नई दिल्ली: ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के मामले में फिर से सरकार की ओर से समय मांगने की कोशिश पर सीजेआई बीआर गवई ने गुरवार को केंद्र पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार चाहती है कि इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को उनकी रिटायरमेंट के बाद हो। इस मामले को केंद्र संविधान पीठ में भेजने की मांग भी कर चुका है और तब भी इसके लिए आधी रात में आवेदन देने के लिए जस्टिस गवई ने उसकी खिंचाई की थी।
केंद्र को सीजेआई की फटकार
दरअसल,जब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने गुरुवार को इस मामले को उठाते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी के एक इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यस्त होने का हवाला देते हुए शुक्रवार को होने वाली सुनवाई टालने की गुहार लगाई, तो सीजेआई गवई ने उन्हें दो टूक जवाब दिया और कहा कि लगता है कि केंद्र चाहता ही नहीं कि वे इस केस को सुनें और फैसला दें।
'24 नवंबर के बाद सुनवाई चाहते हैं'
सीजेआई बीआर गवई ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के अनुरोध पर कहा, 'अगर आप नहीं चाहते कि हम इस मामले को सुनें और फैसला दें, तो हमें बता दीजिए। लगता है कि आप इस मामले में 24 नवंबर के बाद सुनवाई चाहते हैं।' उन्होंने कहा, 'हमनें तीन बार अटॉर्नी जनरल को समय दिया, लेकिन हम सुनते जा रहे हैं कि वे इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यस्त हैं। आपके पास विद्वान एएसजी की पूरी टीम है। किसी और को इस मामले में बहस करने दीजिए।'
'अटॉर्नी जनरल अभी भी यहां नहीं हैं'
दरअसल, भाटी ने कहा कि अटॉर्नी जनरल निजी तौर पर इस केस को देख रहे हैं, इसपर बेंच ने कहा कि वह तीन-तीन बार के स्थगन के बाद भी पेश नहीं हुए। सीजेआई ने कहा, 'हाई कोर्ट में यह प्रक्रिया है कि अगर किसी केस में थोड़ी सुनवाई हो चुकी है, वकील को निश्चित तौर पर पहले उसे पूरा करना होगा। यहां हमने इसी तरह के तीन अनुरोधों पर सुनवाई स्थगित की है, लेकिन वह अभी यहां नहीं हैं।'
'अदालत के साथ यह बहुत गलत है'
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने मामले को संविधान पीठ में भेजने के लिए आधी रात में आवेदन दाखिल करने का भी जिक्र किया और कहा, 'पहले हम इसे आपके अनुरोध पर टालते रहे और देर रात हमें एक आवेदन मिलता है कि आप चाहते हैं कि यह मामला एक संविधान पीठ को सौंप दिया जाए। अदालत के साथ यह बहुत गलत है। हम कल इस मामले को सुनना चाहते थे और वीकेंड का इस्तेमाल फैसला लिखाने के लिए करना चाहते थे।'
'अटॉर्नी जनरल को सूचना दे दीजिए..'
आखिरकार सुनवाई की तारीख अगले सोमवार यानी 10 नवंबर को तय करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, 'हम कानून के सर्वोच्च पद का बहुत सम्मान करते हैं। लेकिन, जिस तरह से सुनवाई टाली जा रही है वह सही नहीं है।' उन्होंने सॉलिसिटर जनरल भाटी से स्पष्ट शब्दों में कहा दिया कि 'एजी को सूचना दे दीजिए कि सोमवार को हम इस मामले को बंद कर देंगे।'
'केंद्र सरकार से यह उम्मीद नहीं करते'
इससे पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पूरी होने के बाद मामले को आधी रात में पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपने के केंद्र के अनुरोध पर भी सीजेआई गवई इसी तरह से आपत्ति जता चुके हैं। तब उन्होंने कहा था, 'हम केंद्र सरकार से यह उम्मीद नहीं करते कि वह ऐसे स्टैंड लेगी और कोर्ट के साथ दांव खेलेगी...जब हमने याचिकाकर्ताओं को पूरा सुन लिया है, केंद्र सरकार को बड़े बेंच में भेजने की अर्जी को अनुमति नहीं दी जा सकती।'
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट खिलाफ केस
इस केस में सुप्रीम कोर्ट मद्रास बार एसोसिएशन की अगुवाई वाली कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। ये याचिकाएं ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 के कुछ हिस्सों खिलाफ हैं। इसमें कई ट्रिब्यूनलों के अध्यक्षों और सदस्यों के लिए एक समान कार्यकाल, आयु सीमा और चयन प्रक्रिया तय की गई है। यह चुनौती सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के आधार पर दी गई है। तब अदालत ने कहा था कि न्यायिक कार्य करने वाले ट्रिब्यूनलों को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना चाहिए।
