सर्वोच्च न्यायालय ने आज भजनलाल सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली गहलोत सरकार के कार्यकाल में कथित सरकारी विज्ञापन घोटाला मामले में सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया था। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने मामले की सुनवाई की और इसे आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। इस पूरे विवाद के केंद्र में उस समय लिए गए सभी निर्णय हैं जो राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच के दायरे में आ रहे हैं। यह मामला उस समय का है जब शांति धारीवाल तत्कालीन शहरी विकास मंत्री थे और जीएस संधू (सेवानिवृत्त आईएएस) राजस्थान सरकार में प्रमुख सचिव थे।
मामला सुप्रीम कोर्ट में दोबारा आने के बाद यह जांच का विषय बन गया है कि क्या इन दोनों के कार्यकाल में अपने सरकारी पद का दुरुपयोग करते हुए और खरीद प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए बड़े वित्तीय फैसले लिए गए। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) शिव मंगल शर्मा, अधिवक्ता निधि जसवाल और वरिष्ठ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने मजबूत दलीलें रखीं।
बिना किसी टेंडर के फर्जी बिल बनाकर राशि निकाल ली गई।
उन्होंने कहा कि नवनिर्वाचित भजनलाल सरकार ने इस मामले पर अपना पुराना रुख बदल दिया है और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की गंभीर सामग्री के आधार पर यह याचिका दायर की है। यह घोटाला 2014 में दर्ज चार एफआईआर (संख्या 404, 406, 407 और 408) पर आधारित है। इस एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि क्रेयॉन्स एडवरटाइजिंग लिमिटेड और इसके निदेशक अजय चोपड़ा ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, स्थानीय निकाय विभाग और निवेश प्रोत्साहन ब्यूरो के अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी विज्ञापन बिल तैयार किए। बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के राज्य सरकार से करोड़ों रुपए निकाल लिए गए।
राज्य को भारी आर्थिक नुकसान
जांच में पाया गया कि 2008 से 2013 के बीच कुल विज्ञापन कार्य का लगभग 90% क्रेयॉन्स एडवरटाइजिंग को दिया गया था, जो क्रय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन था। इससे राज्य को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।
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