हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले की सेराज घाटी में क़रीब पंद्रह दिन पहले भारी बारिश से कैसी तबाही मची थी, उसकी पूरी तस्वीर धीरे-धीरे सामने आ रही है.
आपदा के बाद यहां तबाही के निशान बिखरे पड़े हैं. पहाड़ियों पर हर तरफ मलबा और पत्थर नज़र आते हैं. सेराज घाटी का एक हिस्सा बारिश से हुई तबाही में पूरी तरह बर्बाद हो गया है. फिलहाल राहत और पुनर्वास का काम जारी है.
सेराज घाटी के देजी गाँव के 35 साल के मुकेश कुमार ने फ़ोन पर दुखी आवाज़ में कहा, "अब क्या बोलें? कुछ नहीं बचा."
मुकेश कहते हैं कि इस आपदा ने उनके पास ज़िंदगी फिर से शुरू करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं छोड़ा है.
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30 जून और एक जुलाई की दरम्यानी रात को बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ में मुकेश का पूरा परिवार बह गया. उनकी पत्नी, दो बच्चे (तीन साल की बेटी और नौ साल का बेटा) और माता-पिता बह गए.
मुकेश कहते हैं कि उनके परिवार के सदस्यों का अभी तक कोई पता नहीं चला है.
मुकेश का कहना है, "मैं उस रात किसी काम से अपने गाँव से कुछ किलोमीटर दूर थुनाग में था. रात में ज़ोरदार बारिश हुई और मैंने देखा कि पहाड़ी से पानी तेज़ी से नीचे आ रहा है, वो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को बहा ले जा रहा है. मैं डर गया."
"सुबह कुछ देर के लिए बारिश रुक गई थी. सड़क से संपर्क नहीं होने से घर आने के लिए मैं क़रीब 5-6 किलोमीटर पैदल चला. हर जगह मलबा देखकर मैं दंग रह गया. न कोई परिवार था, न घर, न कोई खेती की ज़मीन, बस कुछ था तो पत्थर, कीचड़ और पानी."
तब से वो एनडीआरएफ़ और अन्य ग्रामीणों के साथ पहाड़ी से नीचे मलबे में अपने परिवार को लगातार खोज रहे हैं, लेकिन अब तक उनका कोई सुराग नहीं मिला है.
मुकेश पेशे से किसान हैं और वो कहते हैं कि उनकी चार बीघा ज़मीन पूरी तरह पानी में बह गई है.
मंडी में प्रवदा पंचायत के गोहर गांव में ग्यारह महीने की निकिता कुमारी अभी ज़िंदगी के बारे कुछ समझ भी नहीं पाई हैं, और उनका सबकुछ खो चुका है.
स्थानीय लोगों ने बताया कि 30 जून की रात निकिता की मां, पिता और दादी पानी की तेज़़ धार को घर से दूर मोड़ने के लिए निकले थे. उस वक़्त निकिता सो रही थी. लेकिन पानी की धार अचानक और तेज़ हो गई और उसमें निकिता को छोड़ परिवार के अन्य सभी लोग बह गए.
प्याला गाँव की 27 साल की महेशा कुमारी भी सदमे में हैं. इस बारिश के कारण आई तेज़ बाढ़ में उनकी बड़ी बहन, 32 साल की कांता देवी और उनकी तीनों बेटियां पानी के तेज़ बहाव में बह गए.
बच्चियों की उम्र 11 साल, पांच साल और तीन साल थी.
महेशा कुमारी ने फ़ोन पर बताया, "सब कुछ इतनी जल्दी ख़त्म हो गया कि अब भी यकीन नहीं हो रहा है. मेरी बहन का घर मेरे घर से महज़ आधा किलोमीटर दूर था, लेकिन वहां अब ज़िंदगी की कोई निशानी नहीं बची है."
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महेशा ने बताया कि उनके बहनोई दर्जी का काम करते हैं और 30 जून को किसी काम से अपने गांव मुराहला गए हुए थे. उस रात कांता देवी अपनी तीनों बेटियों के साथ घर पर थीं.
महेशा ने बताया, "अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई और पूरे इलाक़े में पानी भर गया. मैं और मेरे माता-पिता घर से बाहर निकलकर पास की किसी दूसरी इमारत में चले गए."