केंद्र को सीजेआई की फटकार
दरअसल,जब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने गुरुवार को इस मामले को उठाते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी के एक इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यस्त होने का हवाला देते हुए शुक्रवार को होने वाली सुनवाई टालने की गुहार लगाई, तो सीजेआई गवई ने उन्हें दो टूक जवाब दिया और कहा कि लगता है कि केंद्र चाहता ही नहीं कि वे इस केस को सुनें और फैसला दें।
'24 नवंबर के बाद सुनवाई चाहते हैं'
सीजेआई बीआर गवई ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के अनुरोध पर कहा, 'अगर आप नहीं चाहते कि हम इस मामले को सुनें और फैसला दें, तो हमें बता दीजिए। लगता है कि आप इस मामले में 24 नवंबर के बाद सुनवाई चाहते हैं।' उन्होंने कहा, 'हमनें तीन बार अटॉर्नी जनरल को समय दिया, लेकिन हम सुनते जा रहे हैं कि वे इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यस्त हैं। आपके पास विद्वान एएसजी की पूरी टीम है। किसी और को इस मामले में बहस करने दीजिए।'
'अटॉर्नी जनरल अभी भी यहां नहीं हैं'
दरअसल, भाटी ने कहा कि अटॉर्नी जनरल निजी तौर पर इस केस को देख रहे हैं, इसपर बेंच ने कहा कि वह तीन-तीन बार के स्थगन के बाद भी पेश नहीं हुए। सीजेआई ने कहा, 'हाई कोर्ट में यह प्रक्रिया है कि अगर किसी केस में थोड़ी सुनवाई हो चुकी है, वकील को निश्चित तौर पर पहले उसे पूरा करना होगा। यहां हमने इसी तरह के तीन अनुरोधों पर सुनवाई स्थगित की है, लेकिन वह अभी यहां नहीं हैं।'
'अदालत के साथ यह बहुत गलत है'
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने मामले को संविधान पीठ में भेजने के लिए आधी रात में आवेदन दाखिल करने का भी जिक्र किया और कहा, 'पहले हम इसे आपके अनुरोध पर टालते रहे और देर रात हमें एक आवेदन मिलता है कि आप चाहते हैं कि यह मामला एक संविधान पीठ को सौंप दिया जाए। अदालत के साथ यह बहुत गलत है। हम कल इस मामले को सुनना चाहते थे और वीकेंड का इस्तेमाल फैसला लिखाने के लिए करना चाहते थे।'
'अटॉर्नी जनरल को सूचना दे दीजिए..'
आखिरकार सुनवाई की तारीख अगले सोमवार यानी 10 नवंबर को तय करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, 'हम कानून के सर्वोच्च पद का बहुत सम्मान करते हैं। लेकिन, जिस तरह से सुनवाई टाली जा रही है वह सही नहीं है।' उन्होंने सॉलिसिटर जनरल भाटी से स्पष्ट शब्दों में कहा दिया कि 'एजी को सूचना दे दीजिए कि सोमवार को हम इस मामले को बंद कर देंगे।'
'केंद्र सरकार से यह उम्मीद नहीं करते'
इससे पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पूरी होने के बाद मामले को आधी रात में पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपने के केंद्र के अनुरोध पर भी सीजेआई गवई इसी तरह से आपत्ति जता चुके हैं। तब उन्होंने कहा था, 'हम केंद्र सरकार से यह उम्मीद नहीं करते कि वह ऐसे स्टैंड लेगी और कोर्ट के साथ दांव खेलेगी...जब हमने याचिकाकर्ताओं को पूरा सुन लिया है, केंद्र सरकार को बड़े बेंच में भेजने की अर्जी को अनुमति नहीं दी जा सकती।'
ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट खिलाफ केस
इस केस में सुप्रीम कोर्ट मद्रास बार एसोसिएशन की अगुवाई वाली कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। ये याचिकाएं ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 के कुछ हिस्सों खिलाफ हैं। इसमें कई ट्रिब्यूनलों के अध्यक्षों और सदस्यों के लिए एक समान कार्यकाल, आयु सीमा और चयन प्रक्रिया तय की गई है। यह चुनौती सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के आधार पर दी गई है। तब अदालत ने कहा था कि न्यायिक कार्य करने वाले ट्रिब्यूनलों को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना चाहिए।
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