अपनी पढ़ाई के लिए डिलीवरी बॉय का काम करने वाले सूरज यादव चर्चा में हैं.
उन्हें झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी) की परीक्षा में 110वीं रैंक मिली है. ऐसे में सूरज यादव अब डिप्टी कलेक्टर बनेंगे.
झारखंड स्थित गिरिडीह ज़िले के कपिलो पंचायत के निवासी सूरज यादव को ये सफलता जेपीएससी परीक्षा के दूसरे प्रयास में मिली है.
लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमज़ोर होने के कारण चुनौतीपूर्ण हालात में हासिल की गई उनकी ये सफलता ख़ास है.
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विवाह के बाद जुटे जेपीएससी की तैयारी मेंआर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी और ज़िंदगी की तमाम मुश्किलों को पीछे छोड़कर सूरज यादव साल 2017 में स्नातक करने के बाद कॉल सेंटर में जॉब करने लगे.
उसी दौरान सूरज यादव के पास अपनी बेटी का रिश्ता लेकर पहुंचे गंगाधर यादव ने सूरज से पूछा- 'आगे क्या करोगे?'
सूरज का जवाब था, "मैं डीएसपी बनना चाहता हूं. इसके लिए जेपीएससी की परीक्षा लिखूंगा."
सूरज की बात से प्रभावित गंगाधर यादव ने बेटी पूनम कुमारी की शादी सूरज यादव से उसी साल कर दी.
शादी के फ़ौरन बाद ही सूरज ने पूनम से पूछा कि वो कमाने जाएं या फिर जेपीएससी की तैयारी करें.
पूनम कहती हैं, "उस सवाल पर मैंने कहा कि ठीक है आप पढ़ने जाइए, खर्च की चिंता मत करिए. उसके लिए मैं अपने पिता जी से बात करूंगी."
ससुर गंगाधर यादव से सूरज यादव को साल 2020 तक आर्थिक सहयोग मिलता रहा.
जिसकी सहायता से सूरज यादव ने रांची की एक कोचिंग में साल 2020 तक जेपीएससी परीक्षा की तैयारी की.
लेकिन साल 2020 में कोरोना की वजह से जेपीएससी की परीक्षा नहीं हुई. ऐसे में सूरज को अपने गांव वापस लौटना पड़ा. जहां सूरज खुद पढ़ाई करते हुए जेपीएससी परीक्षा देने का इंतज़ार करने लगे.
साल 2021 में पुत्र के जन्म के साथ सूरज यादव पिता बन गए. बेटे के जन्म ने पारिवारिक ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाया, लेकिन पत्नी पूनम ने सूरज को सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी.
सूरज यादव कहते हैं, "अंतत: साल 2022 में जेपीएससी की परीक्षा हुई लेकिन मैं मेंस में सात अंकों की कमी के कारण पास नहीं हो सका."
साल 2022 संघर्षों का सालजेपीएससी के पहले प्रयास में असफल रहे सूरज के सामने साल 2022 एक नई चुनौती लेकर आया.
उस साल सूरज की पत्नी की छोटी बहन की शादी थी. ऐसे हालात में सूरज यादव को ससुराल से प्रति महीने मिलने वाली आर्थिक सहायता में बाधा आ गई.
सूरज के पिता द्वारका यादव कहते हैं, "उसी समय छोटी बेटी का विवाह भी तय हो गया. ऐसे में बहन के विवाह की ज़िम्मेदारी सूरज के कंधों पर आ गई."
जबकि राजमिस्त्री का काम करने वाले सूरज के पिता ख़राब सेहत के कारण काम-काज छोड़ चुके थे.
सूरज कहते हैं, "हमारे यहां एक कहावत है कि 'यादवों की बेटी का विवाह ज़मीन का टुकड़ा बिकने के बाद ही होता है."
दरअसल पहले भी सूरज की तीन बहनों का विवाह पुश्तैनी ज़मीन बेच कर किया गया था.
ऐसे में सूरज यादव ने बची हुई ज़मीन का एक हिस्सा तीन लाख रुपए में बेचने के बाद शेष खर्च पूरा करने के लिए रिश्तेदारों से सहायता मांगी.
सूरज की बहन वैजन्ती कुमारी कहती हैं, "शादी में लगभग सोलह लाख रुपये का खर्च था, भइया को सभी रिश्तेदारों ने मिलकर तेरह लाख रुपये दे दिया."
बहन वैजन्ती की शादी का फर्ज़ अदा करने के बाद क़र्ज़दार हो चुके सूरज के सामने दो रास्ते थे या तो कहीं कमाने चले जाएं या फिर अगली जेपीएससी परीक्षा की तैयारी करें.
चूंकि आर्थिक तंगी के कारण वापस रांची जाना संभव नहीं था. ऐसे में बड़ी बहन ने हज़ारीबाग स्थित अपने घर पर बुला लिया.
जहां रह कर सूरज रात में खुद पढ़ते और दिन के समय एक स्थानीय कोचिंग में जेपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों को पढ़ाते.
जिसके एवज में उन्हें पांच हज़ार रुपये प्रति महीने मिलने लगे. इस छोटी सी आय से सूरज अपनी पढ़ाई और परिवार का खर्च चलाते.
सीएनटी और एसपीटी एक्ट पर लिखी किताबजेपीएससी परीक्षा में आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949' से दस प्रश्न पूछे जाते थे.
जेपीएससी परीक्षा में इसके महत्व को समझते हुए सूरज यादव ने इस विषय पर हज़ारीबाग में रहते हुए 'झारखंड सीएनटी-एसपीटी एक्ट' नामक किताब लिखी.
