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राहुल गांधी की याचिका पर उच्च न्यायालय में फैसला सुरक्षित

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–ट्रायल कोर्ट को निर्णय आने तक आगे सुनवाई नहीं करने का आदेश–विशेष न्यायालय वाराणसी के आदेश को दी गई है चुनौती–अमेरिका में सिखों पर दिए बयान का मामला

प्रयागराज, 03 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के सिखों पर दिए बयान के मामले में वाराणसी की विशेष अदालत एमपी एमएलए के आदेश को चुनौती देने वाली आपराधिक पुनरीक्षण याचिका निर्णय सुरक्षित कर लिया है। कोर्ट ने विचारण न्यायलय को निर्णय आने तक इस मामले में आगे सुनवाई नहीं करने का निर्देश दिया भी है। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन ने याचिका पर बुधवार को दोनों पक्षों की ओर से तीन घंटे तक बहस के बाद सुनवाई पूरी होने पर दिया।

मामले के तथ्यों के अनुसार सितम्बर 2024 में राहुल गांधी ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल अच्छा नहीं है, क्या सिख पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं और गुरुद्वारे जा सकते हैं? उनके इस बयान को भड़काऊ और समाज में विभाजनकारी बताते हुए नागेश्वर मिश्र ने सारनाथ थाने में राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग में तहरीर दी थी। एफआईआर दर्ज न होने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी। न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि केंद्र सरकार की अनुमति बगैर दाखिल अर्जी पोषणीय नहीं है। इसके विरुद्ध विशेष अदालत में पुनरीक्षण अर्जी दी गई। विशेष अदालत ने अर्जी को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर नए सिरे से विचार कर आदेश करने के लिए प्रकरण वापस कर दिया।

राहुल गांधी ने इस आदेश को पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी का कहना था कि आरोप निराधार है। घटना की तिथि तक का उल्लेख नहीं है।खबरों के आधार पर अर्जी दी गई है। याची के खिलाफ अपराध का कोई केस नहीं बनता। विशेष अदालत को मजिस्ट्रेट के आदेश की सत्यता, वैधता, नियमितता व प्रोपराइटरी पर विचार कर विधि अनुसार आदेश करना चाहिए था। कानूनी प्रक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर विचार किए बगैर आदेश दिया गया है। जो भी आरोप है उसके आधार पर कोई आपराधिक केस नहीं बनता इसलिए विशेष अदालत का आदेश निरस्त किया जाए।

प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और वादी के वकील सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी व अमन सिंह बिसेन ने तर्क दिया कि विशेष अदालत ने मजिस्ट्रेट को अर्जी को गुण-दोष के आधार पर निस्तारण के लिए प्रकरण वापस कर दिया है। अपराध बनता है या नहीं, यह विवेचना से स्पष्ट होगा। अब तक कोई एफआईआर दर्ज भी नहीं है इसलिए याचिका समय पूर्व दाखिल की गई है। विशेष अदालत को पत्रावली तलब कर आदेश की वैधता पर विचार करने का अधिकार है। मजिस्ट्रेट अदालत देखेगी कि अर्जी के आरोप से अपराध बन रहा है या नहीं और विवेचना का आदेश दे सकती है। विवेचना में तथ्य व साक्ष्य एकत्र किए जाएंगे।

उन्होंने याची की ओर से दी गई दलीलों और फैसलों को इस मामले से अलग बताया कहा वे इस केस में लागू नहीं होते। कहा कि अभी एफआईआर नहीं है। पुनरीक्षण अदालत मजिस्ट्रेट की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती इसलिए मजिस्ट्रेट कोर्ट अपने विवेक से अर्जी पर फैसला लेगी। इसके लिए प्रकरण वापस भेजा गया है। इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। याची को इस पर बहस करनी चाहिए कि अपराध बनता है या नहीं। अपराध बनता है तो विवेचना जरूरी है। पुनरीक्षण अदालत की शक्ति कुछ हद तक सीमित है। वह मजिस्ट्रेट कोर्ट की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती।

शिकायतकर्ता के अधिवक्ता सत्येन्द्र कुमार त्रिपाठी ने कहा याचिका पोषणीय नहीं है। अंतर्वर्ती आदेश है। कोर्ट ने बयान की तिथि की जानकारी मांगी लेकिन स्पष्ट नहीं की जा सकी। कहा कि टीवी व अखबार में आए बयान को लेकर अर्जी दी गई है। बयान समुदाय को भड़काने वाला है, जिसकी विवेचना की जानी चाहिए।

अपर महाधिवक्ता गोयल ने कहा कि बयान देश के बाहर दिया गया है लेकिन अब तक बयान की सच्चाई से इनकार नहीं किया है। विवेचना में तय होगा कि राहुल गांधी ने व्यंग्य कहा था या विरोध में कहा था। विवेचना से पूरी सच्चाई सामने आएगी इसलिए विशेष अदालत का आदेश कानून के मुताबिक सही है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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