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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन ने विश्व के सबसे प्राचीन शनि मंदिर का किया स्मरण, सोशल मीडिया पर लिखा- ॐ शं शनैश्चराय नमः

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भोपाल, 5 जुलाई (Udaipur Kiran) । हिन्‍दू सनातन धर्म एवं वेदों की आंख के रूप में माने जानेवाले ज्‍योतिष में शनि ग्रह का विशेष महत्‍व बताया गया है। ज्योतिष में शनि को कर्मफल दाता माना जाता है, और इसे न्याय, अनुशासन, और धैर्य का ग्रह माना जाता है। दूसरी ओर वैज्ञानिकों की दृष्टि से कहें तो सूर्य से छठा ग्रह है और हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस से बना है, जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम हैं। शनि का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग 9 गुना है, लेकिन इसका घनत्व पृथ्वी के घनत्व का केवल 1/8 है। शनि के चारों ओर वलयों की एक विस्तृत प्रणाली है, जो इसे सौरमंडल का सबसे सुंदर ग्रह बनाती है। शनि के 82 से अधिक चंद्रमा हैं, जिनमें से टाइटन सबसे बड़ा है। भारत में सदियों से इन ग्रहों की ग्रह शांति के रूप में पूजा होती है, ऐसे में आज शनिवार के दिन मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उन्‍हें याद कर अपनी भक्‍ति उनके प्रति प्रकट की है।

दरअसल, मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म एक्‍स पर शनिवार सुबह लिखा, “ॐ शं शनैश्चराय नमः॥ मुरैना के प्राचीन शनि मंदिर में विराजित श्री शनि देव जी की असीम कृपा से सभी का जीवन सुख-शांति, उत्तम स्वास्थ्य व सौभाग्य से परिपूर्ण हो; यही कामना करता हूँ।”

उल्‍लेखनीय है कि मुरैना जिले में स्थित शनिचरा मंदिर, भगवान शनिदेव को समर्पित एक प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों के बीच विशेष महत्व रखता है। मंदिर का निर्माण कई सौ वर्ष पुराना माना जाता है, और कुछ कथाओं के अनुसार यह त्रेतायुग का है। शास्‍त्रों के अनुसार हनुमानजी ने शनिदेव को लंका से मुक्त कराकर इसी स्थान पर फेंका था, और तभी से यहां मंदिर बना हुआ है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह मंदिर उल्कापिंड से निर्मित शनिदेव की स्वयंभू प्रतिमा के कारण भी प्रसिद्ध है। वहीं, मंदिर का पुनर्निर्माण उज्‍जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा भी कराया गया था।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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