नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन एक्ट 2025 की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बुधवार को कहा कि भले ही सरकारी जमीन पर दशकों से धार्मिक या सामाजिक काम हो रहा हो, फिर भी कोई भी इस जमीन पर दावा नहीं कर सकता। सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का उद्धरण दिया। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को मंजूरी दी थी कि अगर किसी सरकारी जमीन को वक्फ बताया गया है, तब भी उस पर सरकार वापस कब्जा ले सकती है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून से प्रभावित किसी भी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका नहीं दी है और इस मामले में संसद के अतिक्रमण का सवाल ही नहीं उठता। तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने दलील दी कि राज्य सरकारों और वक्फ बोर्डों से सलाह-मश्विरा कर वक्फ संशोधन कानून पास कराया गया है। उन्होंने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी ने भी वक्फ संशोधन बिल पर गौर किया। वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ याचिकाएं देने वालों का कहना है कि जिला कलेक्टर से वरिष्ठ अफसर को ही ये अधिकार होना चाहिए कि वो देखे कि जमीन सरकारी है या वक्फ की। इसे सॉलिसिटर जनरल ने ये कहते हुए खारिज किया कि ये दलील गलत होने के साथ ही भ्रम पैदा करने वाली भी है।
केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन एक्ट 2025 के मामले में सुप्रीम कोर्ट से तीन अहम सवालों पर फोकस करने की गुजारिश की है। पहला तो ये कि क्या इस्तेमाल, कोर्ट के आदेश या डीड यानी रजिस्ट्री के जरिए जिस जमीन को वक्फ का बताया गया, उसकी ये स्थिति सरकार हटा सकती है? कौन वक्फ बोर्डों और वक्फ काउंसिल में रह सकते हैं और क्या सिर्फ मुस्लिमों को ही ये हक है? तीसरा कि अगर कलेक्टर की जांच ये कहती है कि जमीन सरकारी है, तो क्या ये वक्फ नहीं रहेगी? केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित जवाब में कहा है कि वक्फ एक धर्मनिरपेक्ष कानूनी अवधारणा है। केंद्र सरकार ने लिखित जवाब में तर्क दिया है कि संवैधानिक वैधता को चुनौती दिए जाने तक कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती। केंद्र ने कहा है कि यह एक स्थापित स्थिति है कि वैधानिक प्रावधानों पर कोर्ट उस वक्त तक रोक नहीं लगाता, जब तक कि कोई स्पष्ट मामला न बन जाए। खास बात ये है कि सीजेआई ने भी मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा था कि संसद से पास कानून संवैधानिक ही होते हैं और जब तक कि इसके खिलाफ स्पष्ट सबूत न हो, अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
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