नीजेर में 15 जुलाई को हुए एक चरमपंथी हमले में दो भारतीय प्रवासी मज़दूरों की मौत हो गई और एक भारतीय का अपहरण कर लिया गया.
यह हमला उस वक्त हुआ जब मज़दूर साइट पर काम कर रहे थे.
घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों ने बीबीसी को बताया कि बाइक सवार दर्जन भर हमलावरों ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी. इसके बाद अफरातफरी मच गई.
कई मज़दूर जान बचाकर भागे, जबकि कुछ ने सुरक्षाकर्मियों के पास जाकर शरण ली. अगवा हुए अधिकारी की तलाश जारी है.
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ये हमला 15 जुलाई को निर्माणाधीन साइट पर बाइक सवार हथियारबंद चरमपंथियों ने किया था. हमले के दो दिन बाद, 17 जुलाई को नीजेर स्थित भारतीय दूतावास ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस घटना की जानकारी दी.
हमले में मारे गए भारतीयों की पहचान झारखंड के बोकारो ज़िले के गणेश करमाली और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर निवासी कृष्ण कुमार गुप्ता के रूप में हुई है.
वहीं, जम्मू-कश्मीर के रामबन ज़िले के रहने वाले रंजीत सिंह का अपहरण कर लिया गया है.
18 जुलाई को एक्स पर एक अन्य पोस्ट में दूतावास ने कहा, "15 जुलाई को नीजेर के दोसो क्षेत्र में हुए एक जघन्य आतंकी हमले में दो भारतीय नागरिकों की मौत हो गई. एक अन्य भारतीय का अपहरण कर लिया गया है."
"हम शोकसंतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं. नियामी स्थित भारतीय दूतावास स्थानीय अधिकारियों के संपर्क में है ताकि मृतकों के पार्थिव शरीर को भारत लाया जा सके. साथ ही, अपहृत भारतीय की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं. नीजर में रह रहे सभी भारतीयों से सतर्क रहने को कहा गया है."
चश्मदीदों ने क्या बताया?मृतक गणेश करमाली की पत्नी यशोदा देवी का रो-रो कर बुरा हाल है. वह बार-बार कह रही हैं कि उनके पति 20 जुलाई को घर लौटने वाले थे.
गणेश करमाली के चचेरे भाई उमेश करमाली ने कहा, "ख़बर सुनने के बाद से भाभी की यही हालत है. तीन दिनों से बिना खाना खाए और बिना नींद के वह पूरी तरह निढाल हो चुकी हैं."
उमेश करमाली के मुताबिक, गणेश अपने जीजा प्रेम करमाली के साथ भारतीय कंपनी 'ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड' में काम करते थे. यह कंपनी नीजेर में ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.
घटना के अगले दिन, 16 जुलाई को प्रेम करमाली ने यशोदा देवी को उनके पति की मौत की जानकारी दी.
प्रेम करमाली का कहना है कि वह इस हमले के चश्मदीद हैं.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "साइट के लोकेशन नंबर 82, 84, 85 और 86 पर काम चल रहा था. यहां भारतीय मज़दूर, नीजेर के करीब दर्जन भर स्थानीय मज़दूरों और सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में काम कर रहे थे."
प्रेम करमाली के अनुसार, वह लोकेशन नंबर 84 पर थे, जबकि गणेश 86 नंबर लोकेशन पर काम कर रहे थे. घटनास्थल पर ऑपरेटर कृष्ण कुमार गुप्ता और चीफ़ सेफ्टी ऑफिसर रंजीत सिंह भी मौजूद थे.
उन्होंने बताया, "सुबह करीब दस बजे बाइक सवार दर्जन भर आतंकी फायरिंग करते हुए साइट पर घुस आए. फायरिंग देखकर हम सब विपरीत दिशा में भागने लगे. लेकिन गणेश दादा खुद को बचाने के लिए सुरक्षाकर्मियों के पास चले गए."
