नई दिल्ली: दुनिया भर में पैसे भेजने के तरीके में बड़ा बदलाव आया है। भारत में विदेश से आने वाले पैसों का एक छोटा हिस्सा अब पुराने बैंक रास्तों से नहीं, बल्कि नए तरीके से आ रहा है। पिछले करीब दो महीनों से यह पैसा 'स्टेबलकॉइन' नाम की खास तरह की क्रिप्टोकरेंसी के रूप में आ रहा है। यह पारंपरिक बैंक ट्रांसफर की जगह लेने लगा है।
विदेश में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं। इनके पैसे भेजने के तरीके में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले लगभग दो महीनों से काफी पैसा बैंकों के बजाय 'स्टेबलकॉइन' क्रिप्टोकरेंसी के रूप में भारत आया है। स्टेबलकॉइन अमेरिकी डॉलर से जुड़ा है। भारत में यह 4-5% के प्रीमियम पर बिक रहा है। इसका मतलब है कि विदेश से भेजे गए 1,000 डॉलर बैंक ट्रांसफर से जहां लगभग 88,600 रुपये बनते हैं। वहीं, स्टेबलकॉइन के जरिए भेजने पर लगभग 93,150 रुपये तक मिल सकते हैं। यह अंतर पैसे भेजने वालों और पैसे पाने वालों दोनों के लिए फायदेमंद है।
लोगों ने तलाश लिया है मौका
यह नया तरीका उन लोगों के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आया है जो पैसे भेजते और प्राप्त करते हैं। जब कोई भारतीय कामगार विदेश से पैसे भेजता है तो वह सीधे बैंक में ट्रांसफर करने के बजाय वहां के किसी मनी चेंजर से स्टेबलकॉइन खरीदता है। फिर उस स्टेबलकॉइन को भारत में बैठे अपने किसी साथी के डिजिटल वॉलेट में भेज दिया जाता है। भारत में बैठा यह साथी या तो इन कॉइन को सीधे किसी खरीदार को बेच देता है, जिससे 1% का टैक्स (TDS) बच जाता है, या फिर किसी लोकल एक्सचेंज पर बेचता है। लोकल एक्सचेंज पर बेचने पर भी टैक्स देने के बाद भी उन्हें बैंक ट्रांसफर से ज्यादा पैसे मिलते हैं। इस अतिरिक्त मुनाफे का कुछ हिस्सा ग्राहकों के साथ भी बांटा जाता है। इस तरह मनी चेंजर थोड़ा ज्यादा कमाते हैं और उनके ग्राहक अपने रिश्तेदारों को ज्यादा पैसे भेज पाते हैं। यह तरीका बैंकों की तुलना में तेज और सस्ता भी है। हालांकि, यह पूरी तरह से यानी नियमों के अनुसार नहीं है।
इस मामले पर कुछ मनी ट्रांसफर कंपनियों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कुछ अधिकारियों से अनौपचारिक बातचीत भी की है। अनुमान है कि लगभग 3-4% विदेशी रेमिटेंस अब बैंकों से निकलकर स्टेबलकॉइन में आ गया है।
बैंकों के लिए कितनी बड़ी चिंंता?
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, यह अभी शुरुआती दौर है। इन पैसों का प्रवाह इतना बड़ा नहीं है कि बैंकों को चिंता हो। एक क्रिप्टो उद्योग से जुड़े व्यक्ति का कहना है कि इस बदलाव का एक कारण भारत में USDT (एक प्रमुख स्टेबलकॉइन) की बढ़ती मांग है। लोग क्रिप्टो की अस्थिरता से बचने के लिए USDT का इस्तेमाल कर रहे हैं। यानी जब दूसरी क्रिप्टोकरेंसी की कीमतें गिरती हैं तो ट्रेडर उन्हें बेचकर USDT खरीद लेते हैं। इसके अलावा, विदेशी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म पर पैसे लगाने के लिए भी USDT की मांग बढ़ी है। इन सब कारणों से USDT का प्रीमियम बना हुआ है। इससे विदेश से आने वाले USDT के लिए बाजार तैयार हो गया है।
नियामकों को नहीं आ रहा है रासहालांकि, यह सब नियामक संस्थाओं को रास नहीं आ रहा है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पहली बार कुछ क्रिप्टो ग्रुप के मेंबर्स से मुलाकात की। शायद सरकार को इनपुट देने के लिए। लेकिन, आरबीआई की स्थिति बदलने की संभावना कम है। आरबीआई सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) का समर्थन कर रहा है, जो बिटकॉइन जैसी विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी के बजाय इंटीग्रेटेड डिजिटल करेंसी है। क्रॉस-बॉर्डर फंड ट्रांसफर के लिए सीबीडीसी को बेहतर माना जा रहा है। USDT या USDC जैसी निजी कंपनियों की ओर से जारी की गई मुद्राओं के उलट सीबीडीसी केंद्रीय बैंकों की ओर से जारी की जाती हैं।
उदाहरण के लिए, यूएई दिरहम-आधारित सीबीडीसी लॉन्च करने की योजना बना रहा है। ऐसे में, आरबीआई और यूएई के केंद्रीय बैंक को एक ऐसा तंत्र बनाना होगा जिससे भारतीय वहां से सीबीडीसी के जरिए पैसे भेज सकें।
इस अवसर को देखते हुए निजी कंपनियां और क्रिप्टो खिलाड़ी नए रास्ते तलाश रहे हैं। पिछले हफ्ते, बेंगलुरु की एक फर्म ने INR स्टेबलकॉइन लॉन्च करने की योजना की घोषणा की। अगर ऐसा कोई सिक्का विदेश में लिस्ट होता है तो भारतीय मूल के लोग या विदेशी खरीदार इसे खरीदकर भारत में किसी को भी भेज सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि कुछ सेवा निर्यात के भुगतान भी अब स्टेबलकॉइन में हो रहे हैं, जो केंद्रीय ईडीपीएमएस पोर्टल पर दर्ज नहीं हो रहे हैं।
