राजस्थान के टोंक जिले के सोप कस्बे के किसान मोहन लाल नागर ने पारंपरिक खेती छोड़कर सफेद मूसली की खेती शुरू की है। अब उन्हें दो बीघा ज़मीन से 12 लाख रुपये की उपज मिल रही है। सफेद मूसली एक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग कमज़ोरी दूर करने, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में दूध बढ़ाने और हड्डियों के रोगों में किया जाता है। यह गठिया, कैंसर, मधुमेह और नपुंसकता जैसी बीमारियों में भी उपयोगी है।
जून-जुलाई में होती है बुवाई
एक एकड़ में सफेद मूसली की खेती से 20 से 24 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। एक बीघा में 6 लाख रुपये तक की उपज मिल रही है। नीमच मंडी और इंदौर के सियागंज में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। बाज़ार में इसकी कीमत एक लाख से डेढ़ लाख रुपये प्रति क्विंटल तक पहुँच जाती है। कभी-कभी यह 1000 से 1500 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है। सफेद मूसली की बुवाई जून-जुलाई में होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु के दौरान उपयुक्त मानी जाती है।
सिंचाई की सुविधा हो तो इसे कभी भी लगाया जा सकता है। फसल 6 से 9 महीने में तैयार हो जाती है। इसे काटा नहीं जाता, बल्कि ज़मीन से उखाड़ा जाता है। एक एकड़ में लगभग 80 हज़ार पौधे लगाए जाते हैं। अगर 70 हज़ार पौधे भी बच जाएँ तो 21 क्विंटल मूसली प्राप्त होती है। सूखने के बाद यह 4 क्विंटल रह जाती है। इस खेती में मुनाफ़ा 60 प्रतिशत से ज़्यादा है।
सफेद मूसली: खेती पर सरकार देती है सब्सिडी
पारंपरिक फसलों की तुलना में 8 गुना ज़्यादा कमाई होती है। सफेद मूसली की खेती पर सरकार सब्सिडी भी देती है। इसके लिए ज़िला उद्यानिकी कार्यालय से जानकारी ली जा सकती है। दोमट, बलुई दोमट या लाल मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH मान 7.5 तक होना चाहिए। 8 pH से ज़्यादा वाली ज़मीन में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
खेत में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। लंबे समय तक जलभराव हानिकारक होता है। बुवाई के लिए गूदेदार जड़ों के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। एक बीघा के लिए 4 से 6 क्विंटल जड़ों की ज़रूरत होती है। बीज के लिए 5 से 10 ग्राम के टुकड़े उपयुक्त माने जाते हैं। पौधे की ऊँचाई 40 से 50 सेंटीमीटर होती है।
इसी वजह से सफेद मूसली की माँग तेज़ी से बढ़ रही है
जड़ें ज़मीन के अंदर 8 से 10 सेंटीमीटर तक जाती हैं। अच्छी परिस्थितियों में एक बीघा से 12 से 20 क्विंटल गीला कंद प्राप्त होता है। सूखने के बाद यह 3 से 4 क्विंटल रह जाता है। देश-विदेश की दवा कंपनियाँ इसे खरीदती हैं। माँग के अनुसार इसका उत्पादन नहीं हो पा रहा है। औषधीय गुणों के कारण इसकी माँग तेज़ी से बढ़ रही है। किसान अब जैविक खाद और आधुनिक तकनीक से इसका उत्पादन कर रहे हैं। फसल विविधीकरण से ज़मीन की उर्वरता भी बनी रहती है।
मोहन लाल नागर अब 14 बीघा में सफेद मूसली, अश्वगंधा, सहजन, अकरकरा, स्टीविया जैसी औषधीय फसलें उगा रहे हैं। वे किसानों को बीज से लेकर बाज़ार तक की सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। ताकि किसानों को औषधीय खेती में कोई परेशानी न हो। सोप ग्राम पंचायत निवासी मोहन नागर अब तक 500 से अधिक किसानों को सफेद मूसली, अश्वगंधा, अकरकरा, सहजन, कालमेघ, स्टीविया, शतावरी जैसी औषधीय फसलों का निशुल्क प्रशिक्षण दे चुके हैं।
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