New Delhi, 17 अक्टूबर . पारिजात वृक्ष, जिसे हरसिंगार या नाइट जैस्मिन भी कहा जाता है, सच में एक अलौकिक और दिव्य वृक्ष है. इसका नाम सुनते ही एक सुंदर, सुगंधित और रहस्यमय पेड़ की छवि मन में उभर आती है. इसका आयुर्वेद और पुराणों में खास महत्व बताया गया है.
समुद्र मंथन के समय जो चौदह रत्न निकले थे, उनमें से एक पारिजात भी था. कहते हैं कि इसे स्वर्ग में इंद्र के बगीचे में लगाया गया था और इसे छूने का अधिकार केवल अप्सरा उर्वशी को था.
पारिजात रात के समय खिलता है और सुबह होते ही अपने फूल जमीन पर बिखेर देता है. इसकी खुशबू इतनी मनमोहक होती है कि वातावरण पूरी तरह सुगंधित हो जाता है. इसकी सबसे बड़ी पहचान है सफेद फूल और केसरिया डंठल. यही वजह है कि इस वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है, जो मन की इच्छाएं पूरी करने वाला माना जाता है.
कहते हैं कि जब देवर्षि नारद ने पारिजात के फूल भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को भेंट किए, तो वे इतनी प्रसन्न हुईं कि उन्होंने श्रीकृष्ण से यह वृक्ष अपनी वाटिका में लाने की जिद कर दी. इंद्र ने यह मांग ठुकरा दी, लेकिन श्रीकृष्ण ने गरुड़ पर सवार होकर स्वर्ग से यह वृक्ष लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया. दिलचस्प बात यह है कि इसके फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे. यही वजह है कि इस वृक्ष से जुड़ी कई रोचक कथाएं प्रचलित हैं.
पारिजात वृक्ष दिखने में 10 से 15 फीट ऊंचा होता है और यह हजारों साल तक जीवित रह सकता है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके फूल तोड़ने की मनाही है सिर्फ वही फूल उपयोग में लाए जाते हैं जो अपने आप गिर जाते हैं. यह वृक्ष न केवल वातावरण को महकाता है बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है.
आयुर्वेद में पारिजात को औषधीय वृक्ष माना गया है. खासकर साइटिका यानी कमर से पैर तक के दर्द में यह बहुत कारगर है. इसके 10-15 ताजे पत्तों को पानी में उबालकर बना काढ़ा सुबह-शाम पीने से दर्द में तुरंत राहत मिलती है. साथ ही यह जोड़ों के दर्द, बुखार और शरीर की थकान को भी मिटाता है.
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पीआईएम/एबीएम
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