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सुनीता रजवार: स्टार्स को तो खुद को भाग्यशाली समझना चाहिए, बाकी और लोग भी हैं जिन्हें उतना नेम-फेम नहीं मिलता

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‘पंचायत’ की क्रांति देवी और ‘संतोष’ की सीरियस पुलिस अफसर गीता शर्मा में जो फर्क है, वही सुनीता रजवार की अदाकारी का स्तर है। गांव-गली की मां, नेता, पत्नी या अफसर... रोल कोई भी हो पर असर ऐसा कि लगे जैसे मोहल्ले वाली बुआ या पड़ोस वाली भाभी ही स्क्रीन पर आ गई हों। कैमरा चालू होते ही जो चेहरे से बात कर ले, वो रजवार ही कर सकती हैं। Cannes से Oscar तक पहुंची उनकी फिल्म हो या ‘पंचायत’ के उनके डंक मारने वाले ताने, इतना सब करने के बावजूद आज भी लोग उन्हें मेजर रोल देने से डरते हैं। फिल्मों, टीवी और अब वेब सीरीज को करते-करते इंडस्ट्री में दो दशक से ज्यादा वक्त बिताने वाली सुनीता कहती हैं, आज नाम है, काम है लेकिन ऑडिशन वही रोज का है।’ बीते दिनों वह नवभारत टाइम्स के दफ्तर आईं तो वही बात की जो छोटे रोल में बड़ा असर छोड़ने वाली एक्ट्रेस ही कर सकती है, सच्ची, कड़वी पर अपनी सी।



पहले ‘मंजू देवी’ के रोल के लिए ऑडिशन दिया था

नीना गुप्ता मेरी अच्छी दोस्त हैं। हम जब अपनी वेब सीरीज का चौथा सीजन शूट कर रहे थे तो उनको बताया था कि मैंने ‘संतोष’ के लिए ऑडिशन दिया है तो उन्होंने बताया कि मैंने भी उसके लिए ऑडिशन दिया था। इसी तरह ‘पंचायत के पहले सीजन में मैं मंजू देवी के किरदार के लिए शॉर्टलिस्ट हुई थी। उस दौरान मैं नीना जी के घर गई थी तो उन्होंने बताया कि वह इस सीरीज का हिस्सा हैं। हालांकि, काफी समय तक उनको नहीं बताया था कि मैंने भी उस किरदार के लिए ऑडिशन दिया था। फिर सीजन 2 में मुझे क्रांति देवी के रूप में चुन लिया गया। मैं अपने किरदार से पूरी तरह संतुष्ट हूं।






संध्या सूरी ने फिल्म के लिए बहुत मेहनत की थी

मैं सौभाग्यशाली हूं कि फिल्म संतोष का हिस्सा बनी। संध्या सूरी (डायरेक्टर) फिल्म को लेकर पूरी तरह से समर्पित थीं। यही वजह है कि फिल्म ने Cannes से लेकर Oscar तक का सफर तय किया। उन्होंने कई बड़े स्टार्स के ऑडिशन लेने के बाद मुझे फाइनल किया था। गीता शर्मा (पुलिस अफसर) के किरदार के लिए मैंने वजन बढ़ाया था। इसके अलावा और भी चीजों पर ध्यान दिया गया। हमारे यहां फिल्मों में इतनी गहराई से बहुत कम लोग उतरते हैं, जितना संध्या ने ध्यान दिया। फिर हम लोग साथ में Cannes तक गए। मैं शाकाहारी हूं। एक बार हम बिल्लौचपुरा (कसाई बाड़े) में शूटिंग कर रहे थे। वह हमारे लिए चुनौतीपूर्ण था लेकिन एक जुनून होता है तो आप कर लेते हैं।



बदलाव नहीं, ये एक खूबसूरत पड़ाव है

पहले ‘गुल्लक’ फिर ‘पंचायत’ और उसके बाद ‘संतोष’, इन किरदारों को करने के बाद मुझे एक आर्टिस्टिक संतुष्टि महसूस हुई। मुझे याद है कि Cannes में संतोष की स्क्रीनिंग के दौरान एक इंटरव्यू में मुझसे पूछा गया था कि अब क्या बदलाव होगा? मैंने यही कहा था कि यह एक खूबसूरत फेज है, जो आया है और चला भी जाएगा। अब वैसा हो भी रहा है। आज भी सब वैसा ही है। आज भी लोग मुझे ऑडिशन के लिए बुलाते हैं। बहुत कम ही ऐसा हुआ है कि बिना ऑडिशन के काम मिल गया हो। मेजर रोल देने से हर कोई डरता है। सिर्फ सब-ऑर्डिनेट रोल ही मिल रहे।



कई ऐक्टर सफर को संघर्ष मानने लगे हैं

आज तमाम स्टार्स अपना संघर्ष बताकर लोगों से हमदर्दी लेने की कोशिश करने लगे हैं। कई तो अपने सफर को ही संघर्ष मानने लगे हैं, जैसे लगता है कि किसी ने उनको जबरदस्ती ऐक्टिंग करने के लिए बोल रखा हो। मुझे याद है कि ऐक्टर विजय राज ने कहा था कि संघर्ष वह है कि एक आदमी जिसके पैर नहीं हैं और उसको सड़क पार करनी है। स्टार्स को तो खुद को भाग्यशाली समझना चाहिए कि वह ऐसी फील्ड में हैं, जहां उन्हें इतना फेम मिलता है। बाकी और लोग भी हैं, जो अपनी-अपनी फील्ड में बहुत मेहनत कर रहे लेकिन उन्हें उतना नेम-फेम नहीं मिलता।



काम को लेकर बहुत जजमेंटल हूं

सुनीता रजवार ऐक्टिंग के अलावा राइटिंग और बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुकी हैं। क्या वो आगे डायरेक्शन भी करेंगी? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘यह बड़ी जिम्मेदारी है। फिलहाल, अभी इस बारे में कुछ नहीं सोचा है लेकिन अगर भविष्य में कुछ समझ आएगा तो बेझिझक कोई डाक्यूमेंट्री बनाने की कोशिश करूंगी। मैं जब चंदन अरोड़ा (डायरेक्टर) को असिस्ट कर रही थी तो वह मुझसे बोले थे कि तुम जरूर एक दिन डायरेक्टर बनोगी। हालांकि, मुझे लिखने का शौक है। भले ही उसे कभी लोगों के सामने ना लाऊं लेकिन लिखने की कोशिश करती रहती हूं। मैं अपने काम को लेकर बहुत जजमेंटल हूं।



पापा का आर्ट से कुछ नाता जरूर था

हां, ये सच है कि पापा हम लोगों को हर शुक्रवार को फिल्म दिखाने ले जाते थे। अब पापा-मम्मी दोनों नहीं हैं। उन्होंने मेरा काम देखा है लेकिन ‘गुल्लक’, ‘पंचायत’ वाला दौर वह नहीं देख पाए। इस वजह से बहुत दुख लगता है। पापा भले सिनेमा से ताल्लुक नहीं रखते थे लेकिन उनका आर्ट से कुछ नाता जरूर था। मैं जब बचपन में गुनगुनाती थी तो वो मुझसे कहते थे कि आवाज दबा क्यों रहीं, खुलकर गाओ। दरअसल, उनका म्यूजिक को लेकर सेंस कमाल का था। वह देवानंद साहब और अमिताभ बच्चन के बड़े फैन थे। उनकी तरह ही कपड़े पहनने का शौक था उन्हें।

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