"जब गाँव वाले सुबह मेरी बहन और उनकी बेटियों को ढूँढ़ते हुए हमारे घर आए, तब हमें घटना के बारे में जानकारी मिली."
महेशा ने रोते हुए बताया, "रात में घना अँधेरा था और हमें इतना डर लग रहा था कि उस वक़्त किसी सुरक्षित जगह पर जाने के अलावा हमें और कुछ सूझ नहीं रहा था. फ़ोन सिग्नल बंद हो गए थे. मेरी बहन शायद अपनी तीनों बेटियों के साथ घर से बाहर नहीं निकल पाई थी."
कांता और उनकी तीनों बेटियां अभी भी लापता हैं और 11 दिनों की तलाश में अब तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है.
महेशा कुमारी ने बताया, "हमारे गाँव की 90 फ़ीसदी ज़मीन इस आपदा में बह गई. हमारे गाँव के 85-90 साल के बुज़ुर्गों ने भी कहा कि उन्होंने भी अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसी आपदा नहीं देखी."
राकचुई के वीरेंद्र ठाकुर की सौतेली मां इस आपदा के बाद से लापता हैं.
वीरेंद्र ने बताया, "हम सब सो रहे थे. अचानक मुझे भूकंप जैसा कुछ महसूस हुआ और मैं उठ गया. बाहर का मंज़र देखकर डर लग रहा था."
"तेज़ बारिश के बीच भारी मात्रा में पानी और चट्टानें मेरे घर से पास से निकल रही थी. मैंने अपने परिवार के लोगों को बाहर निकलने को कहा और हम उफनते नालों से बचते हुए दूसरी जगह चले गए. हालाँकि इस बारिश में रसोई में सो रही मेरी सौतेली मां बह गईं."
वीरेंद्र ठाकुर ने हाल ही में बैंक से कर्ज़ लेकर एक सेब का बाग़ लगाया था, जो इस बारिश में पूरी तरह बर्बाद हो गया.
उनकी 10 बीघा ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा इस पानी में बह गया है और उनके घर को भी काफ़ी नुक़सान हुआ है.
वीरेंद्र ने कहा कि जो भी थोड़ी-बहुत सेब की फसल बची है, उसे समय पर बाज़ार पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि जल्दी से सड़क बन जाए.
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ज़िला प्रशासन के आँकड़ों के मुताबिक़ सेराज इलाक़े और इसके आसपास बादल फटने की 14 घटनाओं में 15 लोगों की मौत हो गई है और 27 लोग लापता हैं. इनमें से 11 लोग पखरेल पंचायत के देज़ी गाँव के हैं.
सेराज घाटी के स्थानीय लोगों ने बताया कि कभी हरी-भरी रही यह घाटी अब तबाही की तस्वीर में बदल गई है. यहां हर तरफ मलबा, उखड़े हुए पेड़ बिखरे हैं और कुछ जगहों पर विकास के नामोनिशान तक नहीं बचे हैं.
इलाक़े में घर और ज़मीन, पानी के तेज़ बहाव में बह गए हैं, दूसरी जगहों से सड़क संपर्क टूट गया है. यहां फ़ोन, बिजली और पानी की आपूर्ति ठप हो गई है.
सेराज घाटी के कई हिस्से अंदर से कट गए हैं, जिनमें थुनाग, बगस्याड़ और जंजैहली इलाक़े सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.

कुछ दिन पहले थुनाग तक सड़क संपर्क बहाल कर दिया गया है, जिससे राज्य सरकार को राहत और पुनर्वास के काम को आगे बढ़ाने में मदद मिली है. इलाक़े में मुख्य रूप से प्रभावित लोगों के लिए प्रशासन की तरफ से राशन, कंबल और अन्य ज़रूरतों की व्यवस्था की गई है.
सेराज घाटी के ज़्यादातर लोग किसान, बागवान या कुशल मज़दूर हैं. यहां के कुछ लोग सरकारी नौकरियों में भी हैं. इस दुर्गम इलाक़े में उनका जीवन पहले से ही मुश्किलों से भरा था.
अधिकतर लोगों के घर या तो बह गए हैं, बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं या रहने के लिए असुरक्षित हो गए हैं. इसलिए उन्हें दूसरी इमारतों, विश्राम गृहों और स्कूलों में शरण लेनी पड़ रही है.
