देश में फुल टाइम कोचिंग को बढ़ावा देने में डमी स्कूलों की भूमिका की जांच-पड़ताल की जाएगी। आखिर क्या कारण है कि डमी स्कूलों का कल्चर बढ़ रहा है? ऐसे छात्रों की कमी नहीं है, जो स्कूल जाने की कीमत पर फुल टाइम कोचिंग को चुन रहे हैं। बेशक सीबीएसई ने डमी स्कूलों के खिलाफ एक्शन लेना शुरू किया है। लेकिन अभी भी ऐसे स्कूलों की कमी नहीं है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक कमिटी बनाई है, जो डमी स्कूलों के उभरने से लेकर कोचिंग पर बच्चों की बढ़ती निर्भरता के तमाम पहलुओं की जांच करेगी। साथ ही कोचिंग सेंटरों के गुमराह करने के दावे भी जांच के दायरे में होंगे। कमिटी में सीबीएसई के चेयरमैन, आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर के प्रतिनिधि भी हैं।
स्कूल से ज्यादा कोचिंग जरूरी क्यों?केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. विनीत जोशी की अध्यक्षता में बनी यह कमिटी वर्तमान स्कूली शिक्षा प्रणाली में उन कमियों की जांच करेगी, जो छात्रों को कोचिंग सेंटरों पर निर्भरता में योगदान देती हैं। विशेष रूप से आलोचनात्मक सोच, विश्लेषणात्मक कौशल और इनोवेशन पर सीमित ध्यान दिये जाने पर चर्चा की जाएगी।
कोचिंग के वो विज्ञापन...इसके साथ ही कमिटी को यह भी कहा गया है कि कोचिंग सेंटरों की एडवरटाइजिंग प्रैक्टिस की भी समीक्षा की जाए। गुमराह करने वाले दावों की पड़ताल के साथ-साथ यह भी देखा जाए कि क्यों कोचिंग सेंटर केवल सिलेक्टिव सक्सेस स्टोरीज का ही प्रमोशन करते हैं। इसके लिए उचित सुझाव दिए जाएं।
शिक्षा मंत्रालय का स्पष्ट मत है कि करियर गाइडेंस फ्रेमवर्क को मजबूत बनाना होगा। स्कूल स्तर पर, कॉलेज स्तर पर करियर काउंसलिंग सर्विसेज होनी ही चाहिए। स्टूडेंट्स को करियर गाइडेंस मिलनी चाहिए। स्टूडेंट्स और पैरंट्स केवल कुछ बड़े संस्थानों को ही न देखें, बल्कि उन्हें दूसरे अच्छे संस्थानों के बारे में भी गाइड किया जाए।
मांग ज्यादा, सीटें कम + टफ कंपीटिशन = कोचिंगशिक्षा मंत्रालय की इस कमिटी को कहा गया है कुछ प्रीमियर उच्च शिक्षा संस्थानों में सीटों की सीमित संख्या के बारे में भी जानकारी जुटाई जाए। उच्च शिक्षा में लगातार मांग बढ़ रही है। उस हिसाब से कैसे सीटों की संख्या में इजाफा किया जा सकता है। जब मांग ज्यादा हो और सीटें कम हों, तो छात्रों को कड़े कंपीटिशन के लिए कोचिंग की ओर जाना ही पड़ता है।
कोचिंग सेंटर के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क नहींशिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने भी कहा है कि देशभर में तेजी से बढ़ते कोचिंग सेंटर उद्योग को रेगुलेट (विनियमित) करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई रेगुलेटरी फ्रेमवर्क (नियामक ढांचा) उपलब्ध नहीं है। इन कोचिंग सेंटरों में वित्तीय धोखाधड़ी की कई रिपोर्ट सामने आती हैं। साथ ही छात्रों की आत्महत्या, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और मेंटल हेल्थ जैसे मामले भी हैं।
ऐसे में समिति ने सिफारिश की थी कि शिक्षा विभाग को सभी संबंधित हितधारकों को एक साथ लाने और कोचिंग सेंटर इंडस्ट्री को रेगुलेट करने के लिए एक नीति तैयार करनी चाहिए। समिति ने एंट्रेंस टेस्ट में क्वेश्चन पेपर्स की क्वॉलिटी और परीक्षा के डिजाइन की समीक्षा करने की सिफारिश की थी।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक कमिटी बनाई है, जो डमी स्कूलों के उभरने से लेकर कोचिंग पर बच्चों की बढ़ती निर्भरता के तमाम पहलुओं की जांच करेगी। साथ ही कोचिंग सेंटरों के गुमराह करने के दावे भी जांच के दायरे में होंगे। कमिटी में सीबीएसई के चेयरमैन, आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर के प्रतिनिधि भी हैं।
स्कूल से ज्यादा कोचिंग जरूरी क्यों?केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. विनीत जोशी की अध्यक्षता में बनी यह कमिटी वर्तमान स्कूली शिक्षा प्रणाली में उन कमियों की जांच करेगी, जो छात्रों को कोचिंग सेंटरों पर निर्भरता में योगदान देती हैं। विशेष रूप से आलोचनात्मक सोच, विश्लेषणात्मक कौशल और इनोवेशन पर सीमित ध्यान दिये जाने पर चर्चा की जाएगी।
- रटने की प्रैक्टिस कितनी हावी है?
