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गंगा सप्तमी के दिन तर्पण के समय पितृ निवारण स्तोत्र का पाठ करें, मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

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वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विशेष रूप से मां गंगा को समर्पित किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने की परंपरा है, साथ ही पुण्यदायिनी मां गंगा और भगवान शिव की पूजा की जाती है। गंगा सप्तमी के अवसर पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को पितृ दोष मुक्ति भी मिलती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, चाहे वे जानबूझकर किए गए हों या अनजाने में। साथ ही मां गंगा की कृपा से साधक के जीवन में सुख और समृद्धि आती है। यदि आप भी पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान करने के बाद भावपूर्वक पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करें। इस दौरान पितृ निवारण स्तोत्र का पाठ और इन मंत्रों का जप करें:

1. ॐ पितृ देवतायै नम:
2. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।
3. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव चनम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:
4. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव चनम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:


5. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहिशिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
6. गोत्रे अस्मतपिता (पितरों का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

7. गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
8. गोत्रे मां (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

पितृ निवारण स्तोत्र

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।

गंगा सप्तमी के दिन इस स्तोत्र और मंत्रों का पाठ करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके साथ-साथ जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

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