पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारत ने पिछले दिनों हुए संघर्ष के दौरान ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल किया है.
ब्रह्मोस को भारतीय सेना का एक ताक़तवर हथियार माना जाता है. ये एक सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है जिसे पनडुब्बी, शिप, एयरक्राफ्ट या ज़मीन कहीं से भी छोड़ा जा सकता है.
भारत ने रूस के साथ एक साझेदारी में ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को विकसित किया है. इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है.
ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइलों में से एक है.
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यूएवी की तरह ही बदला जा सकता है लक्ष्यब्रह्मोस मिसाइल की गति ही इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है. यह आवाज की गति से क़रीब तीन गुना ज़्यादा तेजी से उड़ती है.
यही स्पीड इसे बहुत ही मारक और दुश्मन के रडार में कभी न पकड़ में आने वाली मिसाइल बनाती है.
इसका निशाना इतना सटीक है कि 290 किलोमीटर की दूरी पर भी अपने लक्ष्य से एक मीटर घेरे के अंदर ही गिरती है.
डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक रवि गुप्ता बताते हैं, "शुरू से अंत तक यह मिसाइल सुपरसोनिक गति से उड़ती है. यही इस मिसाइल को ख़ास बनाती है."
वो कहते हैं, "यह एक क्रूज मिसाइल है. इस मिसाइल का इंजन अंत तक चालू रहता है. इस दौरान यूएवी की तरह ही इसके लक्ष्य को बदला जा सकता है."
रवि गुप्ता ने बताया कि इसका 'सीकर सेंसर' इतना घातक है कि एक समान कई लक्ष्य में से असली लक्ष्य पहचान कर उसे तबाह करने में सक्षम है.
रवि गुप्ता बताते हैं, "इसकी 'स्टीव डाइविंग' तकनीक कमाल ही है. यह मिसाइल सतह से चंद मीटर ऊपर उड़ते हुए, सामने आने वाली बाधा को पार कर दुश्मन पर अचानक हमला करने की क्षमता रखती है."

ब्रह्मोस डॉट काम के मुताबिक़, इस मिसाइल के निर्माण के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एनवी मिखाइलोव ने 12 फ़रवरी 1998 को हस्ताक्षर किए.
इसके बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस कंपनी का गठन किया गया. इस समय यही कंपनी मिसाइल का उत्पादन कर रही है.
ब्रह्मोस 290 किलोमीटर तक उड़ सकती है. यह 10 मीटर से लेकर 15 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम है.
इसका पहला सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को किया गया था. इसके बाद इस मिसाइल में कई बदलाव किए जा चुके हैं.
भारतीय नौसेना ने 2005 में आईएनएस राजपूत पर पहली बार ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली तैनात की. साल 2007 में भारतीय सेना में भी यह शामिल की गई.
इसके बाद भारतीय वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई विमान से हवा से लॉन्च किया जाने वाला संस्करण अपनाया.
अभी ब्रह्मोस मिसाइल का वज़न 2900 किलोग्राम है. इसके कारण लड़ाकू विमानों पर एक बार में एक ही मिसाइल लग पा रही है. इसका वज़न कम होने के बाद एक की जगह पांच मिसाइलें लगाई जा सकेंगी.
अब ब्रह्मोस का नया वैरियंट ब्रह्मोस एनजी तैयार किया जा रहा है. इसका वज़न 1260 किलोग्राम और रेंज 300 किलोमीटर की होगी.
रवि गुप्ता याद करते हैं, "ब्रह्मोस का 2005 के आसपास परीक्षण चल रहा था. उस समय हमने इसकी गति से ही होने वाले नुकसान को मापने के लिए बिना वॉरहेड के ही एक पुराने जहाज पर टेस्ट किया. उसका जो परिणाम आया वह बहुत ही घातक था."
वह बताते हैं कि सबसे पहले तो यह मिसाइल करीबन पानी की सतह पर उड़ते हुए जहाज को आरपार चीर गई. इस प्रहार से जहाज के दो टुकड़े हो गए और चंद मिनट में ही वह जहाज डूब गया.
वह कहते हैं, "इस तरह की क्षमता अगर किसी मिसाइल की है तो उसका प्रहार कितना घातक होगा, इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है."
स्क्रैमजेट इंजन से और घातक हो जाएगी ब्रह्मोस मिसाइल
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला ने 21 जनवरी 2025 को स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया है. यह इंजन मिसाइलों में लगाया जाता है.
रवि गुप्ता बताते हैं, "ब्रह्मोस की गति पहले से ही बहुत तेज़ है, अब इसमें अगर स्क्रैमजेट इंजन भी लग जाएगा तो यह बहुत ही घातक और मारक हो जाएगी. यह आवाज़ की गति से आठ गुना ज़्यादा तेजी से उड़ेगी."
उनके अनुसार, "इसका पहला प्रभाव यह होगा कि इसके बाद मिसाइल रडार की पकड़ में नहीं आएगी और जब तक दुश्मन कोई रिएक्शन देने के लिए सोचेगा तब तक काफ़ी देर हो चुकी होगी."
वह बताते हैं कि दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि मिसाइल के हमले से पड़ने वाला असर कई गुना बढ़ जाएगा.
रक्षा मामलों के जानकार कर्नल मनीष ओझा (रिटायर्ड) कहते हैं कि ब्रह्मोस को विभिन्न परीक्षणों के बाद भारत ने बहुत घातक, सटीक और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बना दिया है.
उन्होंने बताया, "सुखोई में लगने के बाद इस मिसाइल की मारक क्षमता और भी बढ़ गई है. अभी इसे और भी मारक बनाने की तकनीक उन्नत की जा रही है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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