चीफ़ सेफ़्टी ऑफिसर का ज़िक्र करते हुए एक अन्य चश्मदीद श्रमिक बालेश्वर महतो ने बीबीसी से कहा, "हमने देखा कि मिलिटेंट्स ने रंजीत सर को बंधक बनाकर एक बाइक पर जबरन बैठाया और तेज़ी से घने जंगल की ओर ले गए. उसी दिशा में जहां हमारे ऑपरेटर कृष्ण कुमार गुप्ता कुछ देर पहले भागे थे."
बालेश्वर महतो के अनुसार, वह प्रेम करमाली और एक अन्य साथी विशेश्वर महतो के साथ लगभग पांच किलोमीटर दूर निकल गए. वहां से उन्होंने शाम करीब तीन बजे प्रोजेक्ट मैनेजर को कॉल कर सुरक्षित गेस्ट हाउस पहुंचने के लिए मदद मांगी.
बालेश्वर ने बताया कि शाम को सुरक्षाकर्मियों की एक टीम उन्हें लेने पहुंची.
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सुरक्षाकर्मियों ने रेस्क्यू के बाद तीनों भारतीय नागरिकों को उनके गेस्ट हाउस तक पहुंचाया.
गणेश करमाली के रूम पार्टनर विशेश्वर महतो ने कहा, "गणेश की कोई सूचना नहीं थी, हम बहुत डरे हुए थे."
प्रेम करमाली ने बताया कि 16 जुलाई को उन्होंने अस्पताल में सुरक्षाकर्मियों के शवों के साथ गणेश करमाली का शव देखा.
उन्होंने कहा, "मैंने फ़ौरन अपने ससुर धनाराम करमाली को बताया कि गणेश दादा नहीं रहे. उनका शव अस्पताल के शवगृह में रखा गया है."
62 वर्षीय धनाराम करमाली ने कहा, "इकलौता बेटा मेरे बूढ़े कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी छोड़कर चला गया. इस उम्र में जब मैं खुद चलने के लिए मोहताज हूं, तो उसके बच्चों का भरण-पोषण कैसे करूंगा?"
गणेश करमाली झारखंड के गोमिया ब्लॉक के कारीपानी गांव के निवासी थे. उनके परिवार में माता-पिता, पत्नी और तीन बेटियां हैं. बड़ी बेटी 10वीं, दूसरी पांचवीं कक्षा में पढ़ती है और सबसे छोटी बेटी केवल दो साल की है.
धनाराम अपने पक्के घर की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "बेटे ने तीस हज़ार रुपये प्रति महीने की तनख़्वाह से कई सालों तक पैसे जोड़कर यह घर बनवाया था. संपत्ति के नाम पर हमारे पास बस यही एक घर है."
जब उनसे पूछा गया कि क्या कंपनी ने अब तक संपर्क किया है, तो उन्होंने कहा, "हां, संपर्क तो हुआ है. लेकिन कोई यह नहीं बताता कि शव कब तक आएगा?"
धनाराम ने कहा, "हमारे समाज में जब तक अंतिम संस्कार नहीं होता, घर में चूल्हा नहीं जलता."
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इस मामले में बीबीसी ने झारखंड सरकार के लेबर सेल की टीम प्रमुख शिखा लकड़ा से बात की.
उन्होंने बताया कि मृतक गणेश करमाली के परिवार की ओर से एनओसी भारतीय दूतावास को भेज दी गई है, ताकि शव को उनके पैतृक गांव लाया जा सके.
मुआवज़े को लेकर शिखा लकड़ा ने कहा कि राशि अभी तय नहीं हुई है, लेकिन प्रक्रिया जारी है.
वहीं बोकारो ज़िले के उपायुक्त अजय नाथ झा ने कहा, "जैसे ही शव और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट यहां पहुंचेगी, कानून के तहत जो मुआवज़ा निर्धारित है, वह दिया जाएगा. साथ ही, इस परिवार की सामाजिक-आर्थिक मैपिंग कर उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाएगा."
कृष्ण कुमार गुप्ता का शव 17 जुलाई को मिलापति कृष्ण कुमार गुप्ता की मौत की खबर सुनने के बाद से 30 वर्षीय पुनिता मदेशिया सदमे में हैं.
उनके बड़े भाई प्रदीप मदेशिया ने कहा, "आज दो दिन हो गए हैं, लेकिन दीदी ने एक दाना तक नहीं खाया है."
