या बन चुका है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसके बाद अब बच्चों का सड़कों या पार्कों में खेलना सुरक्षित नहीं रह गया है। कोटा, भरतपुर, उदयपुर, अलवर समेत प्रदेश के कई इलाकों से कई दर्दनाक तस्वीरें हर माता-पिता को डराने वाली हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में राजस्थान में कुत्तों के काटने के 4 लाख 22 हजार मामले सामने आए, यानी हर दिन औसतन 1100 से ज्यादा मामले। इसके चलते 2025-26 की शुरुआत में 86 हजार 965 एंटी रेबीज वैक्सीन की मांग सामने आई है।
प्रदेश के ये 5 जिले सबसे ज्यादा प्रभावित
जयपुर ग्रामीण - 27,889
जयपुर शहरी - 26,336
धौलपुर - 26,112
कोटा - 21,507
भरतपुर - 13,863
भरतपुर, कोटा, उदयपुर समेत कई जगहों पर हालात भयावह
भरतपुर में अभी 2 दिन पहले ही सेक्टर-3 कॉलोनी में एक ही कुत्ते ने 6 लोगों को काटा है। कोटा में हालात और भी भयावह हैं। यहां कुत्तों के काटने के 21 हजार 507 मामले दर्ज किए गए। हाल ही में विवेकानंद नगर में डेढ़ साल के बच्चे पर तीन कुत्तों ने हमला कर दिया। इस मामले में पर्यटन नगरी उदयपुर के हालात भी खराब हैं। यहां भी एक साल में कुत्तों के काटने के 19,772 मामले दर्ज किए गए। खारोल कॉलोनी में 8 साल के हुसैन पर 4 कुत्तों ने हमला कर दिया। जब प्रशासन की जवाबदेही की बात आती है तो प्रशासनिक अधिकारी अब एक-दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालते नजर आ रहे हैं। राज्य के जन स्वास्थ्य निदेशक डॉ. रवि प्रकाश शर्मा ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, "स्वास्थ्य विभाग की पहली जिम्मेदारी कुत्ते के काटने के तुरंत बाद मरीज को वैक्सीन और सीरम उपलब्ध कराना है, ताकि जान बचाई जा सके। लेकिन जिम्मेदारी सिर्फ वैक्सीन से ही खत्म नहीं हो जाती। नगर निगम और पशुपालन विभाग को भी इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी। प्रशासन की जवाबदेही की बात करें तो प्रशासनिक अधिकारी अब एक-दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालते नजर आ रहे हैं।
जयपुर नगर निगम पर भी उठे सवाल
इस मामले में जयपुर नगर निगम ग्रेटर के आयुक्त गौरव सैनी का कहना है कि कुत्तों के काटने की घटनाओं को रोकने के लिए निगम बजट का सही इस्तेमाल कर रहा है और बीमार कुत्तों की पहचान की जा रही है. वहीं निगम में नेता प्रतिपक्ष राजीव चौधरी ने निगम की पशु प्रबंधन शाखा पर सीधा सवाल उठाया. उनका आरोप है कि जयपुर कुत्तों के काटने की राजधानी बन गया है और टेंडरों में अनियमितताओं ने स्थिति को और खराब कर दिया है. दरअसल, मार्च 2024 में जयपुर नगर निगम ग्रेटर ने ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी को 2 करोड़ 10 लाख रुपये का तीन साल का टेंडर दिया था. आवारा कुत्तों की रोकथाम और नसबंदी के बावजूद हर दिन कुत्तों के काटने की 17 से 20 शिकायतें मिलती हैं।
यहां दिख रही है लापरवाही
लगातार बढ़ रहे मामले सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि सिस्टम को आईना दिखाने वाली कहानी है। यह चेतावनी भी है कि अगर हम अब भी नहीं जागे तो कई मासूम इसके शिकार हो सकते हैं। त्रासदी यह है कि तमाम जागरूकता के बावजूद नसबंदी, टीकाकरण और आश्रय की सरकारी योजनाएं अभी भी सिर्फ कागजों पर चल रही हैं।
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