प्रयागराज, 30 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय एक बार फिर गुमराह करने वाले याचिकाकर्ता हरि शंकर की याचिका को खारिज करते हुए उस पर 25 हजार का हर्जाना लगाया है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता “बोनाफाइड लिटिगेंट नहीं है” और उसने कई बार महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपा कर न्यायालय को गुमराह किया।
याची ने अपने पिता की सेवा में मृत्यु (22 फरवरी 2007) के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। याची हरि शंकर की अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी 25 जुलाई 2011 को अस्वीकार कर दी गई थी, जिसे उन्होंने कभी चुनौती नहीं दी।
इसके बावजूद, उन्होंने वर्ष 2016 में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें यह नहीं बताया कि उनकी अर्जी पहले ही खारिज हो चुकी है। न्यायालय ने याची से पुनर्विचार का अवसर देने की बात कही।
बाद में, 6 जनवरी 2017 को प्राधिकरण ने पुनः बताया कि पहले की अस्वीकृति के चलते दावा दोबारा नहीं खोला जा सकता। इसके बाद भी याची ने वर्ष 2017 में फिर एक तीसरी रिट याचिका दाखिल की, जिसमें फिर से 2011 के आदेश को चुनौती नहीं दी गई और इस बार यह झूठा तर्क दिया गया कि समान परिस्थितियों वाले मामलों पर पुनर्विचार हो रहा है।
न्यायालय ने इसे रिकॉर्ड के विपरीत बताया और कहा कि “पुनर्विचार का कोई मामला था ही नहीं”। इसके बावजूद, मामले पर फिर विचार किया गया और याचिका फिर खारिज कर दी गई। अब, याचिकाकर्ता ने 12 जुलाई 2023 के ताज़ा खारिजा आदेश को चुनौती दी, जबकि 2011 के मूल अस्वीकृति आदेश को अब तक चुनौती नहीं दी गई है।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 25 हजार का हर्जाना लगाया, जो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, बुलंदशहर के खाते में जमा करने का निर्देश दिया गया है।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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