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अंग्रेजी की ताकत

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पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से दिया, लेकिन इतना काफी नहीं था। नई दिल्ली की सुरक्षा चिंताओं और आतंकवाद को लेकर उसकी बदली रणनीति से वाकिफ कराने व पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए भारत का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इस समय विभिन्न देशों की यात्रा पर निकला हुआ है। इन डेलिगेट्स को भारत का संदेश सटीक और साफ अंदाज में पूरे विश्व तक पहुंचाना है ताकि पाकिस्तान को प्रोपगैंडा का मौका न मिले। कूटनीति की भाषा: कूटनीति में हर शब्द मायने रखते हैं। यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि किस भाषा में बात रखी जा रही है। ऐसे में जब भारतीय प्रतिनिमंडल को दुनिया के हर कोने में जाना है, तब तो और भी अहम हो जाता है कि उनकी आपस की बातों में कोई टकराव या विरोधाभास न हो। मेसेज इस तरह दिया जाए कि सभी उसे एक ही तरह से समझें और इसके लिए अंग्रेजी से बेहतर माध्यम कोई नहीं। सॉफ्ट पावर: अंग्रेजी का कमाल है कि यह सबसे ज्यादा बोली जाने वाली मातृभाषा नहीं है, इसके बाद भी यह दुनिया में सबसे अधिक बोली और समझी जाती है। लगभग 150 करोड़ लोगों ने अंग्रेजी को अपनाया हुआ है। यह इसकी सॉफ्ट पावर है, जिसने विभिन्न इलाकों, संस्कृतियों, कला और साहित्य को आपस में जोड़कर रखा है। ज्ञान का भंडार: अंग्रेजी का विस्तार व्यापक है। कम से कम 55 देशों की यह आधिकारिक भाषा है और 30 से ज्यादा मुल्कों में इसे दूसरी भाषा के रूप में सिखाया-पढ़ाया जाता है। इंग्लिश की यह रीच इसलिए, क्योंकि दुनियाभर का ज्ञान आज इस भाषा में मौजूद है। लगभग 98% साइंस पब्लिकेशन और इंटरनेट पर मौजूद 49% से अधिक कंटेंट अंग्रेजी में है। यानी, किसी भी नई रिसर्च से रूबरू होने और आगे बढ़ने के लिए यह भाषा आनी चाहिए। गर्व की बात: भारत इस मामले में खुद पर गुमान कर सकता है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक उसकी लगभग 10% आबादी अंग्रेजी बोलती है। अगर उन्हें भी शामिल कर लिया जाए, जो अंग्रेजी बोल नहीं सकते, लेकिन पढ़ और समझ सकते हैं तो यह आंकड़ा दोगुना हो जाता है। अंग्रेजी पर पकड़ रखने वाली इतनी बड़ी आबादी किसी और देश के पास नहीं। यह भाषा की ताकत है और इसी के बूते हिंदुस्तान के प्रफेशनल्स अमेरिका से लेकर यूरोप तक अपना दबदबा बनाए हुए हैं। सिखाई जाए अंग्रेजी: भाषा संवाद का जरिया भर नहीं, पहचान भी है। लेकिन यह भी सच है कि किसी देश की पहचान केवल उसकी भाषा तक सिमटी नहीं होती। भारत को अपनी अधिक से अधिक आबादी को अंग्रेजी सिखाने पर जोर देना चाहिए और इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं होगा कि इससे भारतीयता कम हो जाएगी।
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