नोएडा: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में रुकी आवासीय परियोजनाओं के कारण परेशान लोगों के लिए राहत भरी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ग्रेटर नोएडा की एक लंबे समय से रुकी हुई आवासीय परियोजना की जांच के लिए एक सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया है। इस समिति की अध्यक्षता इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस पंकज नकवी करेंगे। कमिटी परियोजना की पूरी जांच करेगी और इसे पूरा करने के लिए एक व्यावहारिक समाधान या रोडमैप प्रस्तुत करेगी।
खरीदारों को उम्मीद की किरणयह मामला गोल्फ कोर्स सहकारी आवास समिति (पूर्व में जेपी ग्रीन्स कर्मचारी सहकारी आवास समिति) और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) के बीच चल रहे विवाद से जुड़ा है। इस विवाद के कारण लगभग दो दशकों से सैकड़ों घर खरीदार अपने फ्लैटों के कब्जे का इंतजार कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि घर खरीदारों ने अपनी मेहनत की कमाई गंवाने के अलावा भारी मानसिक कष्ट भी सहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति अब और अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रह सकती। इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस जटिल मामले के शीघ्र समाधान के लिए स्वतंत्र जांच आवश्यक है। इसलिए, पूर्व जस्टिस की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है, जो चार महीने में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।
समिति का कार्यक्षेत्र निर्धारितग्रेटर नोएडा में रुकी आवासीय परियोजनाओं की जांच कमिटी के कार्यक्षेत्र का निर्धारण किया गया है। कमिटी सभी अभिलेखों, समझौतों, पत्राचार, अनुमोदनों और हलफनामों की जांच करेगी। साथ ही, वास्तविक आवंटियों की पहचान की जाएगी। कमिटी परियोजना पूरी करने के लिए व्यावहारिक समाधान सुझाएगी। समिति को अपनी जांच के लिए स्वतंत्र तौर-तरीके तय करने का अधिकार दिया गया है। समिति अध्यक्ष को 15 लाख रुपये का मानदेय दिया जाएगा, जिसे चार महीने में तीन किस्तों में भुगतान किया जाएगा।
पक्षों को सहयोग का आदेशसुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकार, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद, गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी और संबंधित बैंकों को समिति के साथ पूर्ण सहयोग का निर्देश दिया है। रिटायर्ड जस्टिस पंकज नकवी कमिटी सभी पक्षों की जांच अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। इसे सुप्रीम कोर्ट में जमा किया जाएगा। इसके बाद कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय सुनाएगी।
क्या है पूरा विवाद?दरअसल, पूरा मामला 2004 में शुरू हुआ जब जीएनआईडीए ने सेक्टर पीआई-2 में 10,000 वर्गमीटर का प्लॉट नंबर-7 इस सहकारी समिति को आवंटित किया था। परियोजना में लगभग 140 फ्लैट और दो दुकानें शामिल थीं। इसका निर्माण शिव कला डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया था। इस परियोजना का प्रचार 'शिव कला चार्म्स' नाम से एक लग्जरी कॉम्प्लेक्स के रूप में किया गया।
आवंटियों के राहत की बात2007 के बाद जीएनआईडीए को भुगतान बंद हो गया। 9 सितंबर 2011 को लीज डीड रद्द कर दी गई। इसके बाद से परियोजना ठप है। जस्टिस संदीप मेहता ने 51 पृष्ठों के फैसले में लिखा कि घर खरीदारों की शिकायतें विभिन्न मंचों पर उठाई गईं, लेकिन समाधान नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि वास्तविक आवंटियों को राहत देना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि कोई धोखेबाज व्यक्ति इस स्थिति का अनुचित लाभ न उठाए।
समिति अब परियोजना से जुड़े सभी दस्तावेजों की जांच करेगी और सुप्रीम कोर्ट को अपनी सिफारिशें देगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस जांच से उन सैकड़ों परिवारों को राहत मिलेगी जो बीते 20 वर्षों से अपने घरों का सपना पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।
खरीदारों को उम्मीद की किरणयह मामला गोल्फ कोर्स सहकारी आवास समिति (पूर्व में जेपी ग्रीन्स कर्मचारी सहकारी आवास समिति) और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) के बीच चल रहे विवाद से जुड़ा है। इस विवाद के कारण लगभग दो दशकों से सैकड़ों घर खरीदार अपने फ्लैटों के कब्जे का इंतजार कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि घर खरीदारों ने अपनी मेहनत की कमाई गंवाने के अलावा भारी मानसिक कष्ट भी सहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति अब और अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रह सकती। इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस जटिल मामले के शीघ्र समाधान के लिए स्वतंत्र जांच आवश्यक है। इसलिए, पूर्व जस्टिस की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है, जो चार महीने में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।
समिति का कार्यक्षेत्र निर्धारितग्रेटर नोएडा में रुकी आवासीय परियोजनाओं की जांच कमिटी के कार्यक्षेत्र का निर्धारण किया गया है। कमिटी सभी अभिलेखों, समझौतों, पत्राचार, अनुमोदनों और हलफनामों की जांच करेगी। साथ ही, वास्तविक आवंटियों की पहचान की जाएगी। कमिटी परियोजना पूरी करने के लिए व्यावहारिक समाधान सुझाएगी। समिति को अपनी जांच के लिए स्वतंत्र तौर-तरीके तय करने का अधिकार दिया गया है। समिति अध्यक्ष को 15 लाख रुपये का मानदेय दिया जाएगा, जिसे चार महीने में तीन किस्तों में भुगतान किया जाएगा।
पक्षों को सहयोग का आदेशसुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकार, उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद, गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी और संबंधित बैंकों को समिति के साथ पूर्ण सहयोग का निर्देश दिया है। रिटायर्ड जस्टिस पंकज नकवी कमिटी सभी पक्षों की जांच अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। इसे सुप्रीम कोर्ट में जमा किया जाएगा। इसके बाद कोर्ट इस पर अंतिम निर्णय सुनाएगी।
क्या है पूरा विवाद?दरअसल, पूरा मामला 2004 में शुरू हुआ जब जीएनआईडीए ने सेक्टर पीआई-2 में 10,000 वर्गमीटर का प्लॉट नंबर-7 इस सहकारी समिति को आवंटित किया था। परियोजना में लगभग 140 फ्लैट और दो दुकानें शामिल थीं। इसका निर्माण शिव कला डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया था। इस परियोजना का प्रचार 'शिव कला चार्म्स' नाम से एक लग्जरी कॉम्प्लेक्स के रूप में किया गया।
आवंटियों के राहत की बात2007 के बाद जीएनआईडीए को भुगतान बंद हो गया। 9 सितंबर 2011 को लीज डीड रद्द कर दी गई। इसके बाद से परियोजना ठप है। जस्टिस संदीप मेहता ने 51 पृष्ठों के फैसले में लिखा कि घर खरीदारों की शिकायतें विभिन्न मंचों पर उठाई गईं, लेकिन समाधान नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि वास्तविक आवंटियों को राहत देना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि कोई धोखेबाज व्यक्ति इस स्थिति का अनुचित लाभ न उठाए।
समिति अब परियोजना से जुड़े सभी दस्तावेजों की जांच करेगी और सुप्रीम कोर्ट को अपनी सिफारिशें देगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस जांच से उन सैकड़ों परिवारों को राहत मिलेगी जो बीते 20 वर्षों से अपने घरों का सपना पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।
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