प्रदीप के अनुसार, उनके जीजा कृष्ण कुमार गुप्ता का शव 17 जुलाई को मिला था. उन्होंने बताया कि कंपनी के लेबर कॉन्ट्रैक्टर एलके स्वामी ने उसी दिन उन्हें यह जानकारी दी थी.
प्रदीप ने बताया कि कृष्ण कुमार गुप्ता करीब पांच महीने पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से नीजेर गए थे.
प्रदीप ने कहा, "उचित मुआवज़े के लिए मैं कंपनी के एचआर से संपर्क में हूं. उम्मीद है कि दीदी को मुआवज़ा मिलेगा, ताकि वह अपनी बेटियों की बेहतर परवरिश कर सकें."

15 जुलाई की घटना में अग़वा युवक रंजीत सिंह 'ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड' कंपनी में चीफ़ सेफ़्टी ऑफ़िसर के पद पर काम कर रहे थे. वह जम्मू-कश्मीर के रामबन ज़िले के चक्का कुण्डी गांव के रहने वाले हैं.
उनकी पत्नी शीला देवी ने बताया, "14 जुलाई को बातचीत के दौरान मैंने कहा था कि अक्तूबर में आपको गए दो साल हो जाएंगे. इस पर उन्होंने कहा था कि मैं जल्द ही घर आ जाऊंगा."
शीला देवी ने कहा कि भारत लौटने की जगह अब उन्हें पति के अपहरण की सूचना कंपनी के एचआर से मिली है.
उन्होंने बताया, "एचआर ने मुझे आश्वासन दिया है कि मेरे पति जल्द ही मुक्त होकर भारत लौटेंगे."
इस मामले में कंपनी के एचआर मन्नान असर ने बीबीसी से कहा, "यह एक संवेदनशील मामला है. हम लगातार भारतीय दूतावास के संपर्क में हैं. फ़िलहाल हमारे पास कोई नई सूचना नहीं है. जब कोई जानकारी मिलेगी, तो जरूर साझा करेंगे."
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25 अप्रैल को नीजेर के एक अन्य इलाके में हुए हमले में पांच प्रवासी मज़दूरों का अपहरण हुआ था. ये सभी झारखंड के गिरिडीह ज़िले के निवासी हैं.
चंद्रिका महतो गिरिडीह के दोंडली गांव से हैं, जबकि मुंदरो गांव के रहने वाले संजय महतो, राजू महतो, फलजीत महतो और उत्तम महतो हैं.
इनके परिवारों का कहना है कि घटना को तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है.
इस संबंध में विदेश मंत्रालय के अधीन 'प्रोटेक्टर ऑफ इमिग्रेंट्स' के पदाधिकारी सुशील कुमार ने बीबीसी को बताया कि वे मेल के ज़रिए लगातार भारतीय दूतावास के संपर्क में हैं. हालांकि, पांचों प्रवासी मज़दूरों को लेकर अब तक कोई सूचना नहीं है.
वहीं, नीजेर स्थित भारतीय दूतावास ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में वहां रह रहे सभी भारतीय नागरिकों को अत्यधिक सावधानी बरतने और सतर्क रहने की सलाह दी है.
नीजेर में मौजूद तीन भारतीय प्रवासी मज़दूर, जिन्होंने 15 जुलाई के हमले को अपनी आंखों से देखा है, अभी भी डरे हुए हैं.
उनमें से एक, विशेश्वर महतो ने कहा, "हम सभी तत्काल भारत लौटना चाहते हैं. इस संबंध में हमने कंपनी से अनुरोध किया है."
कंपनी के लेबर कॉन्ट्रैक्टर एल.के. स्वामी ने पुष्टि की है कि सभी मज़दूर भारत लौटना चाहते हैं.
इनकी वापसी को लेकर झारखंड सरकार के लेबर सेल की टीम प्रमुख शिखा लकड़ा ने बीबीसी को बताया, "इस वक्त नीजेर में सभी प्रवासी मज़दूर वहां की पुलिस की सुरक्षा में हैं. वे भारतीय दूतावास के संपर्क में हैं. हमें उम्मीद है कि उनकी जल्द वतन वापसी होगी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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