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अमेरिका से भरोसा उठने का सबूत... सऊदी और पाकिस्तान में परमाणु सुरक्षा डील पर एक्सपर्ट का दावा, चीन की होगी बल्ले-बल्ले

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बीजिंग: सऊदी अरब और पाकिस्तान ने ऐतिहासिक रक्षा समझौता किया है। नाटो स्टाइल की इस डील की पाकिस्तान और सऊदी ही नहीं दुनियाभर में चर्चा है। इस समझौते के अरब देशों, दक्षिण एशिया, अमेरिका और चीन पर किस तरह का प्रभाव होगा, इस पर एक्सपर्ट की अलग-अलग राय सामने आई है।ऑब्जर्वर्स का मानना है कि सऊदी अरब का परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान के साथ नया रक्षा समझौता अमेरिका की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं पर बढ़ते संदेह को दिखाता है। वहीं इस इस डील का चीन पर सकारात्मक असर हो सकता है, जो अमेरिका का सीधा प्रतिद्वंद्वी है। अरब में इस तरह के और भी समझौते आने वाले समय में हो सकते हैं।



साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट कहती है कि सऊदी-पाकिस्तान की रक्षा साझेदारी को चीन सकारात्मक रूप से देखेगा। इससे हथियारों की बिक्री बढ़ाने के नए अवसर खुल सकते हैं। हालांकि इससे क्षेत्र में सुरक्षा के जटिल होने का खतरा है। शंघाई स्थित फुदान विश्वविद्यालय के सन डेगांग का कहना है कि कतर पर इजरायल के हमले ने सऊदी अरब को एहसास दिलाया कि अमेरिकी पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके बाद उसने पाकिस्तान की तरफ हाथ बढ़ाया।




अमेरिका पर निर्भरता नहीं चाहता सऊदीडेगांग का कहना है कि पाकिस्तान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करके सऊदी अरब ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि वह सभी अंडे एक टोकरी में ना रखे जाए। पाकिस्तान के साथ समझौते के जरिए सऊदी ने सुरक्षा के मसले पर खुद को बेहतर करने की कोशिश की है। अभी तक वह सुरक्षा के लिए सिर्फ अमेरिका पर निर्भर था। अब पाकिस्तान से उसकी डील है, जो परमाणु ताकत और इस्लामी दुनिया की सबसे बड़ी सेना रखता है।



सऊदी अरब में पूर्व चीनी सैन्य अताशे और ग्लोबल गवर्नेंस इंस्टीट्यूशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष लिन ली ने कहा कि कतर पर हमले के बाद अमेरिका की चुप्पी ने खाड़ी देशों की वॉशिंगटन पर संदेह मजबूत किया है। कतर अमेरिका का करीबी सहयोगी है और क्षेत्र के सबड़े अमेरिकी सैन्य अड्डे का घर है। ऐसे में कतर पर हमले ने दूसरे पड़ोसियों को ये सोचने पर मजबूर किया कि अमेरिका उनकी सुरक्षा नहीं करेगा।



ऐसे समझौते और भी होंगेलिन का मानना है कि अमेरिका की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं पर बढ़ते संदेह के कारण सऊदी-पाक की डील पूरे क्षेत्र में इसी तरह के द्विपक्षीय समझौतों को बढ़ावा दे सकता है। लिन कहते हैं, 'काफी हद तक इसी तरह के पारस्परिक-सुरक्षा संबंध पहले अनौपचारिक रूप से होंगे। सऊदी-पाक के समझौते को सार्वजनिक करने से इस तरह की पहल दूसरे देश भी कर सकते हैं। कई अरब देश अपनी सुरक्षा पर डील कर सकते हैं।'



वाशिंगटन स्थित हडसन इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ फेलो लिसेलोटे ओडगार्ड ने कहा कि अमेरिका और चीन फिलहाल सऊदी अरब का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। सऊदी अरब भी दोनों पक्षों के साथ संबंध स्थापित करके अपने हितों को अधिकतम करने में माहिर है। आने वाले समय में सऊदी अरब के चीन के साथ संबंधों और हथियारों की खरीद के संबंध में बहुत कुछ बदलेगा। चीनी हथियारों की बिक्री के लिए यह अच्छा हो सकता है।

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