नई दिल्ली: एक खिलाड़ी की हत्या उसके बाप ने सिर्फ इसलिए कर दी कि वो समाज के तानों से परेशान था। लोग कहते थे कि तू तो बेटी की कमाई खा रहा है। बात है हरियाणा के गुरुग्राम जिले में टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की, जिसकी हत्या उनके पिता ने तब कर दी, जब वो किचन में खाना बना रही थी। राधिका के पिता ने उसे गोलियों से भून डाला। पहलवानों के लिए जाना जाने वाला हरियाणा में राधिका बिल्कुल अलग टेनिस की दुनिया में नाम कमा रही थीं। राधिका एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी थीं। जब हम 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मना रहे हों और बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ जैसे अभियान में लगे हुए, उस दौरान ऐसी खबरें आना पूरे समाज के लिए शर्म की बात है।
क्या सिर्फ इस एक वजह से मार दी गोली
यह भी कहा जा रहा है कि राधिका सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव थीं। उनका रील बनाना पिता को पसंद नहीं था। मगर, उनके रील्स को देखा जाए तो वो बेहद साफ-सुथरी रील बनाती थीं। 25 साल की राधिका यादव को तीन-तीन गोलियां मारने वाले उसके पिता दीपक यादव ने बयान दिया है कि राधिका उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच रहा था।
क्या टेनिस अकादमी चलाने से नाराज था पिता
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राधिका गुरुग्राम में एक टेनिस अकादमी चला रही थीं। इसी बात से उनका पिता दीपक यादव नाराज चल रहा था। दीपक ने राधिका को कई बार अकादमी बंद करने को कहा, मगर राधिका ने अकादमी बंद नहीं की। दीपक यादव को यह बात भी चुभ रही थी कि रिश्तेदार उन्हें बेटी की कमाई खाने का ताना देते थे।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से तो सुधरा था ग्राफ
2024 में हरियाणा में 910 का लिंगानुपात दर्ज किया गया, जो 2014 में 871 के सेक्स रेशयो से काफी सुधार माना जाता है। यह सुधार नरेंद्र मोदी सरकार के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान और राज्य सरकार की कोशिशों का नतीजा है। हालांकि, यह राष्ट्रीय औसत 933 से कम है, जो एक चिंता का विषय है। कुछ जिलों में लिंगानुपात 900 से भी कम है, जैसे कि गुरुग्राम (859), रेवाड़ी (868), चरखी दादरी (873)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आदर्श लिंगानुपात 950 होना चाहिए। हरियाणा सरकार लिंगानुपात में सुधार के लिए लगातार काम कर रही है। फिर दीपक यादव के दिमाग में इतना अंधेरा क्यों था?
विनेश, निशा, मनु जैसी बेटियां, फिर राधिका क्यों...
हरियाणा में कुश्ती में विनेश फौगाट, अंतिम पंघाल, अंशु मलिक, निशा दहिया और रीतिका हुड्डा ने अपनी क्षमता साबित की है। वहीं, शूटिंग में मनु भाकर जैसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी शामिल हैं। तीरंदाजी में भजन कौर ने पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने का गौरव हासिल किया है। बॉक्सिंग में प्रीति पंवार और जैस्मिन लेम्बोरिया ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं। ऐसे हरियाणा के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या अब भी इस राज्य में मध्यकालीन मानसिकता खत्म नहीं हुई है।
बेटी की कमाई को पाप समझने वाले ऐसे पतित को धिक्कार है...
हरियाणा तो शुरू से ही शूर-वीरों की धरती रही है। एक समय इसी हरियाणा में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं काफी पीछे रहा करती थीं। आज हरियाणा इन सबको मीलों पीछे छोड़ आया है। यहां की बेटियों के संघर्ष और पुरुषों का खेल माने जाने वाले कुश्ती में फोगाट बहनें, साक्षी मलिक जैसी बेटियों ने दुनिया में देश का नाम रोशन किया। मगर, दीपक जैसे बाप कूप-मंडूक ही रह गए। वह उस घनघोर अंधेरे वाले कुएं में जी रहा है, जो बेटियों की कमाई को पाप समझता है, जिन्हें बेटी के नाम के आगे अपना नाम जोड़ने में शर्म आती है। यह एक कुंठित सोच है, जिसने उससे ऐसा पाप करा दिया कि पूरा हरियाणा ही बरसों तक शर्मसार रहेगा।
जब बेटों की कमाई खा सकते हैं तो बेटियों की क्यों नहीं
