—शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के सान्निध्य में कलाकारों की प्रस्तुति
वाराणसी, 4 नवम्बर (Udaipur Kiran) . Uttar Pradesh के वाराणसी केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में चल रहे तीन दिवसीय पूर्णिमा महोत्सव के दूसरे दिन मंगलवार की संध्या भक्ति और कला के संगम से सराबोर रही. ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सान्निध्य में आयोजित इस सांस्कृतिक संध्या में डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने अपनी शास्त्रीय प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. दिव्या श्रीवास्तव की अर्धनारीश्वर स्तुति से हुई, जो भगवान शिव और मां भगवती को समर्पित थी. यह प्रस्तुति शिव–शक्ति के अद्वैत स्वरूप की सुंदर व्याख्या थी, जिसमें सृष्टि के संतुलन और समरसता का संदेश निहित था. इसके उपरांत गौरी कला मंडपम की ओर से रामराज्याभिषेक नृत्य नाटिका की शानदार प्रस्तुति दी गई. इस नाटिका में लव-कुश संवाद के माध्यम से राम वनगमन का भावपूर्ण चित्रण किया गया. केवट प्रसंग, सुपर्णखा प्रसंग, मारीच छल, सीता हरण, जटायु मोक्ष, हनुमान मिलन, अशोक वाटिका, लंका दहन, सेतु निर्माण, रावण वध से लेकर अयोध्या आगमन और रामराज्याभिषेक तक की घटनाओं को नृत्य के माध्यम से जीवंत कर दिया गया. इस नृत्य नाटिका ने श्रद्धालुओं के समक्ष भक्ति, साहस और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया.
आयोजन के समापन पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपने आशीर्वचन में गौसेवा के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में गुरु और देवी-देवताओं का अत्यंत महत्व है. जब हम घर में पहली रोटी गौमाता को अर्पित करते हैं, तो यह हमारी संस्कृति में गौमाता के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक है.
इस अवसर पर साध्वी पूर्णांबा दीदी, ब्रह्मचारी परमात्मानंद, हजारी कीर्ति शुक्ला, स्वामी निधिरव्यानंद सागर कई संतों और बटुकों की भी उपस्थिति रही.
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
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