नई दिल्ली: तेल आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ी है। अप्रैल-सितंबर 2025-26 के दौरान यह 88.4% तक पहुंच गई। यह पिछले साल की समान अवधि में 87.9% थी। घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन स्थिर रहने और ईंधन की मांग बढ़ने के कारण ऐसा हुआ है। यह बढ़ती निर्भरता भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है। इससे व्यापार घाटा, विदेशी मुद्रा भंडार और महंगाई पर असर पड़ता है। सरकार तेल आयात कम करने की कोशिश कर रही है। लेकिन, घरेलू उत्पादन में कमी और बढ़ती मांग बड़ी चुनौती है।
अप्रैल-सितंबर 2025-26 में भारत का तेल आयात निर्भरता का स्तर 88.4% रहा। यह पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि के 87.9% से थोड़ा ज्यादा है। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के ताजा आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। पिछले पूरे वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह निर्भरता 88.2% थी, जो एक रिकॉर्ड था। उद्योग के जानकारों का मानना है कि पूरे वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए यह निर्भरता अप्रैल-सितंबर के स्तर से थोड़ी और बढ़ सकती है, जैसा कि पिछले साल हुआ था।
ऊर्जा जरूरत में लगातार हो रहा इजाफा
भारत की ऊर्जा की जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। इसकी कई वजहें हैं। ऊर्जा का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले उद्योगों का बढ़ना, गाड़ियों की बिक्री में इजाफा, हवाई यातायात का तेजी से विस्तार, पेट्रोकेमिकल्स की बढ़ती खपत और जनसंख्या में बढ़ोतरी। ये सब तेल की मांग को बढ़ा रहे हैं। इन सब कारणों से भारत को तेल का आयात ज्यादा करना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में भारत की तेल आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ी है। सिर्फ वित्तीय वर्ष 2020-21 में कोरोनरा महामारी के कारण मांग कम होने से इसमें थोड़ी कमी आई थी।
पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तेल आयात पर निर्भरता 87.8% थी। वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 87.4% थी। 2021-22 में 85.5% और 2020-21 में 84.4% थी। 2019-20 में यह 85% और 2018-19 में 83.8% थी।
अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जोखिम
भारत का तेल आयात पर इतना ज्यादा निर्भर होना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जोखिम है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ता है। इससे देश के व्यापार घाटे पर असर होता है, यानी हम जितना निर्यात करते हैं, उससे कहीं ज्यादा आयात करते हैं। हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव होता है। रुपये की कीमत गिरती है और महंगाई बढ़ने का खतरा होता है।
सरकार तेल आयात पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती है। लेकिन, घरेलू स्तर पर भारत कच्चे तेल का उत्पादन उतना नहीं बढ़ पा रहा है, जितनी मांग बढ़ रही है। यह एक बड़ी चुनौती है। साल 2015 में सरकार ने एक टारगेट रखा था। 2022 तक तेल आयात पर निर्भरता को 77% से घटाकर 67% करना था। लेकिन, यह टारगेट पूरा नहीं हो पाया, बल्कि निर्भरता बढ़ी ही है।
सरकार ने तेल और गैस की खोज और उत्पादन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां बनाई हैं। साथ ही, सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों, बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) और अन्य वैकल्पिक ईंधनों को भी बढ़ावा दे रही है ताकि तेल आयात को कम किया जा सके। इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है और बायोफ्यूल को पेट्रोल-डीजल में मिलाया भी जा रहा है। लेकिन, यह सब तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।
अप्रैल से सितंबर 2025-26 के दौरान भारत ने 12.12 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात किया। यह पिछले साल की इसी अवधि के 12.07 करोड़ टन से थोड़ा ज्यादा है। वहीं, देश में कच्चे तेल का उत्पादन थोड़ा कम होकर 1.42 टन रह गया, जो पिछले साल 1.44 करोड़ टन था। अप्रैल-सितंबर 2025-26 में पेट्रोलियम उत्पादों की कुल घरेलू खपत 1% बढ़कर 11.83 करोड़ टन हो गई। इसमें से केवल 1.37 करोड़ टन उत्पाद ही घरेलू कच्चे तेल से बने थे। पीपीएसी के आंकड़ों के मुताबिक, इससे देश की आत्मनिर्भरता का स्तर केवल 11.6% रह गया है।
कैसे किया जाता है कैलकुलेशन?
