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गीतिका - मधु शुक्ला

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कंटकों से मित्रता जिसने निभाई,
पास उसके वेदना आने न पाई ।

मुस्कराकर दीन के दुख बॉ॑टता जो,
ईश चरणों में जगह उसने बनाई ।

जिंदगी का अर्थ कर्मठ जब सिखाया,
भावना उपकार पनपी मुस्कराई ।

पूर्णिमा का चॉ॑द प्रिय लगता सभी को ,
प्रीति किसने तिथि अमावस से जताई।

प्रेम अपनापन तथा सहयोग ने ही ,
भावना बंधुत्व की जग को सिखाई।
 --- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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