एक दशक की तैयारी, पाकिस्तान पर भारी…हमारे अभेद्य कवच के सामने ऐसे फेल होती चली गईं पाकिस्तानी मिसाइलें
भारत की सुरक्षा रणनीति में पिछले एक दशक में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है, जिसका केंद्र बिंदु एक मजबूत और बहुस्तरीय मिसाइल रक्षा कवच का निर्माण रहा है। यह ‘अभेद्य कवच’ विशेष रूप से पाकिस्तान की परमाणु और पारंपरिक मिसाइल क्षमताओं को बेअसर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे उसके आक्रामक मंसूबे लगातार विफल होते दिख रहे हैं। यह सफलता वर्षों की समर्पित योजना, अनुसंधान, विकास और सामरिक तैनाती का परिणाम है, जिसने भारत को अपनी धरती की रक्षा करने की एक अभूतपूर्व क्षमता प्रदान की है।
पाकिस्तान, जो लंबे समय से अपनी मिसाइल क्षमताओं को भारत के खिलाफ एक निवारक और आक्रामक उपकरण के रूप में देखता आया है, अब एक ऐसी भारतीय रक्षा प्रणाली का सामना कर रहा है जो उसकी गणनाओं को गंभीर रूप से बाधित करती है। भारत का बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) कार्यक्रम, जिसमें पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD) और एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) जैसी प्रणालियाँ शामिल हैं, ने वायुमंडल के बाहर (एक्सो-एटमोस्फेरिक) और वायुमंडल के भीतर (एंडो-एटमोस्फेरिक) दोनों ही स्तरों पर आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को भेदने की क्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है।
इस स्वदेशी कवच को और मजबूती मिली है रूस निर्मित S-400 ‘ट्रायम्फ’ वायु रक्षा प्रणाली के अधिग्रहण से। S-400 न केवल बैलिस्टिक मिसाइलों, बल्कि क्रूज मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और ड्रोन्स सहित विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों को 400 किलोमीटर तक की दूरी पर पहचान कर उन्हें नष्ट करने में सक्षम है। यह बहु-लक्ष्यीय और बहु-स्तरीय रक्षा प्रणाली पाकिस्तान से आने वाली किसी भी मिसाइल के लिए एक दुर्जेय चुनौती प्रस्तुत करती है।
कैसे फेल होती हैं पाकिस्तानी मिसाइलें?
प्रारंभिक चेतावनी और ट्रैकिंग: भारत के पास उन्नत रडार प्रणालियों (जैसे कि स्वदेशी ‘स्वॉर्डफिश’ लॉन्ग-रेंज ट्रैकिंग रडार) का एक नेटवर्क है जो दुश्मन की मिसाइलों के लॉन्च का तुरंत पता लगा सकता है। ये रडार मिसाइल के प्रक्षेप पथ को ट्रैक करते हैं और डेटा को कमांड सेंटर तक पहुंचाते हैं।
लक्ष्य निर्धारण और अवरोधन: प्राप्त डेटा के आधार पर, कमांड सेंटर उपयुक्त इंटरसेप्टर मिसाइल का चयन करता है। यदि मिसाइल वायुमंडल के बाहर है, तो PAD जैसी प्रणाली सक्रिय हो सकती है। यदि यह वायुमंडल में पुनः प्रवेश करती है, तो AAD या S-400 इसे निशाना बना सकती है।
बहुस्तरीय सुरक्षा: एक परत के विफल होने की स्थिति में भी, दूसरी और तीसरी परतें सक्रिय रहती हैं, जिससे पाकिस्तानी मिसाइलों के अपने लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना लगभग नगण्य हो जाती है। S-400 की विभिन्न प्रकार की मिसाइलें अलग-अलग ऊंचाई और दूरी पर खतरों को बेअसर कर सकती हैं, जिससे एक व्यापक सुरक्षा छतरी बनती है।
यह ‘अभेद्य कवच’ पाकिस्तान के रणनीतिकारों के लिए एक बड़ी दुविधा खड़ी करता है। उनकी मिसाइलें, जिन पर वे दशकों से इतराते रहे हैं, अब भारतीय रक्षा क्षमताओं के सामने अप्रभावी साबित हो रही हैं। भारत की यह तैयारी न केवल एक रक्षात्मक मुद्रा है, बल्कि यह क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने और किसी भी दुस्साहस को रोकने के लिए एक स्पष्ट संदेश भी है। एक दशक के अथक प्रयास ने भारत को एक ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है जहाँ वह अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को किसी भी बाहरी खतरे से प्रभावी ढंग से बचा सकता है, और पाकिस्तान की मिसाइलें इस अभेद्य दीवार के सामने बेबस नजर आती हैं।
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