Top News
Next Story
Newszop

ग़ज़ा से मैं बाहर निकल आया लेकिन मेरा परिवार वहीं रह गया, मुझे इसका पछतावा है-बीबीसी संवाददाता की आपबीती

Send Push
MAHMUD HAMS/AFP via Getty Images 13 अक्टूबर 2023 को ली गई इस तस्वीर में एक फ़लस्तीनी परिवार ग़ज़ा शहर से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है (सांकेतिक तस्वीर)

मेरे परिवार को ग़ज़ा छोड़े हुए अब क़रीब दस महीने हो गए हैं, हम अभी भी खोने के दर्द, युद्ध के असर और इसके भयंकर मंज़र के साथ जी रहे हैं.

इस महीने, इस युद्ध को शुरू हुए एक साल हो गया. बीते साल सात अक्टूबर को हमास के लड़ाकों ने इसराइल पर हमला किया था, जिसके बाद इसराइल ने ग़ज़ा पर हमले शुरू किए, ये हमले अब तक नहीं रुके हैं.

युद्ध के एक साल पूरे होने से पहले इसी महीने हमने इस युद्ध के सबसे दर्दनाक आठ घंटों का अनुभव किया था.

ग़ज़ा में रहने वाले मेरी पत्नी के कज़न ने हमें एक वीडियो भेजा था. इसमें वो कह रहे थे, "टैंकों ने हमें घेर लिया है और वो लोग हम पर गोलियां चले रहे हैं. हो सकता है कि ये हमारी ज़िंदगी की आख़िरी घड़ी हो."

उन्होंने कहा, "हमारे लिए प्रार्थना करो और अगर कुछ कर सको तो हमें बचाने के लिए कुछ करो."

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए

वीडियो देखकर मेरी पत्नी गिर गईं, वो बेहोश हो गईं. उनके चाचा, चाचियां और उनका परिवार, जिसमें कुल मिलाकर 26 सदस्य थे, उन पर हमला हो रहा था.

हमास के लड़ाकों को निशाना बनाने के लिए इस पूरे साल ग़ज़ा के शहरों और गांवों पर इसराइली सेना की कार्रवाई और हमले देखे गए.

उस वीडियो के कई घंटों बाद तक हमें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस दौरान उनके इलाक़े में लगातार बमबारी हो रही थी.

आख़िर में उनकी तरफ से एक ऑडियो संदेश आया, जिसमें उन्होंने बताया, "चार लोग घायल हो गए हैं. तुम्हारी चाची वफ़ा को गंभीर चोट लगी है, उनकी स्थिति गंभीर है."

मैंने रेड क्रॉस को, फ़लस्तीनी रेड क्रेसेन्ट को और जो कोई भी मदद कर सकता है उसे अनगिनत फ़ोन कॉल्स किए.

आठ घंटों के बाद इसराइली सेना ने उन्हें जगह छोड़कर जाने और घायलों को पैदल वहां से बाहर निकालने की इजाज़त दी.

लेकिन वफ़ा के लिए तब तक काफी देर हो चुकी थी. अस्पताल पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया.

ग़ज़ा में अब भी हमारे कई सारे रिश्तेदार हैं. मेरे पिता भी वहीं हैं, वो दक्षिणी शहर ख़ान युनूस में एक टेंट में रह रहे हैं. इस हफ़्ते वहां पर फिर से बम गिराए गए थे.

जब इस्तांबुल से मैं उन्हें फ़ोन करता हूं तो मैं अपनी ग़लती के लिए परेशान हो जाता हूं. मैं अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ इस्तांबुल भाग आया था.

मेरे जैसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें अपनी सुरक्षा के लिए तुर्की, मिस्र, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप समेत दुनिया भर के देशों में पलायन करना पड़ा है.

ग़ज़ा से हर कोई बाहर नहीं निकल सकता है. केवल वो लोग ही वहां से निकल सकते हैं जिनके पास पैसे हैं और वो दुनिया में कहीं भी जाने के लिए पैसे दे सकते हैं.

बीते साल नवंबर से अब तक क़रीब एक लाख से ज़्यादा लोग ग़ज़ा के दक्षिण की ओर से मिस्र में प्रवेश कर चुके हैं.

उन्हें इसराइली हवाई हमलों से तत्काल कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन कई लोग अपने परिवार के लिए खाना, बच्चों की शिक्षा और सामान्य जीवन जीने की सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

image REUTERS/Ibraheem Abu Mustafa इसराइली सेना ने ग़ज़ा शहर को घेरने के बाद वहां के लोगों को जल्द से जल्द बाहर निकलने की चेतावनी दी.

काहिरा के नस्र शहर में एक खुली जगह में बने कैफे में दर्जनों रिफ्यूजी छोटे समूह में इकट्ठा होकर अपनी कहानियां साझा कर रहे हैं.

ये लोग उन लोगों की याद को कम करने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके साथ नहीं हैं. ये लोग इस उम्मीद में हैं कि युद्ध जल्द ही ख़त्म हो जाएगा और वो अपने घर वापस लौट जाएंगे. लेकिन चिंता का माहौल लगातार बना रहता है.

तेज आवाज़ में स्पीकर पर फ़लस्तीन का एक पारंपरिक गाना बजता है. यह फ़लस्तीन के गायक मोहम्मद असफ़ का हिट गाना है. असफ़ होंने कुछ साल पहले ही अरब आइडल प्रतियोगिता जीती थी.

गीत के बोल हैं- “ग़ज़ा से गुज़रो और इसकी मिट्टी को चूमो. यहां के लोग बहादुर हैं और इसके पुरुष मज़बूत हैं.”

