New Delhi, 20 अक्टूबर . राष्ट्रीय राजधानी में Monday सुबह वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया. इसका मतलब है कि यहां की हवा जहरीली हो गई है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सजग रहने की सलाह दी है, खासकर उन लोगों को जिन्हें सांस या दिल से जुड़ी कोई समस्या है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, दिवाली की सुबह 8 बजे दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 335 दर्ज किया गया. ऐसा रोशनी के त्योहार की पूर्व संध्या पर लोगों द्वारा पटाखे फोड़ने के कारण हुआ, जिससे गंभीर ध्वनि प्रदूषण हुआ और दिल्ली-एनसीआर धुएं से ढक गया.
सीपीसीबी का आने वाले दिनों के लिए पूर्वानुमान भी इसी तरह के रुझान का संकेत देता है, Tuesday और Wednesday को वायु गुणवत्ता और बिगड़कर “गंभीर” श्रेणी में पहुंचने की आशंका है.
New Delhi स्थित एम्स के सामुदायिक चिकित्सा केंद्र के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. हर्षल आर. साल्वे ने को बताया, “वायु प्रदूषण के बढ़ते संपर्क से स्वास्थ्य पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दोनों तरह के गंभीर प्रभाव पड़ते हैं. अल्पकालिक प्रभावों में अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), सांस लेने में तकलीफ और आंखों में खुजली शामिल हैं. लंबे समय तक संपर्क में रहने से हृदय-श्वसन संबंधी रोग, स्ट्रोक, दिल का दौरा, मनोभ्रंश और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.”
विशेषज्ञ ने बताया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे और बुजुर्ग, तथा पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोग वायु प्रदूषण के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.
सीपीसीबी ने बताया कि Sunday को शहर का दैनिक औसत एक्यूआई 296 (‘खराब’) तक पहुंचा, तो शाम 6 बजे तक 300 और शाम 7 बजे तक 302 पर पहुंच गया, यानी यह ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया.
इस बार सर्वोच्च न्यायालय ने लोगों को सीमित समय के लिए हरित पटाखे फोड़ने की अनुमति दी है, जिसे देखते हुए आशंका है कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता और भी खराब हो सकती है.
दिल्ली के एक प्रमुख अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार, चेस्ट मेडिसिन, डॉ. उज्ज्वल पारेख ने को बताया, “पिछले कुछ दिनों या एक हफ्ते में, दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने लगा है, जिससे सांस की बीमारियों या एलर्जी से ग्रस्त लोगों की परेशानी बढ़ गई है, और अगर पुनर्मूल्यांकन के दौरान बड़ी मात्रा में पटाखे जलाए गए तो यह और भी बढ़ने की उम्मीद है.”
पारेख ने कहा, “इसलिए, यह सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए एक संवेदनशील समय है क्योंकि इस दौरान उनके लक्षण बढ़ सकते हैं या बिगड़ सकते हैं.”
डॉ साल्वे ने डीजल वाहनों पर सख्ती से प्रतिबंध लगाकर, निर्माण स्थलों पर धूल प्रबंधन और औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करके उत्सर्जन कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत स्तर पर, कचरा और पराली जलाना बंद करना चाहिए और स्थायी ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करना चाहिए.
डॉक्टर ने मानव शरीर पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को रोकने के लिए सुबह-सुबह बाहरी गतिविधियों से बचने, बाहर जाते समय एन95 मास्क का उपयोग करने और फल और सब्ज़ियां (दिन में पांच सर्विंग तक), विशेष रूप से एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खट्टे फल खाने का भी सुझाव दिया.
वहीं, डॉ. पारेख ने प्रदूषण के समय सांस की बीमारी से पीड़ित रोगियों को अपनी सभी दवाएं नियमित रूप से लेते रहने की सलाह दी. साथ ही कहा, “ऐसे मरीजों को आदर्श रूप से घर के अंदर, एयर कंडीशनर वाले कमरों में रहना चाहिए, ताकि बढ़े हुए एक्यूआई के दौरान प्रदूषण का प्रभाव उन पर न पड़े या बहुत कम पड़े.”
इस बीच, गहराते वायु गुणवत्ता संकट को देखते हुए एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) का दूसरा चरण तुरंत सक्रिय कर दिया है.
सीएक्यूएम ने नागरिकों से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने, धूल भरे निर्माण कार्यों से बचने और कचरा जलाने से बचने का भी आग्रह किया है.
–
केआर/
You may also like
पीएम मोदी ने INS विक्रांत पर मनाई दिवाली, ऐतिहासिक क्षण का जश्न
बांग्लादेश: डेंगू से चार और मौत दर्ज, मृतकों की संख्या 249 हुई
'मायसा' का धमाकेदार पोस्टर आउट, रश्मिका मंदाना के एक्शन लुक ने जीता दिल
मुख्यमंत्री ने खरीदे मिट्टी के दीये, बर्तन और अन्य पारंपरिक स्वदेशी सामान, बोले-स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देना ही सच्ची दीपावली
भोपाल में प्रेमिका से नाराज युवक ने खुदकुशी की