विदेश में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं। इनके पैसे भेजने के तरीके में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले लगभग दो महीनों से काफी पैसा बैंकों के बजाय 'स्टेबलकॉइन' क्रिप्टोकरेंसी के रूप में भारत आया है। स्टेबलकॉइन अमेरिकी डॉलर से जुड़ा है। भारत में यह 4-5% के प्रीमियम पर बिक रहा है। इसका मतलब है कि विदेश से भेजे गए 1,000 डॉलर बैंक ट्रांसफर से जहां लगभग 88,600 रुपये बनते हैं। वहीं, स्टेबलकॉइन के जरिए भेजने पर लगभग 93,150 रुपये तक मिल सकते हैं। यह अंतर पैसे भेजने वालों और पैसे पाने वालों दोनों के लिए फायदेमंद है।
लोगों ने तलाश लिया है मौका
यह नया तरीका उन लोगों के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आया है जो पैसे भेजते और प्राप्त करते हैं। जब कोई भारतीय कामगार विदेश से पैसे भेजता है तो वह सीधे बैंक में ट्रांसफर करने के बजाय वहां के किसी मनी चेंजर से स्टेबलकॉइन खरीदता है। फिर उस स्टेबलकॉइन को भारत में बैठे अपने किसी साथी के डिजिटल वॉलेट में भेज दिया जाता है। भारत में बैठा यह साथी या तो इन कॉइन को सीधे किसी खरीदार को बेच देता है, जिससे 1% का टैक्स (TDS) बच जाता है, या फिर किसी लोकल एक्सचेंज पर बेचता है। लोकल एक्सचेंज पर बेचने पर भी टैक्स देने के बाद भी उन्हें बैंक ट्रांसफर से ज्यादा पैसे मिलते हैं। इस अतिरिक्त मुनाफे का कुछ हिस्सा ग्राहकों के साथ भी बांटा जाता है। इस तरह मनी चेंजर थोड़ा ज्यादा कमाते हैं और उनके ग्राहक अपने रिश्तेदारों को ज्यादा पैसे भेज पाते हैं। यह तरीका बैंकों की तुलना में तेज और सस्ता भी है। हालांकि, यह पूरी तरह से यानी नियमों के अनुसार नहीं है।
इस मामले पर कुछ मनी ट्रांसफर कंपनियों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कुछ अधिकारियों से अनौपचारिक बातचीत भी की है। अनुमान है कि लगभग 3-4% विदेशी रेमिटेंस अब बैंकों से निकलकर स्टेबलकॉइन में आ गया है।
बैंकों के लिए कितनी बड़ी चिंंता?
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, यह अभी शुरुआती दौर है। इन पैसों का प्रवाह इतना बड़ा नहीं है कि बैंकों को चिंता हो। एक क्रिप्टो उद्योग से जुड़े व्यक्ति का कहना है कि इस बदलाव का एक कारण भारत में USDT (एक प्रमुख स्टेबलकॉइन) की बढ़ती मांग है। लोग क्रिप्टो की अस्थिरता से बचने के लिए USDT का इस्तेमाल कर रहे हैं। यानी जब दूसरी क्रिप्टोकरेंसी की कीमतें गिरती हैं तो ट्रेडर उन्हें बेचकर USDT खरीद लेते हैं। इसके अलावा, विदेशी ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म पर पैसे लगाने के लिए भी USDT की मांग बढ़ी है। इन सब कारणों से USDT का प्रीमियम बना हुआ है। इससे विदेश से आने वाले USDT के लिए बाजार तैयार हो गया है।
नियामकों को नहीं आ रहा है रासहालांकि, यह सब नियामक संस्थाओं को रास नहीं आ रहा है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पहली बार कुछ क्रिप्टो ग्रुप के मेंबर्स से मुलाकात की। शायद सरकार को इनपुट देने के लिए। लेकिन, आरबीआई की स्थिति बदलने की संभावना कम है। आरबीआई सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) का समर्थन कर रहा है, जो बिटकॉइन जैसी विकेंद्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी के बजाय इंटीग्रेटेड डिजिटल करेंसी है। क्रॉस-बॉर्डर फंड ट्रांसफर के लिए सीबीडीसी को बेहतर माना जा रहा है। USDT या USDC जैसी निजी कंपनियों की ओर से जारी की गई मुद्राओं के उलट सीबीडीसी केंद्रीय बैंकों की ओर से जारी की जाती हैं।
उदाहरण के लिए, यूएई दिरहम-आधारित सीबीडीसी लॉन्च करने की योजना बना रहा है। ऐसे में, आरबीआई और यूएई के केंद्रीय बैंक को एक ऐसा तंत्र बनाना होगा जिससे भारतीय वहां से सीबीडीसी के जरिए पैसे भेज सकें।
इस अवसर को देखते हुए निजी कंपनियां और क्रिप्टो खिलाड़ी नए रास्ते तलाश रहे हैं। पिछले हफ्ते, बेंगलुरु की एक फर्म ने INR स्टेबलकॉइन लॉन्च करने की योजना की घोषणा की। अगर ऐसा कोई सिक्का विदेश में लिस्ट होता है तो भारतीय मूल के लोग या विदेशी खरीदार इसे खरीदकर भारत में किसी को भी भेज सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि कुछ सेवा निर्यात के भुगतान भी अब स्टेबलकॉइन में हो रहे हैं, जो केंद्रीय ईडीपीएमएस पोर्टल पर दर्ज नहीं हो रहे हैं।
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