नई दिल्ली: भारत अपनी संस्कृति विविधता और समृद्धि के लिए जाना जाती है। भारत में कई धर्मों, भाषाओं, खान-पान, और रहन-सहन का मेल है। भारत में कई जगहों पर लोग अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और सदियों से चली आ रही परंपराओं को निभाते आ रहे हैं। ऐसी ही एक परंपरा मिथिला क्षेत्र में है, जहां लड़की की शादी लड़के से नहीं बल्कि एक पेड़ से की जाती है। मान्यता यह है कि ऐसा करने से जोड़ी हमेशा सलामत रहती है और वर-वधू दोनों के सारे दोष समाप्त हो जाता है।
पेड़ से करते है शादीजानकारी के अनुसार मिथिलांचल में शादी के दौरान एक बड़े ही गजब की रश्म निभाई जाती है। दरअसल जब यहां किसी लड़की की शादी होती है और उसके दरवाजे पर बारात आ जाती है,उस समय दुल्हन और पूरे परिवार किसी आम के बगीचा में जाकर दो पेड़ की आपस में शादी कराते है। आम और महुआ पेड़ की शादी करते हैं। इस रश्म में रिवाज में दोनों पेड़ों को कलावा बांध के उसके बाद वर वधु की शादी होती है क्या है इसके पीछे कहानी जाएंगे।
आम और महुआ पेड़ कीबता दें कि शादी के दौरान मिथिला क्षेत्र में दो पेड़ों की आपस में शादी कराई जाती है। इन पेडों में आम और महुआ पेड़ शामिल हैं। यहां आम और महुआ पेड़ की शादी होती है। दरअसल शादी के दौरान जब लड़की घर पर बारात आकर रुकती है तो उस समय दुल्हन और उसके जो परिवार के लोग हैं, आमतौर पर चाची, नानी, सगे-संबंधी, दादी सब लोकगीत गाते हुए बगीचे में जाती हैं और वहां पर महुआ और आम के पेड़ का आपस में शादी कराती हैं। शादी की विधि यह है कि वहां पर दोनों पेड़ों को कलावा बांधने के बाद ठप्पा लगाती हैं। चावल के आटे की घोल के साथ ही सिंदूर आदि से पूजा की जाती है. दोनों पेड़ों का रिश्ता जोड़ा जाता है, तब विवाह में दुल्हन-दूल्हा का रिश्ता जुड़ता है।
ये है शादी का सचदरअसल इस शादी के पीछे का कारण यह हैं कि मैथिल क्षेत्र के जो ब्राह्मण रहते हैं, वह शादी से पहले कुंडली दिखाना, मांगलिक दोष आदि रीति-रिवाजों को नहीं मानते है। मैथिल ब्राह्मण में मांगलिक और बिना मांगलिक वाली शब्द नहीं होती है। शादी के पहले दोष निवारण का काम नहीं होता है. यहां पर सभी वर-वधु को दोष मुक्त करना होता है। यह रस्म करने का अर्थ यही होता है कि नए जोड़े को सांसारिक जीवन का सभी सुख प्राप्त हो, जो भी जोड़े पर बुरा प्रभाव पड़े उससे मुक्त हो जाता है और पेड़ों की शादी में ग्रह कट जाता है।
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