कानपुर समाचार: सरकारी अस्पतालों का उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों का इलाज करना है, लेकिन जब ये अस्पताल फर्जीवाड़े का केंद्र बन जाएं, तो यह गंभीर चिंता का विषय है। कानपुर में, DM जितेंद्र कुमार सिंह के निरीक्षण के दौरान पटकापुर सरकारी अस्पताल में एक बड़ा घोटाला सामने आया, जहां डॉक्टरों ने मरीजों के नाम पर झूठे आंकड़े दर्ज कर सरकार को गुमराह किया।
DM का निरीक्षण और फर्जीवाड़ा
DM जितेंद्र कुमार सिंह ने रविवार को बिरहाना रोड स्थित पटकापुर सरकारी अस्पताल का आकस्मिक निरीक्षण किया। अस्पताल की इंचार्ज डॉ. दीप्ति गुप्ता ने उन्हें एक रजिस्टर दिखाया, जिसमें लिखा था कि सुबह से 25 मरीजों का इलाज किया गया है। सभी मरीजों के नाम और मोबाइल नंबर भी उसमें दर्ज थे। लेकिन, रजिस्टर को देखकर DM को संदेह हुआ, क्योंकि नाम जल्दबाजी में लिखे गए थे। उन्होंने सच्चाई जानने के लिए रजिस्टर में दर्ज फोन नंबरों पर कॉल करना शुरू किया।
पहला फोन मोहम्मद शाहिद नामक व्यक्ति को किया गया, जिसने कहा, "सर, मैं तो बीमार नहीं हूं, फिर अस्पताल क्यों जाऊंगा?" यह सुनकर DM चौंक गए। उन्होंने दूसरे और तीसरे मरीजों को भी कॉल किया, और सभी ने यही कहा कि उनके नाम फर्जी हैं।
DM का कड़ा कदम
जब DM ने डॉ. दीप्ति गुप्ता से इस घोटाले के बारे में पूछा, तो उन्होंने स्वीकार किया कि संख्या बढ़ाने के लिए फर्जी मरीजों के नाम दर्ज किए गए थे। इसके बाद DM ने अस्पताल के सभी स्टाफ से पूछताछ की और तुरंत सीएमओ और अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया। DM ने यह भी बताया कि डॉ. दीप्ति गुप्ता को निलंबित करने की सिफारिश शासन को भेज दी गई है।
फर्जी मरीजों के नाम पर दवाइयों की हेराफेरी का शक
इस घोटाले के उजागर होने के बाद यह सवाल उठता है कि क्या इन फर्जी मरीजों के नाम पर मुफ्त सरकारी दवाइयां उठाई गईं? सरकारी अस्पतालों में मरीजों को मुफ्त दवाइयां दी जाती हैं, और ऐसे में यह संभावना है कि इन दवाइयों को बाहर बेचने के लिए फर्जी मरीजों के नाम दर्ज किए गए हों।
डॉक्टरों और स्टाफ की सफाई
जब मीडिया टीम ने इस मामले की जांच के लिए पटकापुर अस्पताल का दौरा किया, तो वहां डॉ. दीप्ति गुप्ता अपनी सीट पर बैठी मिलीं। स्टाफ भी मौजूद था, कंप्यूटर चालू था और रजिस्टर सामने रखा था। जब उनसे इस मामले पर सवाल किए गए, तो उन्होंने पहले कुछ भी कहने से इनकार किया। बाद में उन्होंने "दबाव में ऐसा करने" की बात कबूली। अस्पताल स्टाफ ने भी कहा कि 'मरीज कभी-कभी फर्जी नंबर दे देते हैं।' हालांकि, यह सफाई DM की जांच के सामने टिक नहीं पाई, क्योंकि जिन लोगों के नाम दर्ज थे, वे अस्पताल आए ही नहीं थे।
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