सूरज कहते हैं, "इस पुस्तक से सोलह हज़ार पांच सौ रुपए बतौर रॉयल्टी मिले. जो मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं था."
वह आगे कहते हैं, "लेकिन मेरा फोकस सिर्फ जेपीएससी की अगली परीक्षा पर ही केंद्रित था."
सूरज ने हज़ारीबाग की कोचिंग में पढ़ाते हुए जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास की. उसके बाद जून 2024 में मुख्य परीक्षा दी.
लेकिन, कोचिंग में कोर्सेज़ पूरा होने के बाद सूरज को हज़ारीबाग की कोचिंग में दोबारा पढ़ाने का मौका नहीं मिला.
पूरी तरह से बेरोज़गार हो चुके सूरज को दोस्तों ने रांची आने की सलाह दी.
वह कहते हैं, "दोस्तों का कहना था कि रांची में कोचिंग बहुत हैं जहां किसी न किसी कोचिंग में बतौर फैकल्टी काम मिल जाएगा."
ऐसे बने डिलीवरी बॉयरांची में रहते हुए जुलाई से सितंबर आ गया लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद किसी कोचिंग में सूरज को काम नहीं मिला.
चिंतित सूरज के निकटतम मित्र राजेश नायक व संदीप मंडल ने सुझाव दिया कि डिलीवरी बॉय और रैपिडो में काम करने से दो पैसों की आमदनी होगी.
2024 में दी गई जेपीएससी परीक्षा के रिज़ल्ट की प्रतीक्षा करने वाले सूरज को दोस्तों का ये सुझाव पसंद आया.
लेकिन डिलीवरी बॉय बनने के लिए एक बाइक की ज़रूरत थी.
सूरज कहते हैं, "पहले से ही मैं क़र्ज़दार था. ऐसे में बाइक के लिए कर्ज़ लेने की हालत में मैं बिलकुल नहीं था."
ऐसे हालात में उनके दोनों मित्र राजेश नायक व संदीप मंडल ने अपनी स्कॉलरशिप के पैसे से सूरज को एक बाइक खरीद कर दी.
सूरज साल 2024 में अक्तूबर से प्रतिदिन शाम पांच बजे से रात दस बजे तक के लिए काम करते, जिससे उनको प्रतिदिन तीन से चार सौ रुपयों की आय हो जाती.
सूरज कहते हैं, "डिलीवरी बॉय से होने वाली आय मेरा आत्मविश्वास बढ़ाने लगी."
वह आगे कहते हैं, "मैंने अगली जेपीएससी की तैयारी के साथ ही एफ़आरओ व एसीएफ़ की प्रीलिम्स परीक्षा भी दे दी. लेकिन ज़ेहन में इंतज़ार सिर्फ़ 2024 में दिए गए जेपीएससी मेंस के परिणाम का था."
जेपीएससी मेंस का परिणाम मई 2025 में घोषित हुआ और इंटरव्यू के लिए सूरज का चयन हो गया.
जुलाई 2025 में होने वाले जेपीएससी इंटरव्यू की तैयारी के लिए दोस्तों ने डिलीवरी बॉय और रैपिडो का काम छोड़ने की सलाह दी.
सलाह मानते हुए सूरज ने मई 2025 में सबकुछ छोड़कर इंटरव्यू की तैयारी शुरू की.
वह कहते हैं, "इंटरव्यू के दौरान जब मैंने बताया कि स्विगी और रैपिडो के लिए डिलीवरी बॉय का काम करता हूं. तो बोर्ड के सदस्यों को लगा कि शायद मैं सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहा हूं. तब उन्होंने डिलीवरी से जुड़े तकनीकी सवाल पूछे."
उन सवालों का सटीक जवाब देकर सूरज ने बोर्ड के सदस्यों का शक दूर कर दिया.
25 जुलाई 2025 को जेपीएससी का फ़ाइनल परिणाम घोषित हुआ.
सूरज यादव कहते हैं, "परिणाम देख कर मेरे आँखों से आंसू निकल पड़े, जिन्हें रोकने की कोशिश करता और एक-एक कर परिवार के सभी सदस्यों को सूचित करने लगा कि मेरा चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हुआ है."
सफलता का श्रेय परिवार के सदस्यों कोहाल ही में प्रधानमंत्री आवास योजना से बने नए नवेले घर में शिफ्ट होने वाले सूरज अपनी सफलता का श्रेय परिवार को देते हैं.
वह कहते हैं, "परिवार के हर सदस्य ने वक़्त-वक़्त पर अपनी तरफ़ से योगदान दिया. ख़ासकर मेरी पत्नी, मां और सासू मां का अहम रोल रहा है."
उनकी मां यशोदा देवी कहती हैं, "साल 2022 से अबतक जब भी किसी पर्व पर बेटे सूरज को रुकने के लिए कहा जाता तो वो ये कह कर वापस चला जाता कि पढ़ाई छूट जाएगी. वह जेपीएससी में सफलता हासिल करने के लिए कितना समर्पित था, आप समझ सकते हैं."
पत्नी पूनम कुमारी सूरज को मिली इस सफलता से बहुत ख़ुश हैं, "हम देखे हैं कि बहुत कोई रिस्पेक्ट नहीं देता था, लेकिन आजकल वो सब चीज़ मिल रही है जो हम कभी सपने में भी नहीं सोचे थे, ख़ास करके इज़्ज़त."
वो कहती हैं, "आगे कोई बड़ा सपना नहीं है मेरा, जो था वह आज पूरा हो गया है."
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