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महाभारत में द्रौपदी पूर्वजन्म में कौन थीं, किस अधूरी इच्छा से बनीं 5 पुरुषों की पत्नी

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महाभारत की कथा न केवल युद्ध, धर्म और राजनीति की गाथा है, बल्कि इसमें छिपे चरित्रों की गहराई और उनके जीवन के रहस्य भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं में से एक रहस्यमयी और अत्यंत शक्तिशाली पात्र हैं — द्रौपदी। एक स्त्री जिसे पांच पतियों की पत्नी बनना पड़ा, एक ऐसा निर्णय जिसे न उसने स्वयं चुना और न ही कभी इसकी कल्पना की थी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे का रहस्य द्रौपदी के पूर्वजन्म में छुपा है।

द्रौपदी को क्यों सहना पड़ा अपमान?

महाभारत की कथा के अनुसार, द्रौपदी को समाज में कई बार अपमान का सामना करना पड़ा, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह पांच पुरुषों की पत्नी थीं। उन्हें कभी अभिमानी कहा गया, तो कभी कारणविहीन आलोचनाओं का शिकार बनाया गया। हालांकि द्रौपदी ने कभी स्वयं पांच पतियों की इच्छा नहीं जताई थी, यह परिस्थिति कुंती के एक निर्णय और व्यासजी के हस्तक्षेप के कारण बनी।

जब अर्जुन ने स्वयंवर जीतकर द्रौपदी को घर लाया और अपनी मां कुंती से कहा — "मां, देखिए क्या लाया हूं", तब कुंती ने बिना देखे कह दिया — "जो भी लाए हो, आपस में बांट लो।" यह सुनकर सभी पांडव चौंक गए। बाद में कुंती ने जब जाना कि अर्जुन कोई वस्तु नहीं, बल्कि एक कन्या को लाया है, तो वह क्रोधित हुईं। परंतु उन्होंने अपना आदेश वापिस नहीं लिया। तब व्यास मुनि ने हस्तक्षेप कर द्रौपदी को उसका पूर्वजन्म याद दिलाया और कहा कि यही उसकी नियति है।

पूर्वजन्म की कहानी: अधूरी इच्छा से जन्मी नियति

महाभारत के आदिपर्व में वर्णित है कि द्रौपदी का पूर्व जन्म एक गरीब ब्राह्मणी के रूप में हुआ था। उसका पति बीमार रहता था और अंततः उसकी मृत्यु हो गई। पति के चले जाने के बाद वह स्त्री समाज में तिरस्कार और अकेलेपन का जीवन जीने लगी। जीवन की कठिनाइयों और अपमान ने उसे झकझोर दिया। वह हमेशा एक ऐसा पति चाहती थी जो सर्वगुण सम्पन्न, बलशाली, ज्ञानी, नीतिवान और धर्मप्रिय हो।

इस अधूरी कामना को लेकर उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव प्रकट हुए, तो उस ब्राह्मणी ने उनसे अपने अगले जन्म में एक ऐसे पति की याचना की जिसमें पांचों गुण हों। लेकिन मनुष्य में इन सभी गुणों का एक साथ होना संभव नहीं। उसने अपनी बात पांच बार दोहराई, जिससे भगवान शिव ने संकेत दे दिया कि अगले जन्म में उसे पांच अलग-अलग गुणों वाले पति मिलेंगे।

वरदान बना जीवन की सच्चाई

अगले जन्म में वह ब्राह्मणी राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के रूप में जन्मी। स्वयंवर में अर्जुन ने प्रतियोगिता जीतकर द्रौपदी का हाथ जीता। लेकिन फिर कुंती की एक अनजाने में की गई बात और व्यास मुनि के आदेश से द्रौपदी का विवाह सभी पांचों पांडवों से कराया गया।

हर पांडव में अलग-अलग गुण थे:

  • युधिष्ठिर में धर्म और नीति,

  • भीम में बल,

  • अर्जुन में वीरता और कौशल,

  • नकुल में सुंदरता,

  • और सहदेव में ज्ञान।

शिव का वरदान साकार हुआ, परंतु साथ ही द्रौपदी को जीवनभर कई बार आलोचना, पीड़ा और बलिदान भी सहने पड़े।

द्रौपदी: साहस और धैर्य की प्रतीक

द्रौपदी केवल पांच पतियों की पत्नी नहीं थीं, वह उस युग की सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली स्त्री भी थीं। उन्होंने हर स्थिति में अपने सम्मान, धर्म और आत्मबल को बनाए रखा। उनका जीवन यह सिखाता है कि नियति चाहे जैसी हो, अगर साहस और विवेक हो तो कोई भी स्त्री समाज में एक सम्मानित स्थान बना सकती है।

निष्कर्ष
द्रौपदी की कहानी केवल महाभारत की गाथा नहीं, बल्कि नारी की जटिल भावनाओं, समाज के रवैये और आत्मबल की कहानी है। पांच पतियों की पत्नी बनने का रहस्य न तो महज संयोग था और न ही एक दैवी त्रुटि, बल्कि यह पूर्वजन्म की अधूरी कामना और भगवान शिव से प्राप्त वरदान का परिणाम था।

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