अब बड़ा सवाल यह है कि बेटी तो बचा ली, उन्हें लड़कों जितना बराबरी का हक भी दिया। मगर, फिर इस सोच से क्यों नहीं उबर पाए कि बेटी की कमाई पाप नहीं है। बरसों तक हमारे समाज में बेटी के ससुराल में कन्यादान करने वाले पिता या कोई भी रिश्तेदार पानी तक नहीं पीता था। आखिर, इसमें पाप कहां से हो गया। जिस बेटी को बचपन से पलकों पर बिठाते हैं, उसकी शादी करते ही वो पराई कैसे हो जाती है। वो इतनी 'अछूत' कैसे हो जाती है कि उसके यहां का पानी पीना भी पाप हो गया। ऐसी पुरातन और पोंगापंथी सोच रखने वालों को धिक्कार है। इस सोच से हमें निकलना होगा...तभी एक सुरक्षित और सभ्य समाज बन सकेगा।
क्या सिर्फ इस एक वजह से मार दी गोली
यह भी कहा जा रहा है कि राधिका सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव थीं। उनका रील बनाना पिता को पसंद नहीं था। मगर, उनके रील्स को देखा जाए तो वो बेहद साफ-सुथरी रील बनाती थीं। 25 साल की राधिका यादव को तीन-तीन गोलियां मारने वाले उसके पिता दीपक यादव ने बयान दिया है कि राधिका उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच रहा था।
क्या टेनिस अकादमी चलाने से नाराज था पिता
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राधिका गुरुग्राम में एक टेनिस अकादमी चला रही थीं। इसी बात से उनका पिता दीपक यादव नाराज चल रहा था। दीपक ने राधिका को कई बार अकादमी बंद करने को कहा, मगर राधिका ने अकादमी बंद नहीं की। दीपक यादव को यह बात भी चुभ रही थी कि रिश्तेदार उन्हें बेटी की कमाई खाने का ताना देते थे।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से तो सुधरा था ग्राफ
2024 में हरियाणा में 910 का लिंगानुपात दर्ज किया गया, जो 2014 में 871 के सेक्स रेशयो से काफी सुधार माना जाता है। यह सुधार नरेंद्र मोदी सरकार के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान और राज्य सरकार की कोशिशों का नतीजा है। हालांकि, यह राष्ट्रीय औसत 933 से कम है, जो एक चिंता का विषय है। कुछ जिलों में लिंगानुपात 900 से भी कम है, जैसे कि गुरुग्राम (859), रेवाड़ी (868), चरखी दादरी (873)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आदर्श लिंगानुपात 950 होना चाहिए। हरियाणा सरकार लिंगानुपात में सुधार के लिए लगातार काम कर रही है। फिर दीपक यादव के दिमाग में इतना अंधेरा क्यों था?
विनेश, निशा, मनु जैसी बेटियां, फिर राधिका क्यों...
हरियाणा में कुश्ती में विनेश फौगाट, अंतिम पंघाल, अंशु मलिक, निशा दहिया और रीतिका हुड्डा ने अपनी क्षमता साबित की है। वहीं, शूटिंग में मनु भाकर जैसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी शामिल हैं। तीरंदाजी में भजन कौर ने पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने का गौरव हासिल किया है। बॉक्सिंग में प्रीति पंवार और जैस्मिन लेम्बोरिया ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं। ऐसे हरियाणा के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या अब भी इस राज्य में मध्यकालीन मानसिकता खत्म नहीं हुई है।
बेटी की कमाई को पाप समझने वाले ऐसे पतित को धिक्कार है...
हरियाणा तो शुरू से ही शूर-वीरों की धरती रही है। एक समय इसी हरियाणा में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं काफी पीछे रहा करती थीं। आज हरियाणा इन सबको मीलों पीछे छोड़ आया है। यहां की बेटियों के संघर्ष और पुरुषों का खेल माने जाने वाले कुश्ती में फोगाट बहनें, साक्षी मलिक जैसी बेटियों ने दुनिया में देश का नाम रोशन किया। मगर, दीपक जैसे बाप कूप-मंडूक ही रह गए। वह उस घनघोर अंधेरे वाले कुएं में जी रहा है, जो बेटियों की कमाई को पाप समझता है, जिन्हें बेटी के नाम के आगे अपना नाम जोड़ने में शर्म आती है। यह एक कुंठित सोच है, जिसने उससे ऐसा पाप करा दिया कि पूरा हरियाणा ही बरसों तक शर्मसार रहेगा।
जब बेटों की कमाई खा सकते हैं तो बेटियों की क्यों नहीं
अब बड़ा सवाल यह है कि बेटी तो बचा ली, उन्हें लड़कों जितना बराबरी का हक भी दिया। मगर, फिर इस सोच से क्यों नहीं उबर पाए कि बेटी की कमाई पाप नहीं है। बरसों तक हमारे समाज में बेटी के ससुराल में कन्यादान करने वाले पिता या कोई भी रिश्तेदार पानी तक नहीं पीता था। आखिर, इसमें पाप कहां से हो गया। जिस बेटी को बचपन से पलकों पर बिठाते हैं, उसकी शादी करते ही वो पराई कैसे हो जाती है। वो इतनी 'अछूत' कैसे हो जाती है कि उसके यहां का पानी पीना भी पाप हो गया। ऐसी पुरातन और पोंगापंथी सोच रखने वालों को धिक्कार है। इस सोच से हमें निकलना होगा...तभी एक सुरक्षित और सभ्य समाज बन सकेगा।
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