भारतीय सनातन संस्कृति में "गायत्री मंत्र" को अत्यंत पवित्र, प्रभावशाली और दिव्य मंत्र माना गया है। यह केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ने का माध्यम है। ऋषि विश्वामित्र द्वारा प्रकट किया गया यह मंत्र वेदों का सार माना जाता है और इसके नियमित जप से मानसिक शांति, आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंत्र का जप करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है? अगर इन नियमों की अनदेखी की जाए तो मंत्र का प्रभाव कमजोर हो सकता है या पूरी तरह निष्प्रभावी भी हो सकता है।
गायत्री मंत्र – एक संक्षिप्त परिचय
गायत्री मंत्र इस प्रकार है:
"ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।।"
इस मंत्र का अर्थ है: हे परमात्मा, जो जीवनदायक, पाप नाशक और प्रकाशस्वरूप हैं, हम आपके दिव्य तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
मंत्र जप का सही समय
गायत्री मंत्र का जप दिन में तीन बार करना सर्वोत्तम माना गया है –
प्रातःकाल (सूर्योदय से पहले)
मध्यान्ह (सूर्य जब सिर के ऊपर होता है)
सायंकाल (सूर्यास्त से ठीक पहले)
इन समयों को 'त्रिकाल संध्या' कहा जाता है। हालांकि, अगर आप तीनों समय जप नहीं कर सकते, तो प्रातःकाल का समय सबसे शुभ माना जाता है।
शुद्धता और आसन का महत्व
गायत्री मंत्र के जप से पहले तन और मन की शुद्धता आवश्यक है। स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। आसन के लिए कुशासन, चटाई या ऊनी आसन का प्रयोग करें, ताकि पृथ्वी की विद्युत शक्ति शरीर में सीधे न जाए और ऊर्जा सुरक्षित रहे।
मन की एकाग्रता
मंत्र जप करते समय मन को भटकने न दें। मोबाइल, टीवी या किसी अन्य व्यवधान से दूर शांत स्थान पर बैठें। गायत्री मंत्र का प्रभाव तभी मिलता है जब आप श्रद्धा और विश्वास से उसका जप करें। यह मात्र शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि आत्मा से संवाद है।
जप की संख्या और माला का प्रयोग
सामान्यतः 108 बार मंत्र का जप करने की परंपरा है। इसके लिए रुद्राक्ष, तुलसी या स्फटिक की माला का प्रयोग करें। माला की गिनती करते समय तर्जनी (Index Finger) का प्रयोग न करें। माला को दाहिने हाथ में लेकर मध्यम, अनामिका और अंगूठे से जप करें। 'सुमेरु' यानी माला की मुख्य मोती को पार नहीं करना चाहिए।
जप के बाद ध्यान और धन्यवाद
मंत्र जप के बाद कुछ मिनटों तक शांत बैठकर ध्यान करें। अपनी प्रार्थना में परम शक्ति के प्रति आभार व्यक्त करें और संसार के कल्याण की कामना करें। इससे आपकी साधना संपूर्ण मानी जाएगी।
क्या न करें गायत्री मंत्र के जप में
बिस्तर पर बैठकर या लेटे हुए मंत्र का जप न करें।
अत्यधिक भूख या अधिक भोजन के बाद जप न करें।
गायत्री मंत्र को कभी भी मजाक, बिना उद्देश्य या लापरवाही से न दोहराएं।
शराब या मांसाहार सेवन के तुरंत बाद जप करना वर्जित माना गया है।
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