58 साल के अबु अनस अय्यद सभी के साथ वहां पर बैठे हैं और गाना सुन रहे हैं. उनकी पिछली ज़िंदगी में वो “बजरी का राजा” के रूप में जाने जाते थे. वो एक सफल कारोबारी थे और ग़ज़ा में बनने वाली इमारतों के लिए सामान पहुंचाते थे.

वो अपने परिवार और बच्चों के साथ ग़ज़ा से भाग आए थे. लेकिन वो कहते हैं, “जब भी कोई मिसाइल ग़ज़ा की इमारत से टकराती है तो ऐसा लगता है जैसे मेरे दिल का टुकड़ा टूट गया हो.”

वो बताते हैं, “मेरा परिवार और मेरे दोस्त अभी भी वहां हैं.”

“ये सब कुछ टाला जा सकता है, लेकिन हमास की राय अलग है.”

वो पिछले साल सात अक्टूबर को ईरान के समर्थन वाले गुट, हमास के हमले और उसके बाद के परिणामों पर अफ़सोस जताते हैं.

उन्होंने कहा, “ग़ज़ा से मुझे प्रेम है, इसके बावजूद अगर हमास सत्ता में रहा तो मैं वहां वापस नहीं लौटूंगा.”

वो कहते हैं, “मैं ये नहीं चाहता कि ईरान के हित के लिए लापरवाह नेताओं के खेल में मेरे बच्चों का इस्तेमाल मोहरे के रूप में हो.”

image EPA ग़ज़ा के कई लोग मिस्र की राजधानी काहिरा में बस गए हैं

पास में ही महमूद अल खोज़ोंदर बैठे हैं. वो युद्ध से पहले ग़ज़ा में अपने परिवार की जानी मानी हम्मस और फलाफल की दुकान चलाते थे. ये अपने इलाके़ की एक ऐसी जगह थी जो अपने खाने और जाने-माने मशहूर ग्राहकों के लिए जानी जाती थी.

फ़लस्तीन के पूर्व राष्ट्रपति यासिर अराफ़ात अक्सर यहां खाने के लिए जाया करते थे.

महमूद अपने फ़ोन पर मुझे अपने आलीशान घर की पुरानी तस्वीरें दिखाते हैं. वो अब दो कमरे वाले छोटे से अपार्टमेंट में रहते हैं. उनके बच्चे स्कूल नहीं जा सकते.

उन्होंने कहा, “यह एक दयनीय जीवन है. हमने सब कुछ खो दिया लेकिन हमें फिर से खड़े होना होगा. हमें अपने बच्चों के लिए खाना चाहिए और ग़ज़ा में जो लोग अभी भी हैं उनके लिए सहायता चाहिए.”

मिस्र में निर्वासित की तरह जीवन जीना आसान नहीं है. यहां के अधिकारियों ने फ़लस्तीनी लोगों को अस्थायी रूप से रहने की अनुमति दी है लेकिन वे आधिकारिक तौर पर यहां रहने की अनुमति नहीं देते. वो इन्हें शिक्षा और अन्य ज़रूरी सेवाओं की भी सीमित सुविधा देते हैं.

image REUTERS/Ibraheem Abu Mustafa ग़ज़ा से बाहर यात्रा करने का खर्च बहुत अधिक है और कई लोग वहां शिविरों में रह रहे हैं

यहां रह रहे ग़ज़ा के काफी लोग अपने परिजनों को पैसे भेजने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पैसे भेजने का शुल्क बहुत ज़्यादा है और युद्ध के सौदागर इसके लिए 30 फ़ीसदी हिस्सा लेते हैं.

महमूद मुझसे कहते हैं, “यह देखकर दिल टूट जाता है कि हमारे परिजनों की पीड़ा से मुनाफा कमाया जा रहा है.”

महमूद, ग़ज़ा में एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाते थे. इन दिनों उन्हें अपनी बहन को पैसे भेजने के लिए काहिरा की एक दुकान पर नकदी लेकर जाना पड़ता है.

वो पैसे भेजने की प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं, “इसकी कोई रसीद नहीं, कोई सबूत नहीं, पैसे मिलने के बाद उन्हें सिर्फ एक संदेश दिया जाता है, जिसमें बताया गया कि पैसे पहुंच गए हैं.”

वो कहते हैं, “इसमें जोखिम है, क्योंकि हम ये नहीं जानते कि लेनदेन में कौन शामिल हैं. लेकिन हमारे पास इसके सिवा कोई विकल्प नहीं है.”

वो कहते हैं कि यह हर किसी के लिए निराशा से भरा समय है.

बीते कुछ सालों से तुर्की में मैंने अपने परिवार के रहने के लिए शांतिप्रिय माहौल बनाने की व्यर्थ कोशिश की है.

जब भी हम किसी रेस्तरां में जाते हैं, मेरे बच्चे ग़ज़ा में अपने पसंदीदा स्थानों, अपना बड़ा घर, खेल के सामानों की दुकान, हॉर्स क्लब के अपने दोस्त और अपने क्लासमेट्स को याद करने लगते हैं.

उनमें से कुछ क्लासमेट इसराइली हवाई हमलों में मारे गए हैं. ये हमले अब तक जारी हैं.

लेकिन सात अक्तूबर के बाद से हमारे लिए जैसे समय रुक-सा गया है. हमें अभी भी उस दिन से आगे बढ़ना है.

हम भले ही शारीरिक रूप से वहां से बच निकले हों, लेकिन हमारी आत्मा और हमारा दिल अभी ग़ज़ा में हमारे परिजनों के साथ ही जुड़ा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Loving Newspoint? Download the app now