नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को नोटिस देते हुए कहा कि सरकारी लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मुकदमों को फाइल करने में अत्यधिक देरी को माफ नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करना अक्षमता को बढ़ावा देना है। जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात कही।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट को सरकार की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। अगर सरकार देरी से कोई केस दोबारा खोलना चाहती है, तो कोर्ट को इसकी इजाजत नहीं देनी चाहिए। इससे एक प्राइवेट व्यक्ति पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी।
हाई कोर्ट के किस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दी चेतावनी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के हाउसिंग बोर्ड को 11 साल की देरी के बाद एक जमीन विवाद का केस दोबारा खोलने की इजाजत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्याय के साथ मजाक बताया। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट को चेतावनी दी है कि वे सरकार की तरफ से होने वाली अत्यधिक देरी को माफ न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि जनहित के कारण देर की नजरअंदाज किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि मामला पब्लिक इंटरेस्ट का है, सिर्फ इसलिए देरी को माफ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, पब्लिक इंटरेस्ट सरकारी लापरवाही को माफ करने में नहीं है, बल्कि दक्षता, जिम्मेदारी और समय पर निर्णय लेने को मजबूर करने में है। सर्वोच्च न्यायालय ने कह भी कहा, कि सरकार को समय पर काम करना चाहिए। क्योंकि हर मामले में वह अपनी निजी क्षमता में नहीं, बल्कि लोगों के ट्रस्टी के रूप में मुकदमा लड़ती है।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि बार-बार सरकारी अक्षमता के आधार पर देरी को माफ करना, लिमिटेशन कानूनों के उद्देश्य को खत्म कर देगा। ये कानून निश्चितता और पब्लिक ऑर्डर के लिए बनाए गए हैं। इस मामले में बोर्ड और एक प्राइवेट व्यक्ति के बीच जमीन को लेकर विवाद 1989 में शुरू हुआ था। 2006 में कोर्ट ने बोर्ड के खिलाफ फैसला दिया था। बोर्ड ने 2017 में 11 साल बाद अपील दायर की, कर्नाटक हाई कोर्ट ने 3,966 दिनों की देरी को माफ कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट को सरकार की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। अगर सरकार देरी से कोई केस दोबारा खोलना चाहती है, तो कोर्ट को इसकी इजाजत नहीं देनी चाहिए। इससे एक प्राइवेट व्यक्ति पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी।
हाई कोर्ट के किस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दी चेतावनी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के हाउसिंग बोर्ड को 11 साल की देरी के बाद एक जमीन विवाद का केस दोबारा खोलने की इजाजत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्याय के साथ मजाक बताया। सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट को चेतावनी दी है कि वे सरकार की तरफ से होने वाली अत्यधिक देरी को माफ न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि जनहित के कारण देर की नजरअंदाज किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि मामला पब्लिक इंटरेस्ट का है, सिर्फ इसलिए देरी को माफ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, पब्लिक इंटरेस्ट सरकारी लापरवाही को माफ करने में नहीं है, बल्कि दक्षता, जिम्मेदारी और समय पर निर्णय लेने को मजबूर करने में है। सर्वोच्च न्यायालय ने कह भी कहा, कि सरकार को समय पर काम करना चाहिए। क्योंकि हर मामले में वह अपनी निजी क्षमता में नहीं, बल्कि लोगों के ट्रस्टी के रूप में मुकदमा लड़ती है।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि बार-बार सरकारी अक्षमता के आधार पर देरी को माफ करना, लिमिटेशन कानूनों के उद्देश्य को खत्म कर देगा। ये कानून निश्चितता और पब्लिक ऑर्डर के लिए बनाए गए हैं। इस मामले में बोर्ड और एक प्राइवेट व्यक्ति के बीच जमीन को लेकर विवाद 1989 में शुरू हुआ था। 2006 में कोर्ट ने बोर्ड के खिलाफ फैसला दिया था। बोर्ड ने 2017 में 11 साल बाद अपील दायर की, कर्नाटक हाई कोर्ट ने 3,966 दिनों की देरी को माफ कर दिया था।
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