कस्बे से महज 5 किमी दूर ग्राम पंचायत फरकिया का हाथीपट्टा गांव एक अनोखा गांव है, जहां पशुओं का दूध कभी नहीं बेचा जाता। ग्रामीणों ने अपने पुराने रीति-रिवाजों को कायम रखते हुए गांव की अलग पहचान बनाए रखी है। यहां लोग दूध का व्यापार नहीं करते, बल्कि घर में पाली जाने वाली गाय-भैंसों से प्राप्त दूध का उपयोग अपने परिवार के लिए करते हैं। बताया जाता है कि ग्रामीण अजयनाथ बाबा का वचन निभा रहे हैं। यहां मंदिर में 24 घंटे अग्नि जलती रहती है।
ग्रामीण दूध बेचने की बजाय उससे घी बनाकर बेचते हैं। गांव के मोहनलाल मेघवंशी बताते हैं कि अजय नाथ महाराज आरणी के हीरापुरा से हाथीपट्टा आए थे। उस समय अंग्रेजों का राज था। यहां उन्होंने हिंगलाज माता का मंदिर बनवाया था। बाबा इसी मंदिर के पास समाधि लेना चाहते थे, लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें रोक दिया। इस पर उन्होंने थावला के पास रातीनडा में जिंदा समाधि ले ली। गांव का हर परिवार अजयनाथ बाबा का वचन निभा रहा है। कहा जाता है कि पलरा गांव से नैनैत गोत्र के रावत जाति के कुछ लोग आकर गांव बसाते हैं।
हाथी पट्टा के ग्रामीण आज भी पलरा गांव से भाईचारा बनाए रखते हैं। वे अपनी बेटियों की शादी पलरा गांव से नहीं करते। ग्रामीण आज भी अपनी पुरानी मान्यताओं और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। न्याय के प्रतीक गांव की हथाई का ग्रामीण आज भी सम्मान करते हैं। ग्रामीण मान्यताओं के कारण लोग गांव की हथाई के सामने मोटरसाइकिल नहीं चलाते, बल्कि हथाई के सामने मोटरसाइकिल से उतर जाते हैं। गांव में ठाकुरजी के मंदिर के सामने एक बड़ी चट्टान है, जिसे लोग गणेशजी के रूप में पूजते हैं। हाथी के आकार की चट्टान के कारण ही गांव का नाम हाथी पट्टा पड़ा।
जब कोई शादी होती है तो सबसे पहला निमंत्रण इसी चट्टान के पास जाकर गणेशजी को दिया जाता है। गांव की हथाई पर आज भी लोग बैठे नजर आते हैं। हथाई के पास एक बड़ी पुरानी चट्टान नंबर पत्थर रखा हुआ है, जिसे ग्रामीण अनघन महाराज मानकर पूजते हैं। गांव की हथाई के सामने लोहे का एक बड़ा तवा पड़ा हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि इस कड़ाही में एक बार में 7.25 मन दलिया बनाया जा सकता है।
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