बिहार में महिला वोटरों की भूमिका कितनी अहम रही है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां मतदान करने में महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में हमेशा बेहतर रहा है.
यानी पुरुष वोटरों की अपेक्षा महिलाएं बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लेती रही हैं.
यही कारण है कि महिला वोटरों को साधने के लिए पार्टियों ने एक से बढ़कर एक वादे भी किए हैं.
फिर चाहे वह चुनाव से ठीक पहले एनडीए की तरफ़ से डीबीटी (डायरेक्ट बनेफ़िट ट्रांसफ़र) के ज़रिए महिलाओं को आर्थिक सहायता देने की बात हो या फिर महागठबंधन का ये वादा कि अगर वो सत्ता में आया तो 'माई बहन मान योजना' के तहत महिलाओं को 2500 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे.
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विधवाओं की पेंशन में वृद्धि से लेकर आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय बढ़ाने तक ऐसे वादों की लंबी फ़ेहरिस्त है.
लेकिन सवाल यहां ये है कि वादों से इतर क्या इन्हीं पार्टियों ने प्रभुत्व और संख्या के अनुरूप महिलाओं को टिकट दिए हैं? चुनावी राजनीति में उन्हें वो हिस्सेदारी दी है, जिसकी वो हक़दार हैं?
आंकड़े क्या कहते हैं?
बिहार में दो प्रमुख गठबंधन हैं - एनडीए और महागठबंधन. संयुक्त रूप से देखा जाए तो इस बार एनडीए की तरफ़ से कुल 34 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, वहीं महागठबंधन की तरफ़ से 30 महिलाओं को टिकट दिया गया है.
महिलाओं को सबसे अधिक टिकट देने वाली पार्टी आरजेडी है.
नीतीश कुमार की पार्टी ने कितनी महिलाओं को दिया टिकट
ANI बीजेपी और जेडीयू ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया है. सीट बंटवारे में दोनों ही पार्टियों के हिस्से 101 सीटें आई हैं.
यानी दोनों ही पार्टियों ने महिलाओं को 13 प्रतिशत से भी कम की भागीदारी दी है.
जेडीयू और बीजेपी के इतर एनडीए गठबंधन का हिस्सा जीतन राम मांझी की पार्टी हम (एस), चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी है.
एलजेपी (आर)एनडीए में सीटों के बंटवारे के मामले में तीसरे नंबर पर चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) है. पार्टी को 29 सीटें दी गई हैं, जिनमें 5 पर महिला उम्मीदवारों को मौका दिया गया है.
हालांकि पहले पार्टी ने छह सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे थे.
बलरामपुर से संगीता देवी, मखदुमपुर से रानी कुमारी, मढ़ौरा से सीमा सिंह, गोविंदपुर से बिनीता मेहता, बोचहा से बेबी कुमारी और फतुहा से रुपा कुमारी शामिल थीं.
लेकिन तकनीकी वजहों से सीमा सिंह का नामांकन रद्द हो गया.
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर)बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा भी एनडीए का हिस्सा है. गठबंधन में उनके हिस्से छह सीटें आईं हैं, जिसमें दो सीटोंपर उन्होंने महिलाओं को बतौर उम्मीदवार उतारा है.
इमामगंज सीट से दीपा कुमारी और अतरी विधानसभा सीट से ज्योति देवी. दीपा कुमारी जीतन राम मांझी की बहू और ज्योति देवी समधन हैं.
एनडीए के सहयोगी दल होने के नाते छह सीटें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के खाते में भी गई हैं.
उपेंद्र कुशवाहा ने इन छह सीटों में से एक सीट पर अपनी पत्नी स्नेहलता को उम्मीदवार बनाया है. वह सासाराम से चुनाव लड़ रही हैं और पार्टी की इकलौती महिला उम्मीदवार भी हैं.
महागठबंधन का हिसाब-किताबमहागठबंधन में कुल सात पार्टियां हैं. आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (एमएल), वीआईपी, आईआईपी.
आरजेडी सबसे अधिक 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, कांग्रेस ने 61 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, वीआईपी ने 14, सीपीआई (एमएल) ने 20, सीपीआई 9, सीपीएम ने 4 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं.
वहीं आईपी गुप्ता की आईआईपी को 3 सीटें मिली हैं. ऊपर से कई ऐसी सीटें भी हैं, जहां महागठबंधन के ही उम्मीदवार एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं.
लेकिन बात महिलाओं की भागीदारी की करें तो महागठबंधन में महिलाओं को सबसे ज़्यादा टिकट इस बार आरजेडी ने दिए हैं.
पार्टी ने 24 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया है.