एक ही रात में कई बार बादल फटने की घटनाओं से उन्हें जान-माल के नुक़सान तो हुआ ही है, इस कारण उनकी ज़िंदगी भी पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गई है. हालात को देखकर लगता है कि इन लोगों की ज़िंदगी को सामान्य होने में काफ़ी समय लगेगा.
ज़िला प्रशासन, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए), एनडीआरएफ़, एसडीआरएफ़, स्थानीय पुलिस और यहां तक कि गाँवों के स्थानीय स्वयंसेवक बचाव, राहत और पुनर्वास के काम में लगे हुए हैं.
जिन इलाक़ों में राहत सामग्री पहुंचाना अभी भी कठिन हो रहा है, वहां ज़िला अधिकारी खच्चरों की मदद ले रहे हैं.
'नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करनी होगी'पखरैल पंचायत के एक सामाजिक कार्यकर्ता और किसान अच्छर सिंह ने बताया, "हमें थुनाग तक पहुँचने के लिए छह से सात किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा है ताकि हम अपना फ़ोन और पावर बैंक चार्ज कर सकें. हम बिजली और पानी के बिना बड़ी मुश्किल से काम चला रहे हैं."
वो कहते हैं, "ज़्यादातर लोगों ने अपना घर, अपना सामान और साथ-साथ रोज़गार खो दिया है. उनकी ज़मीन बह गई है. ज़्यादातर लोगों को अब नए सिरे से ज़िंदगी की शुरुआत करनी होगी."
लेकिन इस आपदा में यहां लोगों के बीच की सामुदायिक भावना भी सामने आई है. लोग न केवल सुरक्षित स्थानों पर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, बल्कि मरम्मत के काम में भी स्वेच्छा से जुटे हुए हैं.
बड़योगी गांव (जंजैहली के नीचे) की किसान हिमा देवी ने बताया, "हमारे गांव में भी नुक़सान हुआ है. यहां किसी की मौत तो नहीं हुई, लेकिन पानी के पाइप और पैदल पुल बह गए हैं. गांववाले आईपीएच (लोक स्वास्थ्य) विभाग और अन्य सरकारी कर्मचारियों की मदद कर रहे हैं."
उन्होंने बताया कि जंजैहली घाटी में अभी भी सड़क संपर्क की दिक्कत है.
उनका कहना है, "इस हफ्ते एक बार किसी रिश्तेदार से कुछ सेकंड के लिए बात हो पाई थी. उन्होंने बताया कि बिजली और नेटवर्क की दिक्कत के चलते फ़ोन काम नहीं कर रहे हैं."
हिमा देवी ने कहा कि उन्हें बगस्याड़ के शरण गाँव के बारे में सोचकर बहुत दुख हो रहा है, जहाँ वे पली-बढ़ी थीं. वो कहती हैं कि उन्हें पता चला कि शरण की खूबसूरत समतल ज़मीन इस आपदा में पूरी तरह से नष्ट हो गई.
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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस हफ़्ते की शुरुआत में दूसरी बार सेराज के बारिश और बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया और स्थानीय लोगों से बात की.
उन्होंने बुधवार को विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर के साथ सेराज घाटी के थुनाग इलाक़े में हुए नुक़सान का भी जायज़ा लिया.
मुख्यमंत्री ने लोगों को भरोसा दिया कि राज्य सरकार बेघर हुए लोगों और उनकी ज़मीनों को हुए नुक़सान का आकलन करने के बाद, उनके जीवन को फिर से पटरी पर लाने के साथ-साथ इलाक़े में बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने के लिए हर संभव मदद करेगी.
सुक्खू ने लोगों से कहा कि वे अपना घर नालों से दूर और सुरक्षित जगहों पर बनाएं.
उन्होंने कहा, "इस इलाक़े में ज़्यादातर लोगों की ज़मीन बह गई है. मैं बीजेपी सांसदों से आग्रह करता हूँ कि वे केंद्र सरकार से लोगों को फिर से बसाने के लिए वन भूमि उपलब्ध कराने की मांग में राज्य सरकार का सहयोग करें."
इस बीच, हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय मंत्री और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सेराज के प्रभावित इलाक़ों में स्थिति का जायज़ा लिया.
उन्होंने लोगों के राहत और पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार की ओर से हर संभव मदद देने का भरोसा दिया है.
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