सृष्टि के प्रारंभ में ऋषि-महर्षियों ने ज्योतिष, धर्म, विज्ञान आदि को श्रुति और स्मृति के माध्यम से अगली पीढ़ी तक पहुंचाया। इस प्रकार ज्ञान, श्रुति और स्मृति द्वारा भोजपत्र से कागज तक और कागज-किताबों से डिजिटल रूप में संग्रहित होता चला गया। कल्पना कीजिए, हम लाखों वर्ष पीछे चले जाएं। जंगल में एक जानवर जन्म लेता है, वह बड़ा होता है और भोजन की तलाश में भटकता है। एक दिन उसे कुछ कच्ची सब्जियां मिलती हैं, वह उन्हें खाता है। कुछ दिन बाद जंगल में आग लगती है और सब कुछ जल जाता है। आग शांत होने के बाद वह देखता है कि वे सब्जियां अब पक चुकी हैं और ज्यादा स्वादिष्ट हैं। वह उन्हें खाता है, लेकिन दो-तीन दिनों में वे सड़ने लगती हैं। अनजाने में वह जानवर उन्हें खाता रहता है और बीमार होकर मर जाता है।
कुछ समय बाद फिर एक दूसरे जानवर का जन्म होता है, वही घटनाएं दोहराई जाती हैं, और अंत वही होता है। यह चक्र चलता रहता है, अनुभव होता है, परंतु अगली पीढ़ी को वह अनुभव नहीं पहुंच पाता। लेकिन जब मानव जन्म लेता है और वही घटनाएं होती हैं, तो वह मरने से पहले अपनी बुद्धि अनुसार पूरी कहानी पहाड़ की दीवारों पर चित्र के रूप में अंकित कर जाता है।
जब अगले मानव का जन्म हुआ, उसे इन चीजों के बारे में पहले से ही पता चल गया कि जंगल में सब्जियां होती हैं, आग लगने पर क्या करना चाहिये, सब्जियां कैसे पकती हैं और कितने दिन बाद खराब हो जाती हैं। इस तरह से वो ज्यादा दिनों तक जिया और उसे जो भी अतिरिक्त समय मिलता उसमें सूखी पत्तियां, हरे तने, पत्थर, जानवरों का गोबर और पानी इकट्ठा कर आगे विकास करता रहा। अब उसे आग भड़कने का इंतजार था और जैसे ही आग लगी उसने इन सब चीजों का सही से प्रयोग किया। मरने से पहले उसने भी अपना अनुभव पत्थरों से चित्रों के माध्यम से गुफा की दीवार पर अंकित कर दिया कि, सूखी पत्तियों से आग भड़कती है, गोबर से लंबे समय तक जलती है और पानी से बुझ जाती है।
जो मनुष्य उसके बाद पैदा हुआ उसने पूर्व के दोनों अनुभवों एवं संकेतों को समझा और इन जानकारियों से उसे आगे विकास करने का अवसर मिला। यानी प्रत्येक मनुष्य उस अतिरिक्त ज्ञान को संग्रहित करता है और आगे की पीढ़ियों को बताने का माध्यम बनता है, जिसका परिणाम आज हम आधुनिक ज्ञान, विज्ञान के माध्यम से देख पा रहे हैं। यही ज्ञान का संचय है, जो मानव को बाकी प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है। यदि आप 20 वर्ष की उम्र में किसी 40 वर्षीय के अनुभवों को पढ़ लें, तो आप एक साथ कई वर्षों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
कुछ समय बाद फिर एक दूसरे जानवर का जन्म होता है, वही घटनाएं दोहराई जाती हैं, और अंत वही होता है। यह चक्र चलता रहता है, अनुभव होता है, परंतु अगली पीढ़ी को वह अनुभव नहीं पहुंच पाता। लेकिन जब मानव जन्म लेता है और वही घटनाएं होती हैं, तो वह मरने से पहले अपनी बुद्धि अनुसार पूरी कहानी पहाड़ की दीवारों पर चित्र के रूप में अंकित कर जाता है।
जब अगले मानव का जन्म हुआ, उसे इन चीजों के बारे में पहले से ही पता चल गया कि जंगल में सब्जियां होती हैं, आग लगने पर क्या करना चाहिये, सब्जियां कैसे पकती हैं और कितने दिन बाद खराब हो जाती हैं। इस तरह से वो ज्यादा दिनों तक जिया और उसे जो भी अतिरिक्त समय मिलता उसमें सूखी पत्तियां, हरे तने, पत्थर, जानवरों का गोबर और पानी इकट्ठा कर आगे विकास करता रहा। अब उसे आग भड़कने का इंतजार था और जैसे ही आग लगी उसने इन सब चीजों का सही से प्रयोग किया। मरने से पहले उसने भी अपना अनुभव पत्थरों से चित्रों के माध्यम से गुफा की दीवार पर अंकित कर दिया कि, सूखी पत्तियों से आग भड़कती है, गोबर से लंबे समय तक जलती है और पानी से बुझ जाती है।
जो मनुष्य उसके बाद पैदा हुआ उसने पूर्व के दोनों अनुभवों एवं संकेतों को समझा और इन जानकारियों से उसे आगे विकास करने का अवसर मिला। यानी प्रत्येक मनुष्य उस अतिरिक्त ज्ञान को संग्रहित करता है और आगे की पीढ़ियों को बताने का माध्यम बनता है, जिसका परिणाम आज हम आधुनिक ज्ञान, विज्ञान के माध्यम से देख पा रहे हैं। यही ज्ञान का संचय है, जो मानव को बाकी प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है। यदि आप 20 वर्ष की उम्र में किसी 40 वर्षीय के अनुभवों को पढ़ लें, तो आप एक साथ कई वर्षों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
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