अगली ख़बर
Newszop

शहबाज शरीफ 58 सैनिकों की मौत से बौखलाए, पाकिस्तान ने तालिबान के शासन को 'अवैध' करार दिया, 4 साल बाद पलटा फैसला

Send Push
इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने अफगानों के हमले में अपने 58 सैनिकों के मारे जाने के बाद तालिबान के शासन को 'अवैध करार' दिया है। अपनी अफगान नीति में बड़ा बदलाव करते हुए पाकिस्तान ने कहा है कि अफगानिस्तान में 'अफगान तालिबान' शासन वैध नहीं है। पाकिस्तान का ये फैसला उसके 2021 के फैसले से ठीक उलट है, जब उसने काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान को समर्थन देने वाले सबसे पहले देशों में शामिल था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि तालिबान को 'अवैध शासन' बताना पाकिस्तान का मजबूरी में लिया गया फैसला है, क्योंकि तालिबान के भीषण हमले के बाद उसकी काफी फजीहत हो रही है।



पाकिस्तान के विदेश विभाग ने 11-12 अक्टूबर की रात को पाकिस्तान-अफगान सीमा पर अफगान तालिबान, टीटीपी आतंकवादियों और उग्रवादियों की तरफ से किए गए हमले को लेकर गहरी चिंता जताई है। बयान में कहा गया है कि इन हमलों का मकसद "पाकिस्तान-अफगान सीमा को अस्थिर करना" था और "दो भाईचारे वाले देशों" के बीच शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों की भावना का उल्लंघन करना था।



पाकिस्तान ने तालिबान के शासन को "अवैध-गैर-कानूनी" कहा

पाकिस्तान ने दावा किया है कि उसने "सीमा पर हमलों को प्रभावी ढंग से नाकाम" करके, "तालिबान बलों और उससे जुड़े ख्वारजियों" को जन, सामग्री और बुनियादी ढांचे में "भारी नुकसान" पहुंचाकर अपने आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग किया है। न्यूज-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को 'अवैध और गैर-कानूनी' करार दिया है। इस्लामाबाद ने दावा किया कि जिन टारगेट को उसने निशाना बनाकर ध्वस्त किया है, उनका इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादी हमलों की योजना बनाने के लिए किया जा रहा था।



पाकिस्तान ने यह भी दावा किया है कि उसकी सेना ने नागरिक हानि रोकने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाए हैं और ऑपरेशन के दौरान, सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया है। इसके साथ ही बयान में कहा गया है, कि पाकिस्तान संवाद और कूटनीति को अहमियत देता है, लेकिन अपनी भूमि और नागरिकों की सुरक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा।



रणनीतिक मजबूरी या नीति बदलाव?

न्यूज-18 की रिपोर्ट में भारतीय खुफिया सूत्रों और कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान का यह यू-टर्न नैतिक या वैचारिक कारणों से नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव और सुरक्षा संकट की वजह से लिया गया है। तालिबान की हालिया सीमा पर हमले, और पाकिस्तान के भीतर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) की बढ़ती हिंसा ने इस्लामाबाद की आंतरिक स्थिरता को झकझोर दिया है। 2021 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, तब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के तत्कालीन प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद का काबुल स्थित सेरेना होटल गये थे। उस वक्त उनकी काबुल में चाय पीते हुए तस्वीर काफी वायरल हुई थी। उस दौरान पाकिस्तान ने संदेश देने की कोशिश की थी, कि अफगानिस्तान का रिमोट कंट्रोल उसके ही पास है। लेकिन अब सब उल्टा हो गया है।



अब चार साल बाद पाकिस्तान के हाथों से तालिबान पूरी तरह से निकल चुका है। अब न तो हिबतुल्लाह अखुंदजादा के नेतृत्व वाला कंधारी गुट पाकिस्तान के प्रभाव में है, न ही हक्कानी नेटवर्क, जो कभी इस्लामाबाद का सबसे भरोसेमंद "रणनीतिक मोहरा" माना जाता था। सूत्रों ने कहा है कि तालिबान शासन को मान्यता देने से पाकिस्तान के सार्वजनिक इनकार और उसे अवैध करार देने को सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना से ध्यान हटाने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसके मंत्री तालिबान प्रतिनिधियों के साथ बैठकें करते रहे हैं।

न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें