राजस्थान के पाली जिले में स्थित जवाई बांध ना केवल एक खूबसूरत जलाशय है, बल्कि यह हर साल हजारों प्रवासी पक्षियों के लिए एक अस्थायी घर भी बन जाता है। अक्टूबर से मार्च तक, जब सर्द हवाएं उत्तर दिशा से बहने लगती हैं, तब दुनियाभर के कई देशों से पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। यह दृश्य इतना मनमोहक होता है कि पर्यटक और पक्षीप्रेमी भी इस प्राकृतिक मेले को देखने दूर-दूर से आते हैं।
प्रकृति और पक्षियों का अद्भुत संगमजवाई बांध केवल एक जल स्रोत ही नहीं, बल्कि एक जैव विविधता का संगम है। यहां की शांत जलधारा, हरियाली और शांत वातावरण प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो, डेमोसाईल क्रेन, गीज़, पेंटेड स्टॉर्क, ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क और कई प्रकार की बत्तखें यहां नियमित रूप से आती हैं। ये पक्षी साइबेरिया, मंगोलिया, कजाकिस्तान और उत्तरी एशिया के ठंडे क्षेत्रों से आते हैं, जहां सर्दियों में तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे चला जाता है।
हजारों किलोमीटर की थकान भूल जाते हैं यहांपक्षियों के लिए यह सफर आसान नहीं होता। कई बार उन्हें समुद्र पार करना होता है, तो कई बार रेगिस्तान और पहाड़ों के ऊपर से उड़ना पड़ता है। लेकिन जैसे ही ये पक्षी जवाई बांध की जलधाराओं को देखते हैं, उन्हें एक सुरक्षित और शांत स्थान मिल जाता है, जहां वे विश्राम, प्रजनन और भोजन की तलाश पूरी कर पाते हैं। इन महीनों में बांध क्षेत्र की प्राकृतिक ध्वनियाँ पक्षियों के कलरव से गूंज उठती हैं।
पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्गजवाई बांध को अब "बर्ड वॉचिंग हॉटस्पॉट" के रूप में जाना जाने लगा है। देश-विदेश से पक्षी विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और फोटोग्राफर यहां पक्षियों के जीवन चक्र और प्रवास की गतिविधियों को देखने आते हैं। सुबह के समय जब धुंध के बीच पक्षियों की कतारें पानी में उतरती हैं या झुंड बनाकर आसमान में उड़ती हैं, तो यह नज़ारा किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता।
स्थानीय ग्रामीणों की भूमिकाइस क्षेत्र के ग्रामीणों का भी पक्षियों के प्रति गहरा लगाव देखने को मिलता है। वे इन प्रवासी मेहमानों को सताते नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा में सहयोग करते हैं। कई ग्रामीणों ने पर्यटकों के लिए गाइड बनकर एक नया रोजगार भी अपनाया है। वहीं स्थानीय प्रशासन भी इन पक्षियों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को लेकर सजग रहता है।
पर्यटन को भी मिला बढ़ावाजवाई बांध अब केवल सिंचाई और जल संग्रहण का केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह एक "इको-टूरिज्म डेस्टिनेशन" बन चुका है। पर्यटक यहां बर्ड वॉचिंग, ट्रेकिंग, और लेपर्ड सफारी का आनंद लेते हैं। खासकर सर्दियों में, जब प्रवासी पक्षी यहां आते हैं, तो इस क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिलती है।
संरक्षण की जरूरतहालांकि, बढ़ते पर्यटन और इंसानी दखल से इन पक्षियों के लिए खतरे भी बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन पक्षियों की प्राकृतिक आवास स्थलों को सुरक्षित नहीं रखा गया, तो आने वाले वर्षों में उनकी संख्या में गिरावट हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि बर्ड सेंचुरी, शांत क्षेत्र और जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए।
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