लखनऊ की छावनी (कैंट) में एक ऐसी इमारत खड़ी है जो सिर्फ पूजा की जगह नहीं,बल्कि इतिहास की एक जीती-जागती कहानी है. इसका नाम हैआल सेंट्स न्यू गैरिसन चर्च.पहली नज़र में यह आपको ऑक्सफ़ोर्ड के किसी कॉलेज की याद दिलाएगी,अपनी ऊंची मीनार और शाही बनावट के साथ. लेकिन जब आप इसकी बेंचों को करीब से देखेंगे,तो एक ऐसी हकीकत सामने आएगी जो आपको हैरान कर देगी.इस चर्च की हर बेंच के पिछले हिस्से में बंदूकें रखने के लिए खास खांचे बने हुए हैं!आखिर भगवान के घर में हथियारों का क्या काम?यह सवाल किसी के भी मन में आ सकता है. इसके पीछे छिपा है1857की क्रांति का वो खौफ,जो अंग्रेजों के दिलों में घर कर गया था. उस दौर में क्रांतिकारियों ने कई चर्चों में प्रार्थना के समय घुसकर अंग्रेज अफसरों पर हमला कर दिया था,जिसमें कईयों की जानें गईं. उसी डर के बाद,अंग्रेजों ने यह नियम बनाया कि छावनियों में बने चर्चों में सैनिक अपने हथियारों के साथ प्रार्थना में शामिल हो सकते हैं,ताकि वे किसी भी हमले के लिए तैयार रहें. यह चर्च उसी डर और सावधानी का आज भी सबसे बड़ा गवाह है.एक पुराने चर्च की नई कहानीयह चर्च मूल रूप से1860में बनाया गया था. लेकिन जैसे-जैसे लखनऊ कैंट में अंग्रेजी फौज की तादाद बढ़ने लगी,एक बड़े चर्च की ज़रूरत महसूस हुई. तब1908में,ब्रिटिश इंजीनियर जोन्स रेनसम के डिजाइन पर इसे फिर से बनाया गया. उस ज़माने में इसके निर्माण पर91,000रुपये का खर्च आया था,जो ब्रिटिश सरकार ने दिया था.यह चर्च लखनऊ के किसी भी दूसरे चर्च से ज़्यादा बड़ा है. इसका हाता (अहाता) भी काफी विशाल है और इसके अंदर बैठने की क्षमता भी सबसे ज़्यादा है. मुख्य दरवाजे पर एक पत्थर पर लिखा संदेश आज भी हर आने वाले का स्वागत करता है.आज भी है एक जीवंत स्मारकसमय के साथ भले ही बंदूकें रखने की ज़रूरत खत्म हो गई हो,लेकिन वो खांचे आज भी इतिहास की उस कहानी को बयां करते हैं. आज यह चर्च नॉर्थ इंडिया चर्च और लखनऊ डायोसिस की देखरेख में है. यह सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं,बल्कि एक जीवंत प्रार्थना स्थल है,जहाँ हर रविवार को रेवरेंड अभय सोअंस के नेतृत्व में प्रार्थना सभा होती है और इसकी घंटियों की आवाज़ आज भी सुकून देती है.यह चर्च लखनऊ की एक ऐसी धरोहर है,जो हमें शांति के साथ-साथ इतिहास के उन अशांत पन्नों की भी याद दिलाता है.
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