हालांकि इनमें से एक मोहनिया सीट से प्रत्याशी श्वेता सुमन का नामांकन रद्द हो गया, जिसके कारण अब आरजेडी की टिकट पर 23 महिला उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में हैं.
कांग्रेसमहागठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने मात्र पांच महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाया है.
इनमें सोनबरसा सीट से सरिता देवी, कोरहा से पूनम पासवान, हिसुआ से नीतू कुमारी, बेगूसराय सीट से अमिता भूषण और राजा पाकर की सीट से प्रतिमा कुमारी शामिल हैं.
वीआईपीमुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने कुल चौदह सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें केवल एक सीट ऐसी है जहां किसी महिला को प्रत्याशी बनाया गया है.
ये सीट है बिहपुर और उम्मीदवार हैं अपर्णा कुमारी मंडल.
लेफ़्ट पार्टियां
Getty Images दीघा विधानसभा से सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार दिव्या गौतम. लेफ़्ट की तीनों पार्टियों को मिलाकर केवल एक महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में नज़र आती हैं. दिव्या गौतम दीघा विधानसभा से सीपीआई (एमएल) की इकलौती महिला उम्मीदवार हैं.
जबकि सीपीआई, सीपीएम ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दिया है.
जनसुराज में कितनी महिलाओं को टिकटबिहार की राजनीति में सबसे नए प्लेयर के तौर पर उभरे प्रशांत किशोर ने प्रदेश की सभी 243 सीटों पर उम्मीवार उतारे हैं. इन प्रत्याशियों में 25 महिलाएं हैं. जबकि प्रशांत किशोर का दावा था कि वह जनसुराज से 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देंगे.
मायावती की बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा भी बिहार में अपनी क़िस्मत आज़मा रही है. पिछली बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी एक सीट जीतने में सफल रही थी लेकिन बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले जमा ख़ान जेडीयू में शामिल हो गए.
इस बार पार्टी ने 26 महिलाओं को टिकट दिया है, जो कि दूसरी पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक है.
पिछले चुनाव के आंकड़े क्या कहते हैंचुनावी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का सवाल कोई नया नहीं है. हर चुनाव में ही ये सवाल सिर उठाता है कि इस बार किस पार्टी ने कितनी महिलाओं को टिकट दिया है.
अगर बीते चुनाव के आंकड़े देखें तो साल 2020में कुल 370 महिलाएं चुनाव में बतौर उम्मीदवार भाग लेने उतरीं थीं. इनमें 26 विधानसभा पहुंचने में सफल रहीं.
जेडीयू से 26 महिलाओं को, बीजेपी से 13 महिलाओं को और आरजेडी से 16 महिलाओं को टिकट दिए गए थे.
साल2015 में कुल 272 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में थीं. इनमें सबसे अधिक बीजेपी ने (14) , आरजेडी (10) ,जेडीयू (10) , कांग्रेस ने 5, हम (एस) ने 4, एलजेपी ने 4, सीपीआई ने 2, सीपीआईएम ने 3 और सीपीआई (एमएल) ने 7 महिलाओं को टिकट दिया था.
इनमें से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाली 28 महिला विधायकों में जेडीयू से 9 , आरजेडी से 10, बीजेपी से 4, कांग्रेस से 4 और एक निर्दलीय थीं.
वैसे ही साल 2010 के आंकड़े देखें तो कुल महिला उम्मीदवारों की संख्या 214 थी.
कांग्रेस ने इस साल सबसे अधिक 32 महिलाओं को टिकट दिए थे लेकिन एक भी जीतने में सफल नहीं हुईं.
दूसरी प्रमुख पार्टियों की बात करें तो जेडीयू ने 23, बीजेपी ने 12 और आरजेडी ने 11 महिला उम्मीदवार उतारे थे.
जिनमें सबसे अधिक जेडीयू की 21 महिला विधायक चुनी गईं, बीजेपी की 10 और एक बतौर निर्दलीय महिला उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने में सफल रहीं.
एक्सपर्ट्स की रायक्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर में राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर और सेंटर फॉर दी स्डटी ऑफ़ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स (सीएसएसपी) के निदेशक डॉ एके वर्मा बताते हैं कि बिहार के स्थानीय निकायों में 1.4 लाख महिला-जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 3 महिलाएं लोकसभा में और 26 विधानसभा में हैं जो उनकी राजनीतिक सहभागिता और राजनीतिक चेतना के अनुरूप नहीं है.
लेकिन स्थानीय निकायों ने महिलाओं को पंचायत स्तर पर 50% आरक्षण देकर एक अच्छी मिसाल पेश की है और इसका असर हमें आने वाले सालों में नज़र आएगा.
क्योंकि महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी को अब ज़यादा वक़्त तक नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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