वाराणसी, 3 मई . उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर शनिवार को गंगा सप्तमी के मौके पर श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से जन्मों के पाप धूल जाते हैं और श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है.
गंगा सप्तमी वाराणसी में भागीरथ तप के बाद ब्रह्मा के कमंडल से मां गंगा के प्रकट होने के उपलक्ष्य में मनाई जाती है. इस दिन श्रद्धालु पवित्र स्नान करके, सूर्य को अर्घ्य देकर और घाटों पर दुग्धाभिषेक करके उत्सव मनाते हैं. इस दिन विशेष तौर पर गंगा घाटों पर तैयारियां की जाती हैं. सुबह-सुबह श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करते हैं, इसके बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और परिवार की मंगलकामना के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं.
दशाश्वमेध घाट के पुजारी अजय कुमार पांडेय ने बताया कि मान्यता है कि गंगा सप्तमी के दिन ही देवी गंगा का प्रादुर्भाव हुआ था. काशी में पवित्र गंगा नदी अविरल और निर्मल धारा के साथ बहती है, जिसे ‘पाप विमोचिनी गंगा’ के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां बहने वाली नदी ‘उत्तरवाहिनी गंगा’ है और काशी को मोक्ष का प्रवेश द्वार माना जाता है. इसलिए, मान्यता है कि यहां का जल बाहर नहीं जाता है. काशी में विश्व का सबसे बड़ा महा शमशान है, जहां पितरों को दान किया जाता है. गंगा सप्तमी में यहां दूर-दराज से लोग आते हैं. घाटों को सजाया जाता है. पूजा-पाठ करने के बाद आरती होती है.
तीर्थ पुरोहित अजय कुमार तिवारी ने बताया कि काशीवासियों के साथ वैशाख माह में गंगा सप्तमी का उत्सव विशेष महत्व रखता है. इस दिन गंगा में पवित्र स्नान करने से कई पाप धुल जाते हैं, व्यक्ति को आशीर्वाद और आध्यात्मिक पुण्य मिलता है. वैशाख माह में गंगा सप्तमी एक माह के फल की प्राप्ति होती है. रोगों का निदान होता है. पहले मां गंगा में डुबकी लगाते हैं. मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं. गंगा सप्तमी में स्नान करने से पुण्य मिलता है.
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डीकेएम/केआर
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