जम्मू, 6 जुलाई . जम्मू-कश्मीर में रविवार को कई स्थानों पर मोहर्रम का जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से निकाला गया. जुलूसों में विभिन्न संगठनों, राजनीतिक पार्टियों, और धर्मों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
मोहर्रम के जुलूस को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता आर.एस. पठानिया ने कहा, “हिंदुस्तान एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) देश है, जहां हर धर्म और पंथ को अपने-अपने धर्म को मानने, पालन और प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है. इसी संदर्भ में आज यहां मोहर्रम का जुलूस निकाला जा रहा है, जिसमें सभी समाजों के लोग और सभी धर्मों के लोग शामिल हैं या स्वागत के लिए खड़े हैं. यह नजारा हमारे देश की एकता, भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है. यह परंपरा केवल जम्मू तक सीमित नहीं, बल्कि कश्मीर में भी वर्षों से निभाई जा रही है. मोहर्रम का यह जुलूस न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत में सभी धर्मों को बराबरी का सम्मान और स्थान प्राप्त है.”
डोगरा सभा के प्रधान गुलचेन सिंह चड़क ने कहा, “मोहर्रम का दिन वास्तव में शोक और अफसोस का दिन है. यह वो दिन है जब हम कर्बला के मैदान में हुई उस ऐतिहासिक जंग को याद करते हैं, जिसमें हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी. इस दिन हम सिर्फ मातम नहीं करते, बल्कि इंसानियत, सच्चाई और न्याय के पक्ष में दिए गए बलिदान को भी याद करते हैं.”
जुलूस में शामिल हुए एक व्यक्ति ने कहा, “मोहर्रम आज पूरे विश्व में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जा रहा है और हमारा भारत भी इस मातमी परंपरा में गौरवपूर्ण रूप से शामिल है. भारत की समृद्ध सभ्यता और संस्कृति में मोहर्रम का विशेष स्थान रहा है, इतना कि झांसी की रानी के यहां भी ताजिये का जुलूस आयोजित होता था और वह आज भी भारतीय कानून के तहत एक गजटेड जुलूस के रूप में मान्यता प्राप्त है.”
एक अन्य ने कहा, “ग्वालियर के राजा द्वारा भी वर्षों तक ताजिये का जुलूस निकाला गया, और यह कोई एक धर्म या वर्ग की बात नहीं थी, बल्कि हर धर्म और हर जाति के लोगों ने इमाम हुसैन की शहादत को आस्था और श्रद्धा के साथ याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. हमने अजादारी का जुलूस इसलिए जारी रखा है क्योंकि यह केवल धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि एक विचारधारा है: ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होने की, इंसानियत की रक्षा की.”
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एससीएच/डीएससी
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