Gurugram News: किसी बाप के लिए अपने ही बेटे को कंधा देना कितना दुखदायी होता है. उस दुख को आप सिर्फ महसूस कर सकते हैं. जिस बाप ने अपने बेटे के हाथ को पकड़ चलना सिखाया हो. उसके लालन पालन में कोई कमी ना रखी हो. उसकी हर जरूरतों को पूरा करने में पीछे ना रहा हो. जो बेटा अपने पिता के लिए अंतिम सहारा बनता. वो असमय दुनिया से चला जाए तो दुख के सागर से बाहर निकला पाना किसी पिता के लिए आसान नहीं होता. लेकिन गुरुग्राम के जीतेंद्र चौधरी बेटे के गम को दिल के एक कोने में दबाकर कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. पुलिस से मिन्नतें करते रहे. अदालत का दरवाजा खटखटाया. हर तरफ से नाउम्मीदी. लेकिन उनके दिल और दिमाग ने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो बेटे अमित चौधरी के गुनहगार का राजफाश जरूर करेंगे.
2015 का केस
अगर अमित चौधरी जिंदा होता तो उसकी उम्र 23 साल की होती. लेकिन 2015 में एक हादसे में उसकी जान चली गई. अमित चौधरी के परिवार के लिए 5 जून 2015 काला दिन साबित हुआ. 10वीं में पढ़ने वाला अमित अपने चाचा के साथ सेक्टर 57 स्थित रेलवे विहार के करीब टहल रहा था. उसे क्या पता था कि कुछ पल बाद वो खूबसूरत दुनिया को नहीं देख सकेगा. एक कार सवार ने उसे टक्कर मार दी थी. टक्कर में वो बुरी तरह जख्मी हुआ. मौके पर मौजूद उसके चाचा अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले उसकी सांसों ने शरीर का साथ देना बंद कर दिया और उसकी मौत हो गई. मौत की खबर बाप और मां तक गई. हर कोई बदहवास. मां और बाप को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके कलेजे का टुकड़ा अब उसके साथ नहीं है. हालांकि बेटे की मौत को स्वीकार कर उसके पिता पुलिस स्टेशन पहुंचे. पुलिस ने उसी दिन यानी 5 जून को ही मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस ने जांच शुरू की लेकिन कार और उसके ड्राइवर के बारे में जब जानकारी नहीं मिली तो केस को बंद कर दिया.
पिता ने खुद शुरू की जांच
गुरुग्राम पुलिस से जीतेंद्र चौधरी लगातार मिन्नतें करते रहे कि एक बार फिर जांच को दोबारा शुरू करिए. लेकिन जब पुलिस वालों से किसी तरह की मदद नहीं मिली तो उन्होंने खुद गुनहगार को खोजने का फैसला किया. वो हादसे वाली जगह पर गए और वहां उन्हें कार का साइड मिरर मिला. उस साइड मिरर को लेकर आस पास के गैराज गए. अलग अलग गैराज के कर्मचारियों से हादसे के बारे में पूछा. लेकिन कोई कुछ बता नहीं सका. यह बात अलग है कि जितनी बार उन्हें नाकामी मिली उनका हौसला कमजोर नहीं पड़ा. इन सबके बीच एक मैकेनिक बताया कि जिस साइड मिरर को वो दिखा रहे हैं वो स्विफ्ट वीडीआई की है. इतनी सी जानकारी के बाद उन्हें उम्मीद नजर आई. वो साइड मिरर लेकर मारुति के शोरूम पहुंचे. साइड मिरर पर बैच नंबर का पता चल गया. इतनी जानकारी के साथ वो 2015 में ही पुलिस के पास पहुंचे पूरी जानकारी दी. लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया.
अदालत को देना पड़ा दखल
पुलिसिया बेरुखी देख 2016 में उन्होंने कोर्ट जाने का फैसला किया. जूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास(JMIC) की अदालत से दरख्वास्त कर केस को फिर से खोले जाने की अपील की. अदालत ने पुलिस से रिपोर्ट तलब की. पुलिसिया जवाब पहले की ही तरह था कि कार और ड्राइवर दोनों अनट्रेस्ड हैं. JMIC अदालत ने भी 27 जुलाई 2016 को पुलिस के जवाब को स्वीकार कर लिया. हालांकि पुलिस ने जीतेंद्र चौधरी को जानकारी नहीं दी. करीब दो साल के इंतजार के बाद 2018 जीतेंद्र चौधरी ने फिर JMIC अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत के सामने दलील दी कि उनके पास कुछ और अतिरिक्त साक्ष्य हैं जिन्हें शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन JMIC की अदालत ने याचिका को वादयोग्य नहीं बताया हालांकि यह जरूर कहा कि पीड़ित पक्ष एसएचओ के जरिए दोबारा से जांच की अपील कर सकता है. उसके बाद जीतेंद्र चौधरी ने सेशन कोर्ट में जूडिशियल मजिस्ट्रेट के फैसले को चैलेंज किया हालांकि अपील खारिज हो गई. इन सबके बीच जीतेंद्र की कोशिशों को 2020 में कोविड ने ब्रेक लगा दिया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
आरोपी के खिलाफ चार्जशीट करीब तीन साल बाद यानी 2023 में जीतेंद्र चौधरी ने एक बार फिर लड़ाई लड़ने का फैसला किया. इस दौरान जूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत ने माना कि पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई. अगर केस को बंद भी करना था तो शिकायकर्ता को बताना चाहिए था. इस आधार पर दोबारा से जांच करने का आदेश दिया. इन सबके बीच पुलिस का रवैया ढीला ही रहा, पुलिस ने अदालत से कहा कि जांच अधिकारी उत्तराखंड जाने की वजह से जांच नहीं कर पाए.
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