यह कैलकुलेशन इस आधार पर किया जाता है कि हम कितना पेट्रोलियम उत्पाद इस्तेमाल करते हैं। इसमें पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात शामिल नहीं होता क्योंकि वह भारत की मांग नहीं होती। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उपभोक्ता है और सबसे बड़े आयातकों में से एक भी है। हालांकि, भारत पेट्रोलियम उत्पादों का शुद्ध निर्यातक है, यानी हम जितना आयात करते हैं, उससे ज्यादा निर्यात करते हैं।
तेल आयात और आयात पर निर्भरता बढ़ने के बावजूद अप्रैल-सितंबर 2025-26 में भारत का कुल तेल आयात बिल 14.7% घटकर 60.7 अरब डॉलर रह गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें पिछले साल की तुलना में कम थीं। कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात में सबसे ऊपर है।
दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत को तेल की मांग में बढ़ोतरी का एक बड़ा हब माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भविष्य में यहां तेल की खपत की काफी संभावनाएं हैं और प्रति व्यक्ति ऊर्जा की मांग अभी भी कम है। वास्तव में भारत उन कुछ बाजारों में से एक है जहां आने वाले वर्षों में रिफाइनरी क्षमता में काफी विस्तार होने की उम्मीद है। भारत की वर्तमान रिफाइनरी क्षमता लगभग 25.81 करोड़ टन सालाना है।
अप्रैल-सितंबर 2025-26 में भारत का तेल आयात निर्भरता का स्तर 88.4% रहा। यह पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि के 87.9% से थोड़ा ज्यादा है। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के ताजा आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। पिछले पूरे वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह निर्भरता 88.2% थी, जो एक रिकॉर्ड था। उद्योग के जानकारों का मानना है कि पूरे वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए यह निर्भरता अप्रैल-सितंबर के स्तर से थोड़ी और बढ़ सकती है, जैसा कि पिछले साल हुआ था।
ऊर्जा जरूरत में लगातार हो रहा इजाफा
भारत की ऊर्जा की जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। इसकी कई वजहें हैं। ऊर्जा का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले उद्योगों का बढ़ना, गाड़ियों की बिक्री में इजाफा, हवाई यातायात का तेजी से विस्तार, पेट्रोकेमिकल्स की बढ़ती खपत और जनसंख्या में बढ़ोतरी। ये सब तेल की मांग को बढ़ा रहे हैं। इन सब कारणों से भारत को तेल का आयात ज्यादा करना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में भारत की तेल आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ी है। सिर्फ वित्तीय वर्ष 2020-21 में कोरोनरा महामारी के कारण मांग कम होने से इसमें थोड़ी कमी आई थी।
पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तेल आयात पर निर्भरता 87.8% थी। वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 87.4% थी। 2021-22 में 85.5% और 2020-21 में 84.4% थी। 2019-20 में यह 85% और 2018-19 में 83.8% थी।
अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जोखिम
भारत का तेल आयात पर इतना ज्यादा निर्भर होना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जोखिम है। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ता है। इससे देश के व्यापार घाटे पर असर होता है, यानी हम जितना निर्यात करते हैं, उससे कहीं ज्यादा आयात करते हैं। हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव होता है। रुपये की कीमत गिरती है और महंगाई बढ़ने का खतरा होता है।
सरकार तेल आयात पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती है। लेकिन, घरेलू स्तर पर भारत कच्चे तेल का उत्पादन उतना नहीं बढ़ पा रहा है, जितनी मांग बढ़ रही है। यह एक बड़ी चुनौती है। साल 2015 में सरकार ने एक टारगेट रखा था। 2022 तक तेल आयात पर निर्भरता को 77% से घटाकर 67% करना था। लेकिन, यह टारगेट पूरा नहीं हो पाया, बल्कि निर्भरता बढ़ी ही है।
सरकार ने तेल और गैस की खोज और उत्पादन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां बनाई हैं। साथ ही, सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों, बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) और अन्य वैकल्पिक ईंधनों को भी बढ़ावा दे रही है ताकि तेल आयात को कम किया जा सके। इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है और बायोफ्यूल को पेट्रोल-डीजल में मिलाया भी जा रहा है। लेकिन, यह सब तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।
अप्रैल से सितंबर 2025-26 के दौरान भारत ने 12.12 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात किया। यह पिछले साल की इसी अवधि के 12.07 करोड़ टन से थोड़ा ज्यादा है। वहीं, देश में कच्चे तेल का उत्पादन थोड़ा कम होकर 1.42 टन रह गया, जो पिछले साल 1.44 करोड़ टन था। अप्रैल-सितंबर 2025-26 में पेट्रोलियम उत्पादों की कुल घरेलू खपत 1% बढ़कर 11.83 करोड़ टन हो गई। इसमें से केवल 1.37 करोड़ टन उत्पाद ही घरेलू कच्चे तेल से बने थे। पीपीएसी के आंकड़ों के मुताबिक, इससे देश की आत्मनिर्भरता का स्तर केवल 11.6% रह गया है।
कैसे किया जाता है कैलकुलेशन?
यह कैलकुलेशन इस आधार पर किया जाता है कि हम कितना पेट्रोलियम उत्पाद इस्तेमाल करते हैं। इसमें पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात शामिल नहीं होता क्योंकि वह भारत की मांग नहीं होती। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उपभोक्ता है और सबसे बड़े आयातकों में से एक भी है। हालांकि, भारत पेट्रोलियम उत्पादों का शुद्ध निर्यातक है, यानी हम जितना आयात करते हैं, उससे ज्यादा निर्यात करते हैं।
तेल आयात और आयात पर निर्भरता बढ़ने के बावजूद अप्रैल-सितंबर 2025-26 में भारत का कुल तेल आयात बिल 14.7% घटकर 60.7 अरब डॉलर रह गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें पिछले साल की तुलना में कम थीं। कच्चे तेल का आयात भारत के कुल आयात में सबसे ऊपर है।
दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत को तेल की मांग में बढ़ोतरी का एक बड़ा हब माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भविष्य में यहां तेल की खपत की काफी संभावनाएं हैं और प्रति व्यक्ति ऊर्जा की मांग अभी भी कम है। वास्तव में भारत उन कुछ बाजारों में से एक है जहां आने वाले वर्षों में रिफाइनरी क्षमता में काफी विस्तार होने की उम्मीद है। भारत की वर्तमान रिफाइनरी क्षमता लगभग 25.81 करोड़ टन सालाना है।





