नई दिल्ली, 28 जून . मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है! अंतर्राष्ट्रीय हाई जंपर मरियप्पन थंगावेलु पर यह प्रेरणादायी वाक्य बिल्कुल सटीक बैठता है. महज 29 साल की उम्र में इस पैरा एथलीट ने खेल के सबसे बड़े मंच पर गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतकर सिर्फ देश का नाम ही रोशन नहीं किया है, बल्कि समाज की उस सोच को भी बदला है, जिसमें दिव्यांग लोगों को असहाय की दृष्टि से देखा जाता है.
मरियप्पन थंगावेलु का जन्म तमिलनाडु के सेलम जिले में 28 जून 1995 को हुआ था. मरियप्पन छह भाई-बहन (चार भाई और दो बहन) हैं. उनका बचपन संघर्ष में बीता. पिता ने परिवार का साथ छोड़ दिया था. माता ने एक मजदूर के रूप में काम करते हुए बच्चों को पाला. मरियप्पन जब सिर्फ पांच साल के थे तो स्कूल जाते समय उनका एक्सीडेंट हो गया था. शराब के नशे में चूर एक बस ड्राइवर ने उनका दायां पैर कुचल दिया. उनके दाएं पैर के घुटने से नीचे का हिस्सा पूरी तरह खराब हो गया. मरियप्पन के लिए जिंदगी का कभी न खत्म होने वाला दुख था. लेकिन, पांच साल के इस बच्चे ने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखी. खुद को कभी किसी सामान्य बच्चे से कमजोर नहीं माना.
स्कूल में वह वॉलीबॉल खेला करते थे, लेकिन उनके खेल प्रशिक्षक ने उन्हें ऊंची कूद में किस्मत आजमाने की सलाह दी. इस सलाह ने न सिर्फ मरियप्पन को जिंदगी का मकसद दिया बल्कि देश को एक बड़ा सितारा दे दिया.
महज 14 साल की उम्र में मरियप्पन ने ऊंची कूद की अपनी पहली प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. यह सामान्य खिलाड़ियों की प्रतियोगिता, जिसमें यह दिव्यांग एथलीट दूसरे स्थान पर रहा. इस प्रदर्शन के बाद उन्हें इस खेल में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिला. उनके मौजूदा कोच सत्य नारायण ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 2015 में ट्रेनिंग के वह लिए बेंगलुरु पहुंचे.
साल 2016 में ट्यूनीशिया टी-42 केटेगरी में मरियप्पन ने 1.78 मीटर की ऊंची कूद लगाई. इस प्रदर्शन के बाद उन्हें 2016 में ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में हुए समर पैरालंपिक के लिए क्वालिफिकेशन मिला. टी-42 केटेगरी में उन्होंने ने रियो पैरालंपिक में गोल्ड जीता. रियो में उन्होंने 1.89 मीटर की ऊंची कूद लगाई.
साल 2019 में विश्व पैरालंपिक एथलेटिक्स चैंपियनशिप में टी-63 केटेगरी में मरियप्पन ने 1.80 मीटर की ऊंची कूद लगाई और ब्रांज मेडल जीता. अगले साल 2020 टोक्यो ओलंपिक में टी-63 केटेगरी में सिल्वर और 2024 में पेरिस में आयोजित पैरालंपिक में ब्रांज मेडल जीता. साल 2024 में कोबे, जापान में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने टी-63 केटेगरी में गोल्ड जीता था. 2022 में चीन में आयोजित एशियन पैरा गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था.
मरियप्पन ने अपने खेल में श्रेष्ठता और सफलता हासिल करने के साथ ही करोड़ों रुपए कमाए. इन पैसों से उन्होंने अपने परिवार के लिए घर बनवाया और अपनी मां के लिए जमीन खरीदी, जिस पर खेती कर वह आय का एक निश्चित स्रोत बना सकें.
मरियप्पन थंगावेलु को भारत सरकार ने 2017 में पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था. साल 2020 में उन्हें खेल के सबसे बड़े सम्मान ‘खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया.
थंगावेलु की सफलता हर उस व्यक्ति के लिए उम्मीद की किरण है, जो किसी न किसी अभाव की वजह से अपनी जिंदगी के लक्ष्य को हासिल करने का हौसला छोड़ देते हैं.
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पीएके/एकेजे
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