राज्य सरकार कक्षा 1 से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने जा रही है। हालांकि विपक्ष ने सरकार की इस नीति का कड़ा विरोध किया है। विपक्ष का मानना है कि कक्षा 1 से हिंदी को अनिवार्य करना सही नहीं है। गौरतलब है कि मनसे जैसी पार्टी ने सरकार के इस रुख के विरोध में 5 जुलाई को मुंबई में एक बड़ा मार्च निकाला है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने अन्य दलों से भी इस मार्च में शामिल होने का अनुरोध किया है। इस बीच, स्कूली शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने अब हिंदी भाषा नीति को लेकर अहम जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि कक्षा 1 से 3 तक तीसरी भाषा (हिंदी में) की मौखिक शिक्षा दी जाएगी।
तीसरी भाषा की मौखिक शिक्षा दी जाएगी
दादा भुसे ने आज (26 जून) एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हिंदी भाषा पर राज्य की भूमिका के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर उन्होंने कहा कि कक्षा 6 से 3 तक के छात्रों को तीसरी भाषा की मौखिक शिक्षा दी जाएगी तीसरी भाषा के बारे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी यही लिखा है,' भूसे ने बताया।
अजित पवार का अलग रुख?
इस बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार के इस रुख के बाद विपक्ष क्या रुख अपनाता है। सत्ता में मौजूद एनसीपी सुप्रीमो और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी रुख अपनाया है कि छात्रों के लिए हिंदी अनिवार्य नहीं होनी चाहिए। छात्रों पर इतनी कम उम्र में हिंदी सीखने का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। अजित पवार ने रुख अपनाया है कि कक्षा 5 से हिंदी को विषय में शामिल किया जाना चाहिए।
आखिर सरकार क्या करेगी?
इसलिए, अब एक तरफ विपक्ष, शिक्षा विशेषज्ञ और लेखक भी अनिवार्य हिंदी भाषा के खिलाफ रुख अपना चुके हैं। इसलिए, अब सरकार क्या फैसला लेती है? यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
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