इंटरनेट डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चिकित्सा सावधानियों से समझौता किए बिना ट्रांसजेंडर समुदाय की भेदभाव संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए समय दिया। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रक्तदाता के रूप में शामिल न करने पर सवाल उठाया और पाया कि पूरे समुदाय को जोखिम भरा बताने के पीछे कोई तर्क नहीं है। न्यायालय ने केंद्र को चिकित्सा सावधानियों से समझौता किए बिना भेदभाव की उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए समय दिया।
दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई...न्यायालय राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों (एमएसएम) और महिला यौनकर्मियों को एचआईवी, हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण के लिए उच्च जोखिम में होने के कारण रक्तदान करने से रोका गया था।न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि क्या हम सभी ट्रांसजेंडरों को जोखिम भरा बताकर उन्हें कलंकित करने जा रहे हैं। आप यह नहीं कह सकते कि सभी ट्रांसजेंडर यौन गतिविधियों में लिप्त हैं।
दिशा-निर्देशों का उद्देश्य किसी को कलंकित करना नहीं है, बल्कि...केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि दिशा-निर्देशों का उद्देश्य किसी को कलंकित करना नहीं है, बल्कि इन्हें एनबीटीसी द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें डॉक्टर और विशेषज्ञ शामिल हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक सोच के साथ और सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण को ध्यान में रखते हुए यह दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। कोर्ट ने कहा कि हमें जो चिंता है, वह भेदभाव का तत्व है। उन्हें अलग-थलग और बहिष्कृत कर दिया गया है। बस कुछ ऐसा सोचें कि ऐसी भावना न आए और स्वास्थ्य मानकों से समझौता न हो।
PC : hindustantimes
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