Next Story
Newszop

सिद्धारमैया के हाथ से जाएगी कुर्सी? कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज, इस नेता को CM बनाने की मांग, कर्नाटक कांग्रेस में मचा पूरा कोहराम समझिये

Send Push

कर्नाटक कांग्रेस में अंदरूनी कलह अब खुलकर सामने आ गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान अब राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बिंदु पर पहुंच गई है। पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस आलाकमान स्थिति को संभालने में सक्रिय रहा है और पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला को बेंगलुरु भेजा गया है, जो विधायकों और नेताओं से मुलाकात कर फीडबैक ले रहे हैं। इस दौरे को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि इसे न सिर्फ संगठनात्मक समीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है, बल्कि इसे संभावित नेतृत्व परिवर्तन या कैबिनेट फेरबदल से भी जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, शिवकुमार खेमे का दावा है कि 2023 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब इस बात पर सहमति बनी थी कि दोनों नेता ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करेंगे। इसके मुताबिक, सिद्धारमैया अक्टूबर 2025 तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे और उसके बाद डीके शिवकुमार की बारी होगी। हालांकि, सिद्धारमैया गुट ऐसे किसी भी समझौते से साफ इनकार करता है और इसे कोरी कल्पना बता रहा है।

शिवकुमार का दावा, सिद्धारमैया का खंडन

शिवकुमार खेमे को उम्मीद है कि दो साल बाद सीएम की कुर्सी चली जाएगी, लेकिन सिद्धारमैया समर्थक जोर दे रहे हैं कि पार्टी में कार्यकाल बंटवारे को लेकर कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ है। उनके मुताबिक, सिद्धारमैया कांग्रेस में एकमात्र प्रभावशाली ओबीसी नेता हैं और ऐसे नेता को बीच में सीएम पद से हटाना पार्टी के लिए सामाजिक और राजनीतिक रूप से नुकसानदेह होगा। पार्टी ने हाल ही में ओबीसी सलाहकार परिषद का गठन भी किया है, जिसकी पहली बैठक 15 जुलाई को बेंगलुरु में प्रस्तावित है, जिसकी मेजबानी खुद सिद्धारमैया करेंगे।

हाईकमान सक्रिय

रणदीप सुरजेवाला का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ रहा है। कुछ विधायकों ने फंड आवंटन को लेकर खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। पार्टी हाईकमान को चिंता है कि अगर समय रहते इन शिकायतों का समाधान नहीं किया गया, तो इसका असर संगठन और सरकार दोनों पर पड़ सकता है।

हालांकि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीधे तौर पर किसी बदलाव की घोषणा नहीं की, लेकिन उनके बयान ने कई अटकलों को जन्म दिया। उन्होंने सोमवार को कहा, 'यह फैसला हाईकमान के हाथ में है। हाईकमान के मन में क्या चल रहा है, यह कोई नहीं जानता। लेकिन बिना वजह कोई विवाद नहीं खड़ा किया जाना चाहिए।' खड़गे के इस बयान को दोनों खेमे अपने-अपने तरीके से देख रहे हैं। शिवकुमार के समर्थक इसे संभावनाओं का संकेत मान रहे हैं, वहीं सिद्धारमैया खेमे को इसमें कोई ठोस बदलाव नहीं दिख रहा। सुरजेवाला से विधायकों का मन व्यथित हालांकि सुरजेवाला ने मीडिया से कहा कि यह नियमित संगठनात्मक समीक्षा थी, लेकिन उन्होंने खुद माना कि वे प्रत्येक विधायक से व्यक्तिगत रूप से मिल रहे हैं और उनकी बात सुन रहे हैं।

चाहे सरकार की 'पांच गारंटी योजनाओं' की प्रगति हो, विकास कार्यों की समीक्षा हो या संगठन की मजबूती... इन सभी विषयों पर वे विधायकों का मन टटोल रहे हैं। इन बैठकों को पार्टी के भीतर संभावित फेरबदल का रास्ता साफ करने के तौर पर भी देखा जा रहा है।  इन अटकलों को तब और हवा मिल गई जब सिद्धारमैया के करीबी माने जाने वाले सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने कहा कि सितंबर के बाद 'राजनीतिक रूप से क्रांतिकारी घटनाक्रम' हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लोक निर्माण मंत्री सतीश जरकीहोली को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो इसका मतलब शिवकुमार को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना होगा, जिससे उनके राजनीतिक प्रभाव को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचेगा।

दो गुटों में बंटी कांग्रेस

कर्नाटक कांग्रेस इस समय दो स्पष्ट गुटों में बंटी हुई है... एक जो सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने का पक्षधर है, तो दूसरा जो शिवकुमार को मौका देने की मांग कर रहा है। दोनों नेताओं की अपनी-अपनी खूबियां हैं... एक तरफ सिद्धारमैया की सामाजिक समीकरणों पर पकड़, तो दूसरी तरफ पार्टी संगठन और फंडिंग में शिवकुमार का दबदबा।

इस लड़ाई का सबसे बड़ा असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला, जब पार्टी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन करने में विफल रही। अब जबकि बीएमसी जैसे महत्वपूर्ण नगर निगम चुनाव नजदीक आ रहे हैं और पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर खुद को एकजुट दिखाना है, कर्नाटक जैसे सत्तारूढ़ राज्य इकाई में अस्थिरता कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है।

फिलहाल राहत, लेकिन अंत नहीं

फिलहाल पार्टी हाईकमान ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को खारिज कर दिया है, लेकिन अंदरूनी हालात साफ तौर पर बताते हैं कि संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। दोनों खेमों के बीच रस्साकशी या तो समझौते की ओर ले जा सकती है या आने वाले दिनों में खुली बगावत का कारण बन सकती है। सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच टकराव कांग्रेस के लिए कड़ी परीक्षा बन गया है। अगर पार्टी इसे ठीक से नहीं संभालती है, तो यह कर्नाटक सरकार की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की एकता की छवि को भी प्रभावित कर सकता है। इस राजनीतिक जंग का अंत क्या होगा - यह आने वाले महीनों में कांग्रेस नेतृत्व के कौशल और दोनों नेताओं की परिपक्वता पर निर्भर करेगा।

Loving Newspoint? Download the app now