असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने रविवार को एक ऐसा बयान दिया जिसने प्रदेश की राजनीति में नई हलचल मचा दी। उन्होंने कहा कि असम के कुछ जिलों में हालात ऐसे हैं कि एक गांव में 30,000 लोगों में मात्र 100 सनातन धर्मावलंबी रहते हैं। उनके अनुसार, कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए यदि ऐसे परिवार चाहें तो उन्हें हथियार का लाइसेंस दिया जा सकता है। सरमा ने इसे “सनातन धर्म की सुरक्षा का दायित्व” बताया। सीएम सरमा ने साफ कहा कि अगर कोई हिंदू परिवार प्रतिकूल माहौल में जीवन बिता रहा है और कानूनी रूप से हथियार का लाइसेंस प्राप्त करना चाहता है, तो सरकार उसका पूरा साथ देगी। यह बयान ऐसे समय में आया है जब असम में जनसंख्या असंतुलन और धार्मिक परिवर्तन को लेकर गहन बहस जारी है।
आत्मरक्षा के अधिकार पर जोर
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह पहल किसी को डराने या धमकाने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि आत्मरक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है। उनका कहना है कि ऐसे परिवार अक्सर जोखिम में रहते हैं, इसलिए उन्हें कानूनन हथियार रखने का अवसर मिलना चाहिए।
मई 2025 से लागू नई नीति
सरमा ने बताया कि यह नीति मई 2025 से लागू की गई है, विशेषकर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले स्वदेशी हिंदू समुदायों की सुरक्षा के लिए। इन क्षेत्रों में बांग्लादेशी मूल के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। प्रक्रिया के तहत इच्छुक लोग ऑनलाइन पोर्टल पर आवेदन करेंगे और विस्तृत जांच के बाद ही लाइसेंस जारी होगा। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस कदम को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा है। विपक्ष का आरोप है कि यह निर्णय राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देगा। वहीं, बीजेपी समर्थक इसे अल्पसंख्यक हिंदू परिवारों के लिए आवश्यक और समयानुकूल कदम मान रहे हैं।
अपराधियों पर सख्त रुख
हिमंत बिस्वा सरमा 2021 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति लागू करने के लिए जाने जाते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बीते तीन वर्षों में 200 से अधिक पुलिस मुठभेड़ों के मामले दर्ज हुए। सरकार का कहना है कि यह रणनीति अपराध और उग्रवाद के नेटवर्क को खत्म करने के लिए अपनाई गई। सीएम सरमा का मानना है कि ड्रग्स तस्करी, पशु तस्करी और आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए पुलिस को अपराधियों में भय पैदा करना जरूरी है। इसी कारण वह खुले मंच से भी कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कठोर कार्रवाई का संदेश देते रहते हैं।
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