- स्कूली शिक्षा में प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए क्या नई सोच और प्रैक्टिस को शामिल किया जाना चाहिए? इस पर भी रिपोर्ट तैयार होगी।
- एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि स्कूल एजुकेशन सिस्टम के मुताबिक क्या एंट्रेंस एग्जामिनेशन हो रहे हैं? या फिर कोचिंग इंडस्ट्री के बढ़ते प्रभाव का एक कारण यह भी है कि स्कूली शिक्षा और एंट्रेंस टेस्ट में बड़ा अंतर है।
- स्कूलों में फॉर्मेटिव असेसमेंट के असर की भी पड़ताल होगी। देखा जाएगा कि क्या फॉर्मेटिव असेसमेंट के जरिए छात्र को कॉन्सेप्ट की समझ हो रही है?
- प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्र तैयार हो पा रहे हैं या नहीं? या केवल रटने की प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है। जिसके चलते काफी छात्रों को कोचिंग की ओर जाना पड़ रहा है।
कोचिंग के वो विज्ञापन...इसके साथ ही कमिटी को यह भी कहा गया है कि कोचिंग सेंटरों की एडवरटाइजिंग प्रैक्टिस की भी समीक्षा की जाए। गुमराह करने वाले दावों की पड़ताल के साथ-साथ यह भी देखा जाए कि क्यों कोचिंग सेंटर केवल सिलेक्टिव सक्सेस स्टोरीज का ही प्रमोशन करते हैं। इसके लिए उचित सुझाव दिए जाएं।
शिक्षा मंत्रालय का स्पष्ट मत है कि करियर गाइडेंस फ्रेमवर्क को मजबूत बनाना होगा। स्कूल स्तर पर, कॉलेज स्तर पर करियर काउंसलिंग सर्विसेज होनी ही चाहिए। स्टूडेंट्स को करियर गाइडेंस मिलनी चाहिए। स्टूडेंट्स और पैरंट्स केवल कुछ बड़े संस्थानों को ही न देखें, बल्कि उन्हें दूसरे अच्छे संस्थानों के बारे में भी गाइड किया जाए।
मांग ज्यादा, सीटें कम + टफ कंपीटिशन = कोचिंगशिक्षा मंत्रालय की इस कमिटी को कहा गया है कुछ प्रीमियर उच्च शिक्षा संस्थानों में सीटों की सीमित संख्या के बारे में भी जानकारी जुटाई जाए। उच्च शिक्षा में लगातार मांग बढ़ रही है। उस हिसाब से कैसे सीटों की संख्या में इजाफा किया जा सकता है। जब मांग ज्यादा हो और सीटें कम हों, तो छात्रों को कड़े कंपीटिशन के लिए कोचिंग की ओर जाना ही पड़ता है।
कोचिंग सेंटर के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क नहींशिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने भी कहा है कि देशभर में तेजी से बढ़ते कोचिंग सेंटर उद्योग को रेगुलेट (विनियमित) करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई रेगुलेटरी फ्रेमवर्क (नियामक ढांचा) उपलब्ध नहीं है। इन कोचिंग सेंटरों में वित्तीय धोखाधड़ी की कई रिपोर्ट सामने आती हैं। साथ ही छात्रों की आत्महत्या, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और मेंटल हेल्थ जैसे मामले भी हैं।
ऐसे में समिति ने सिफारिश की थी कि शिक्षा विभाग को सभी संबंधित हितधारकों को एक साथ लाने और कोचिंग सेंटर इंडस्ट्री को रेगुलेट करने के लिए एक नीति तैयार करनी चाहिए। समिति ने एंट्रेंस टेस्ट में क्वेश्चन पेपर्स की क्वॉलिटी और परीक्षा के डिजाइन की समीक्षा करने की सिफारिश की थी।
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