नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम सवाल पर विचार करने का फैसला किया है कि क्या उसके 2022 के स्थगन आदेश के चलते हाई कोर्ट को IPC की धारा 124A (राजद्रोह) के तहत दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलों पर फैसला सुनाने से रोका जाना चाहिए। जस्टिस पी.एस. नरसिंहा और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने इस मुद्दे पर सरकार को नोटिस जारी कर 25 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
यह मामला सफदर नागोरी से जुड़ा है, जिन्हें 2017 में मध्य प्रदेश में राजद्रोह समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया गया था और वह जेल में हैं। उनकी ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें अदालत ने उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई तो पूरी की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 2022 के आदेश का हवाला देकर फैसला नहीं सुनाया। याचिकाकर्ता की दलील है कि वे अन्य सजा पूरी कर चुके हैं और अब केवल धारा 1244 से संबंधित दोष पर फैसला बाकी है।
पूरी सुनवाई के बाद भी अपील पर निर्णय नहीं!याचिकाकर्ता के वकील शादान फरासत ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट का स्थगन आदेश ऐसे मामलों पर लागू नहीं होना चाहिए जिनकी सुनवाई पूरी हो चुकी है और जिनमें कोई नई जांच या ट्रायल लंबित नहीं है। उन्होंने अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर पड़ रहे गंभीर प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को अपीलीय राहत से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते एक न्यायिक उलझन पैदा हो गई है, जहां हाई कोर्ट पूरी सुनवाई के बावजूद अपील पर निर्णय नहीं ले रहा और इस कारण याचिकाकर्ता को बिना अपीलीय समाधान के जेल में रखा गया है।
अहम सवाल का मिलेगा जवाब
2022 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी होने तक इस धारा से जुड़े सभी ट्रायल और कार्यवाहियों को स्थगित रखने का आदेश दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने नया कानून लाकर धारा 124A को हटा दिया है। ऐसे में अब नए कानून के तहत भी राजद्रोह दर्ज नहीं हो सकता। वहीं, पुराने मामलों में राजद्रोह की अपीलों पर निर्णय को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट का रुख यह तय करेगा कि क्या हाई कोर्ट को केवल इसलिए फैसला देने से रोका जा सकता है क्योंकि मामला राजद्रोह से जुड़ा है, जबकि सुनवाई पूरी हो चुकी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता भविष्य के अनेक मामलों की दिशा तय करेगी।
यह मामला सफदर नागोरी से जुड़ा है, जिन्हें 2017 में मध्य प्रदेश में राजद्रोह समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया गया था और वह जेल में हैं। उनकी ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें अदालत ने उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई तो पूरी की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 2022 के आदेश का हवाला देकर फैसला नहीं सुनाया। याचिकाकर्ता की दलील है कि वे अन्य सजा पूरी कर चुके हैं और अब केवल धारा 1244 से संबंधित दोष पर फैसला बाकी है।
पूरी सुनवाई के बाद भी अपील पर निर्णय नहीं!याचिकाकर्ता के वकील शादान फरासत ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट का स्थगन आदेश ऐसे मामलों पर लागू नहीं होना चाहिए जिनकी सुनवाई पूरी हो चुकी है और जिनमें कोई नई जांच या ट्रायल लंबित नहीं है। उन्होंने अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर पड़ रहे गंभीर प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को अपीलीय राहत से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते एक न्यायिक उलझन पैदा हो गई है, जहां हाई कोर्ट पूरी सुनवाई के बावजूद अपील पर निर्णय नहीं ले रहा और इस कारण याचिकाकर्ता को बिना अपीलीय समाधान के जेल में रखा गया है।
अहम सवाल का मिलेगा जवाब
2022 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी होने तक इस धारा से जुड़े सभी ट्रायल और कार्यवाहियों को स्थगित रखने का आदेश दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने नया कानून लाकर धारा 124A को हटा दिया है। ऐसे में अब नए कानून के तहत भी राजद्रोह दर्ज नहीं हो सकता। वहीं, पुराने मामलों में राजद्रोह की अपीलों पर निर्णय को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट का रुख यह तय करेगा कि क्या हाई कोर्ट को केवल इसलिए फैसला देने से रोका जा सकता है क्योंकि मामला राजद्रोह से जुड़ा है, जबकि सुनवाई पूरी हो चुकी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता भविष्य के अनेक मामलों की दिशा तय करेगी।
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