देवरिया, 07 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख उत्सवों में से एक शरद पूर्णिमा का उत्सव दीनदयाल शाखा के स्वयंसेवक बन्धुओं ने संघ स्थान पर मनाया. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रधानाचार्य अवनीन्द्र ने शरद पूर्णिमा के उत्सव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शरद पूर्णिमा का उत्सव योग योगेश्वर जगद्गुरू प्रभु कृष्ण के महारास से जुड़ा है. जिसमें प्रभु कृष्ण ने इस शरद पूर्णिमा के दिन ही अतीन्द्रिय महारास किया था.
उन्होंने आगे बताया कि इसे देखने के लिए चन्द्र देव पृथ्वी के अत्यधिक सन्निकट आ गये थे और इस अतिन्द्रिय रास को देखने में इतने तल्लीन हो गये कि उनके अमृत किरणों की वर्षा पृथ्वी पर हुई. इसी कारण हम खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखते हैं. भारत देश के प्रत्येक भाग में इस पर्व को अलग-अलग नाम से मनाया जाता है.
West Bengal और उड़ीसा में आज महालक्ष्मी की पूजा भी की जाती है. उड़ीसा में यह भी मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ था. इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहते हैं. इस पर्व का जितना आध्यात्मिक महत्व है उतना ही व्यवहारिक भी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस पर्व का यह महत्व है कि दूध में स्थित लैक्टिक एसिड और चावल में स्थित स्टार्स से जब चन्द्रमा की अमृत मयी किरणें मिलती है तो खीर के गुण बढ़ा देती और इस खीर को हम सुबह खाली पेट सेवन करते हैं तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है.
आयुर्वेद के आचार्य इस शरद पूर्णिमा के दिन का इन्तजार करते हैं. भारत वर्ष उत्सव धर्मी देश है. जहां प्रत्येक पर्व हमारे सनातन परम्परा को आगे बढ़ने का कार्य करते हैं. उन्हीं पर्व में यह शरद पूर्णिमा एक प्रमुख पर्व है.
इस अवसर पर जिला संघचालक मकसूदन, शाखा कार्य वाह कन्हैया, राजेन्द्र, मुख्य शिक्षक उपेन्द्र, नित्यानंद पाण्डेय, मधूसुदन मिश्र, अर्धेंदु, गौरव, रामप्रताप सहित सभी स्वयंसेवक बन्धुओं की उपस्थिति रही.
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(Udaipur Kiran) / ज्योति पाठक
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